अक्सर पति-पत्नी
के रिश्ते में
तनाव की एक
बारीक सी डोर
भी होती है।
इसमें थोड़ा भी
खिंचाव आने पर
रिश्ते तन जाते
हैं। ज्यादा दबाव
दिया जाए तो
टूट भी जाते
हैं। ये डोर
होती है अपेक्षा
की। हम एक-दूसरे से जब
रिश्ता जोड़ते हैं तो
अपनी अपनेक्षाएं भी
उसके साथ चिपका
देते हैं। रिश्ता
कोई भी हो
हम उसमें कभी
नि:स्वार्थ नहीं
रह पाते हैं।
हमारा कोई भी
रिश्ता निष्काम नहीं होता।
यह अपेक्षा ही तनाव और बिखराव का कारण बनती है। अपनों से की गई अपेक्षा तो और उपद्रव खड़े करती है। अपनों से अपेक्षा पूरी हो जाए तो शांति नहीं मिलती लेकिन यदि पूरी न हो तो अशांति जरूर ज्यादा हो जाती है। इसीलिए पति-पत्नी और रिश्तेदारों के बीच के संबंध हमेशा खटपट वाले बने रहते हैं क्योंकि हमने इनका आधार अपेक्षा बना लिया है।
हम अपने भीतर पसंद, नापसंद का एक ऐसा आरक्षण कर लेते हैं कि जिसके कारण हम लोगों की अच्छाइयों से वंचित हो जाते हैं। हम जितना दूसरों की अच्छाइयों के निकट जाएंगे उतना ही अपने भीतर शांति पाएंगे।
भागवत सिखाती है कि कैसे दाम्पत्य में अपेक्षा रहीत होकर ज्यादा सुखी रहा जा सकता है। भगवान कृष्ण की प्रमुख आठ पटरानियों में रुक्मिणी और सत्यभामा को देखिए। रुक्मिणी भगवान से निर्मल स्नेह और प्रेम रखती थीं। उन्हें भगवान का जितना साथ मिल जाए, उसी में सौभाग्य मानकर संतुष्टि मानती थी लेकिन इसके विपरीत सत्यभामा अक्सर भगवान से यह अपेक्षा रखती थीं कि वे ज्यादा से ज्यादा उनके पास रहें।
हर जन्म में उन्हीं के साथ रहें। इस लालच में उन्होंने एक बार नारद की बातों में आकर भगवान को ही दान कर दिया। बहुत पीड़ा झेली, सौतनों की उलाहना भी सही। आपके दाम्पत्य में संतुष्टि का भाव होना चाहिए। जितनी ज्यादा अपेक्षा रखेंगे, उतनी ज्यादा परेशानी और अशांति आपको ही झेलनी पड़ेगी।
यह अपेक्षा ही तनाव और बिखराव का कारण बनती है। अपनों से की गई अपेक्षा तो और उपद्रव खड़े करती है। अपनों से अपेक्षा पूरी हो जाए तो शांति नहीं मिलती लेकिन यदि पूरी न हो तो अशांति जरूर ज्यादा हो जाती है। इसीलिए पति-पत्नी और रिश्तेदारों के बीच के संबंध हमेशा खटपट वाले बने रहते हैं क्योंकि हमने इनका आधार अपेक्षा बना लिया है।
हम अपने भीतर पसंद, नापसंद का एक ऐसा आरक्षण कर लेते हैं कि जिसके कारण हम लोगों की अच्छाइयों से वंचित हो जाते हैं। हम जितना दूसरों की अच्छाइयों के निकट जाएंगे उतना ही अपने भीतर शांति पाएंगे।
भागवत सिखाती है कि कैसे दाम्पत्य में अपेक्षा रहीत होकर ज्यादा सुखी रहा जा सकता है। भगवान कृष्ण की प्रमुख आठ पटरानियों में रुक्मिणी और सत्यभामा को देखिए। रुक्मिणी भगवान से निर्मल स्नेह और प्रेम रखती थीं। उन्हें भगवान का जितना साथ मिल जाए, उसी में सौभाग्य मानकर संतुष्टि मानती थी लेकिन इसके विपरीत सत्यभामा अक्सर भगवान से यह अपेक्षा रखती थीं कि वे ज्यादा से ज्यादा उनके पास रहें।
हर जन्म में उन्हीं के साथ रहें। इस लालच में उन्होंने एक बार नारद की बातों में आकर भगवान को ही दान कर दिया। बहुत पीड़ा झेली, सौतनों की उलाहना भी सही। आपके दाम्पत्य में संतुष्टि का भाव होना चाहिए। जितनी ज्यादा अपेक्षा रखेंगे, उतनी ज्यादा परेशानी और अशांति आपको ही झेलनी पड़ेगी।
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