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शनिवार, 18 मार्च 2017

प्रेरक प्रसंग

एक संघ प्रचारक श्रीनगर के मशहूर खीर-भवानी मंदिर में दर्शन करने गये. दर्शन के पश्चात् जब वहां से लौट रहे थे तो उन्हें हजरत बल दरगाह की जियारत का विचार मन में आया. (कश्मीर के हजरत बल दरगाह के बारे में यह मान्यता है कि उसके अंदर रसूल साहब के दाढ़ी के बाल रखे हुए हैं) साथ चल रहे कार्यकर्ताओं से जब यह इच्छा व्यक्त कि तो उन्होंने कहा, भाई साहब, अभी कुछ ही दिन हुए हैं जब दरगाह हजरतबल में सैनिक कारवाई हुई है और भारतीय सेना और हिन्दुओं को लेकर उनके मन में काफी रोष है, इसलिए हमारे ख्याल में वहां जाना सुरक्षित नहीं है पर प्रचारक जी नहीं माने और वहां जा पहुंचे, सुरक्षाकर्मियों ने जब वहां तिलक लगाये आदमियों को देखा तो उन्हें वहां से वापस जाने को कहा पर प्रचारक जी ने दरगाह के खादिमों को इतल्ला देने को कहा.

अंततः दरगाह के खादिम बाहर आये, पूछा, आपको क्या चाहिए ?

माथे पर तिलक सजाये संघ प्रचारक जी ने कहा , मैं सनातनी हिन्दू हूँ, मैं न अपना नाम बदलूँगा न अपना पंथ बदलूँगा और न ही मुझे आपकी अरबी, फारसी भाषा आती है पर मैं यहाँ इबादत करना चाहता हूँ, वो भी अपने तरीके से और अपनी भाषा में, तो मेरा प्रश्न है कि क्या मैं यहाँ इबादत कर सकता हूँ?

दरगाह के खादिमों ने उनसे कहा, देखिये पिछले डेढ़-दो सौ सालों में हमारे सामने यह प्रश्न कभी खड़ा नहीं हुआ, इसलिए हम उत्तर दे पाने में सक्षम नहीं हैं और ये भी अभी नहीं कह सकते कि कुरान और हदीस में इसका उत्तर मिलेगा या नहीं .

प्रचारक जी ने कहा, ठीक है कि यह प्रश्न पहले कभी आपके सामने नहीं आया था पर जब आज ये प्रश्न खड़ा हुआ है तो इसका उत्तर तो ढूंढना पड़ेगा.

इस पर दरगाह कमिटी के वहां उपस्थित 28 लोग बैठे, आपस में मशवरा करते रहे पर किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पा रहे थे , आखिर संघ प्रचारक उनके पास गए और कहा,

मैं आपके सामने उपस्थित समस्या के समाधान में कुछ मदद करता हूँ .उन्होंने कहा, कुरान में अल्लाह को रब्बुलआलमीन (सारे आलम का रब) कहा गया है यानि वो जो पूरे आलम का रब है, तो अगर वो पूरे आलम का रब है तो मैं उसके आलम में आता हूँ कि नहीं और अगर आता हूँ तो फिर मुझे उसकी जगह पर इबादत करने का हक है कि नहीं? अगर नहीं है तो फिर आपको किताब बदलते हुए लिखना पड़ेगा कि वो रब्बुलआलमीन नहीं है रब्बुलमुसलमीन (सिर्फ मुसलमानों का रब) है, पर अगर किताब बदली तो शैतान और काफिर कहलाओगे और जो आपके अपने मानने वाले हैं वो ही आपको मार देंगे.

मेरा दूसरा प्रश्न ये है कि अल्लाह केवल अरबी, फारसी ही समझता है या बाकी जुबानें भी समझता है? इसलिए मेरी भाषा में की गई मेरी इबादत को अगर वो नहीं समझता तो फिर हम तो उससे बड़े हो जायेंगे क्यूंकि हम वो भाषा जानतें हैं जो भाषा वो नहीं जानता. ईश्वर तो उसकी जुबान भी सुनता और समझता है जो गूंगे हैं, जो बोल नहीं सकते, वो तो पशु-पक्षियों की भी जुबान समझता है तो मेरी अपनी जुबान में की गई इबादत को सुनेगा कि नहीं?

ये सुनकर दरगाह कमिटी के लोग फिर इस विषय पर चर्चा में मशगूल हो गये और थोड़ी देर बाद उनमें से एक ने आकर कहा, देखिये आपकी रूहानी बातों को सुनने के बाद हमें लगता है खुदा हमारी सुने न सुने आपकी जरूर सुनेगा इसलिए आपको बेशक अपने तरीके से और अपनी भाषा में यहाँ इबादत की अनुमति है.

संघ प्रचारक अंदर गये, अपनी भाषा में अपने इष्टों को नमन किया, मन्त्र जाप किया और बाहर आ गये तो उनके सामने पूरी कमिटी खड़ी हो गई और कहा कि हमारे दरगाह शरीफ के अंदर हुज़ूर-पाक के मुबारक दाढ़ियों के बाल रखे हुए हैं, जो जियारत के लिए साल में केवल एक बार खुलता है, लाखों की भीड़ दर्शनार्थ उमड़ती है. आप जो भी हैं पर आप अलग हैं इसलिए हमने तय किया है कि हम आपको इन पवित्र निशानियों के दर्शन करवाएंगे.

प्रचारक जी ने उनसे कहा, मैं तो दर्शन / जियारत कर के चला जाऊंगा पर अगर ये बात लीक हो गई कि आपने सैकड़ों वर्षों की परंपरा को तोड़कर एक काफिर को पवित्र दाढ़ियों के बाल के दर्शन करायें हैं तो आपके लिए समस्या खड़ी हो जायेंगी, हो सकता है कोई मजहबी वहशी आपको मार भी दे और आपकी बीबी-बच्चों को अनाथ और बेसहारा बना दे, इसलिए यह रहने दीजिये. पर दरगाह के खादिम नहीं माने तो प्रचारक जी ने उनसे कहा आप दरवाजे को पूरा न खोले, एक हल्का सा झरोखा बना दें मैं दर्शन कर लूँगा और आपकी बात भी रह जायेगी.

इसके बाद जब इन्द्रेश कुमार बाहर निकले तो इस इंसान के सम्मान में दरगाह कमिटी के लोग पंक्तिबद्ध खड़े थे और यह कहते हुए उनका आभार व्यक्त कर रहे थे कि इस आदमी ने उन्हें आज खुदाई रोशनी दिखाई है.जी हाँ ये संघ प्रचारक और कोई नहीं इन्द्रेश कुमार जी ही थे, जिनके मार्गदर्शन में राष्ट्रवादी मुसलमानों का संगठन राष्ट्रीय मुस्लिम मंच गतिशील है !

इन्द्रेश कुमार का सारा जीवन ऐसे ही अकल्पनीय गाथाओं से गुथा हुआ है. कश्मीर का आतंकवाद, हजरत बल पर हुई सैनिक कारवाई , माथे पर तिलक और पृष्ठभूमि संघ प्रचारक की, मुस्लिम दरगाह पर अपनी रीति और अपनी भाषा में अपने माबूद के इबादत की जिद इन सबको मिलाइए और बताइए कि पूरी दुनिया में पिछले 1437 सालों के इतिहास में किसने मुस्लिमों के बीच जाकर उनसे ऐसे प्रश्न किये हैं ? और उनके बीच से सुरक्षित और ससम्मान लौटा है?
(प्रश्न करने की हिम्मत तो शायद सरमद और मंसूर ने की होगी पर करने के बाद वो जिंदा नहीं बचे)

कहाँ से मिली है उनको यह हिम्मत, हौसला, त्याग, समर्पण, समस्याओं से निकलने का तरीका और व्यापक दृष्टि ? निःसंदेह उत्तर एक ही है – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गढ़ा है उन्हें और न जाने कितने स्वयंसेवकों को, जो अहर्निश इन पंक्तियों को अपने जीवन में चरितार्थ कर रहे हैं –

तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित,

चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं !

यह संतोषजनक तथ्य है कि इन्द्रेश जी के प्रयत्नों से बड़े पैमाने पर अब भारतीय मुस्लिम समाज के बंधू भी इस भावना में रंगने लगे हैं !

सोमवार, 7 जुलाई 2014

आओ फिर एक नई शुरुवात करे


























मंजिल की तरफ लगातार बढ़ने के लिए जरूरी है कि आपकी सोच सकारात्मक हो। सकारात्मक सोच न सिर्फ आपके व्यक्तित्व में चार चांद लगा देता है, बल्कि ये आपको आत्मविश्वास से भी लबरेज रखता है। वहीं नकारात्मक ख्याल न सिर्फ आपको खुद से दूर कर देती है, बल्कि आगे बढ़ने के मार्ग को भी बंद कर देती है। ये पूरी तरह आपके और आपकी सफलता के बीच रोड़ा बन जाती है।


समाज में ऐसे युवाओं की कमी नहीं, जो अपने व्यक्तित्व व करियर को लेकर हीनभावना से ग्रस्त रहते हैं और जिंदगी से इतने निराश हो जाते हैं, मानो कुदरत ने सबसे ज्यादा परेशानियां उनको ही दी हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ऐसे लोग सिर्फ अपनी कमजोरियों को ही याद रखते हैं। तो क्यों न आने वाले साल में जीवन की नई शुरुआत की जाए ताकि असफलता भी सफलता बन आपके कदम चूमे।
जीवन के सफर में मंजिल की तरफ लगातार बढ़ने के लिए जरूरी है कि आपकी सोच सकारात्मक हो। सकारात्मक सोच न सिर्फ आपके व्यक्तित्व में चार चांद लगा देता है, बल्कि ये आपको आत्मविश्वास से भी लबरेज रखता है। वहीं नकारात्मक ख्याल न सिर्फ आपको खुद से दूर कर देती है,बल्कि आपके आगे बढ़ने के मार्ग को भी बंद कर देता है। ये पूरी तरह आपके और आपकी सफलता के बीच रोड़ा बन जाती है। ऐसे में आप चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते।

जीवन हो रंगमय

सकारात्मक सोच का शोर आज चारों ओर है। इस पर काफी-कुछ कहा-सुना जा रहा है और पढ़ने-देखने और सुनने में अच्छा भी लगता है। लेकिन कितने लोग हैं, जो सचमुच इस पर अमल कर पाते हैं। हम खुद रोजमर्रा की जिंदगी में झांकें तो एक दिन में न जाने कितनी बार खुद को दुखी, निराश, तनावग्रस्त करते हैं छोटी-छोटी बातों के लिए। तो क्यों न इस बार सकारात्मक सोच के साथ जीवन में रंग भरने का संकल्प लेकर देंखे। इंसान की सोच अगर संकीर्ण हो, सिर्फ स्वयं पर या अपने लोगों पर ही केंद्रित हो तो सोच धीरे-धीरे नकारात्मक होती चली जाएगी। प्रगतिशील सोच नहीं बन सकेगी। जीवन को बुद्धिमत्ता, जीवंतता और समाजोपयोगी ढंग से नहीं जिया जाए तो क्या इसे सही जीना कह सकते हैं। एक सपाट बदरंग या बेरंग और बेनूर जिंदगी न आप में और न आपके संपर्क में आने वाले किसी व्यक्ति में उत्साह या उल्लास का संचार कर सकेगी। तो साल की शुरुआत करें सकारात्मक सोच के साथ, बी पाजिटिव।

कर भला तो हो भला

आपने अपने बड़ों को ये कहते अवश्य सुना होगा कि दिन भर में एक काम अच्छा जरूर करो। उस एक अच्छे काम की प्रतीक्षा क्यों? शायद आज जरूरत है थोड़ी सी अलग समझ की। कभी अपने अलावा दूसरों के बारे में सोच कर देखें। निराश व्यक्ति के लिए जीवन बेनूर हो जाता है। जीवन उसे निरर्थक और व्यर्थ लगने लगता है। उत्साह, जोश, उमंग जैसे शब्द उसके व्यवहार से गायब ही हो जाते हैं। दुख व परेशानियों के बोझ को ढोने की शक्ति उसमें होती तो है, पर लगातार हताशा में घिरे रहने से उसे लगता है कि वो शक्ति उसमें नहीं रह गई है। ऐसे निराश व्यक्ति की समस्या का हल निकालने का प्रयास करें। उसमें परेशानियों से लड़ने की क्षमता जगाएं। अगर उसे हंसा सकें तो ये कोई छोटी उपलब्धि नहीं है और इससे प्राप्त खुशी कोई छोटी खुशी नहीं है। जरूरत है इसे उपलब्धि मानना और इस तरह की खुशियों को बटोर कर अपने और दूसरों के जीवन को संवारना। अपने लिए तो सभी जीते हैं, क्यों न थोड़ा सा हम दूसरों के लिए भी जी लें। कुछ लमहों के लिए सही, दूसरे के चेहरे पर मुसकान लाने का प्रयास तो करें। ये काम मुश्किल है, पर नामुमकिन नहीं। अपनी इच्छाओं, तकलीफों, दुख-दर्द और परेशानियों को कहीं ताले में बंद कर दें। अपनी सोच में थोड़ा-सा बदलाव लाकर देखिए।

असफलता से कैसा डर

मनोवैज्ञानिक डा. अरुणा ब्रूटा कहती है कि वैसे तो अमूमन लोग नकारात्मक नहीं सोचते, लेकिन लगातार मिल रही असफलता या बार-बार हो रही आलोचनाओं के चलते नकारात्मक भावनाएं उनके ऊपर हावी हो जाती हैं। इससे उनके व्यक्तित्व पर गहरा असर पड़ता है। कई बार तो लोग भावनात्मक रूप से टूट भी जाते हैं और अंदर ही अंदर आत्महीनता की ग्रंथियां निराशावादी सोच को किस तरह बढ़ावा देती चली जाती हैं कि पता भी नहीं चलता। ऐसी स्थिति से निकलने में लोगों को लंबा वक्त लगता है। नकारात्मक विचार धीरे-धीरे लोगों को अपने चंगुल में कसता है। नकारात्मक ख्याल न सिर्फ आपको खुद से दूर कर देते हैं, बल्कि आपके आगे बढ़ने के मार्ग को भी बंद कर देता है। सकारात्मक सोच आपके व्यक्तित्व में चार चांद लगा देता है। नकारात्मक सोच का एक कारण आत्मविश्वास का कमजोर होना भी है। जब हमारे अंदर आत्मविश्वास की कमी होती है, तो हमें किसी की कोई भी बात जल्द बुरी लगती है। ऐसे में न सिर्फ व्यक्तित्व, बल्कि उनके जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। पर अगर हम जीवन में मिलने वाली असफलताओं से सीख लें और सफल होने का प्रयास करें तो ये दिन भी जल्द ही बीत जाएंगे।

खूबियों को पहचानें

मनोवैज्ञानिक डा. समीर पारिख कहते हैं कि हर किसी को अपने अंदर झांक कर देखने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि हर किसी के अंदर कुछ खूबियां भी हैं। जैसे कुछ लोग समझते हैं कि वे मोटे हैं, इसलिए अपनी बात को अच्छे तरीके से नहीं रख पाते। कोई समझता है कि उनकी हाइट कम है, इसलिए उनकी बातों का उतना प्रभाव नहीं हो पाता, तो कोई ये मान बैठता है कि उनकी अंग्रेजी कमजोर है, इसलिए आफिस में अपना प्रभाव छोड़ने में नाकामयाब रखते हैं। दरअसल, खुद के साथ ये सरासर नाइंसाफी है। अगर जीवन में आगे बढ़ना है, मंजिल पानी है, तो ऐसे नकारात्मक विचारों से खुद को आजाद करें और सकारात्मकता विचारों के साथ जीवन को समृद्ध बनाएं।

बदलें नजरिया

खुद को नकारात्मक प्रभाव से मुक्त करना मुश्किल नहीं है, बस हमें चीजों को देखने का नजरिया बदलना होगा। हर घटना के दो पहलू होते हैं। हमें अपने आपको ये प्रशिक्षण देना है कि कैसे हम सकारात्मक पहलू को पहले देखें। सकारात्मक नजरिया अपनाते ही नकारात्मक पहलू कमजोर दिखाई देता है और हम नामुमकिन से लगने वाले काम भी आसानी से कर लेते हैं। हमारा नजरिया ही यह तय करता है कि हम असफलता को किस तरह लेते हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले लोगों के लिए सफलता की ही तरह एक सीढ़ी है असफलता, इसलिए वे हारकर भी जीतने की कला जानते हैं। इस तरह आप नजरिए में थोड़ा बदलाव कर नकारात्मक सोच से छुटकारा पा सकते हैं।

करें नई शुरुआत

स्नेहा बैडमिंटन की बेहतरीन खिलाड़ी है, लेकिन अपनी सांवली सूरत की वजह से वो खुद को बेहद बदसूरत समझती है। ऐसे में अगर कोई उसकी प्रशंसा कर दे, तो उसे लगता है कि वो उसका मजाक उड़ा रहे हैं। डा. ब्रूटा कहती हैं कि स्नेहा की तरह ऐसे कई लोग हैं, जो अपने व्यक्तित्व को लेकर हीनभावना के शिकार होते हैं। कई लोग करियर को लेकर भी हीनभावना से ग्रस्त होते हैं। ये हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि हमें अपने व्यक्तित्व का नकारात्मक पक्ष जल्दी नजर आता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम सिर्फ उसे ही देखें। जिंदगी में अगर संघर्ष है, तो कामयाबी भी है। फिर छोटी-छोटी बातों को लेकर उससे शिकवा क्यों किया जाए। इस तरह आप नकारात्मक पक्षों को नकार कर अपना आत्मविश्वास मजबूत कर सकते हैं। तो इस साल से कीजिए नई सुरुात जो आपके भीतरी व्यक्तित्व के साथ आपके अंदरूनी खूबसूरती को भी बढ़ाने में कारगर साबित होगा।

कुछ ऐसा हो जीवन

एक गीत है, दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है। कहने का तात्पर्य यह है कि आप केवल अपने दोषों को ही नहीं देखें। ऐसे कई लोग हैं, जो आपसे भी बुरी स्थिति में जी रहे हैं। अगर आप महान व्यक्तियों की आत्मकथा पढें, तो पाएंगे कि सारी विषम परिस्थितियों के बावजूद जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। एपीजे अब्दुल कलाम, बराक ओबामा जैसी तमाम शख्सियतें हैं, जिन्होंने सफलता के पहले संघर्ष का लंबा दौर देखा और बाद में भी कई बार आलोचनाओं के शिकार हुए, लेकिन इन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। इसलिए स्वयं की खूबियों का आंकलन करने के लिए आत्मनिरीक्षण करें और ये देखें कि आप कौन सा कार्य सबसे अच्छे ढंग से कर सकते हैं। अपनी उपलिब्धयों को डायरी में लिखें और जब नकारात्मक विचार आप पर हावी होने लगे, तो डायरी पढ़ें। आप पाएंगे कि आपका तनाव कम हो रहा है।

आकर्षण का सिद्धांत……

अगर आप जीवन में सफल होना चाहते हैं, 
तो सबसे पहले आपको इस सिद्धांत का पालन करना ही होगा 

मुझे नहीं पता की आपकी Present स्थिति कैसी हैं | मैं तो केवल इतना जानता हुँ कि आपकी सफलता के लिए आपको इस सिद्धांत का पालन करना ही होगा, इस पर अटूट विश्वास करना ही होगा , तभी आप अपनी Choice की हर वस्तु ,हर मुकाम को पा सकते हो ,ये money हो सकता हैं, ये Popularity हो सकती है और चाहे ये आपका कितना भी मुस्किल Target हो सकता है ,आप उसको प्राप्त कर सकते हो |

आपकी present और past condition कैसी भी हो ,यह matter नहीं करता हैं |matter यह करता हैं कि आप कहाँ जाना चाहते हों , आखिर आप चाहते क्या हो ?

अब हमारें मन में आता हैं कि आखिर यह आकर्षण का सिद्धांत कैसे काम करता है ?
जितना मेनें इसको समझा, मैं आपके साथ वही share कर रहा हुँ…..

The Law of attraction is always working…

आकर्षण का यह सिद्धांत आपको सब कुछ देता हैं ,खुशियाँ, सेहत और दौलत |

हम जो कुछ भी चाहे पा सकते हैं, चाहें वो कितना भी बड़ा क्यों ना हों |
हमें यह पता होना चाहिए कि आखिर हम चाहतें क्या हैं |यह बिलकुल स्पष्ट होना चाहिए ,
बिलकुल clear consious picture हमारें पास होनी चाहिए |
हमें स्पष्ट पता होना चाहिए कि ,हमारी असली चाहत क्या हैं?
हम जो भी सोच रहे होते हैं उसे हम attract कर रहे होते हैं

for example.

अगर मैं अपने आपको एक चुम्बक मान लूँ तो मैं जानता हुँ कि दुसरें चुम्बक मेरी और आकर्षित होगें |
एक बार फिर मैं आपको यह बताना चाहता हुँ कि हमें यह स्पष्ट रूप से मालूम होना चाहिए कि हम क्या चाहते हैं |।
आखिर हमें चाहिए क्या?
जैसा हम सोचते हैं हम वैसे ही बन जाते हैं आपके विचार ही आपकी जिंदगी को बनातें हैं और इसका जवाब छुपा हैं तीन आसान शब्दों में

विचार बनायें जिंदगी

हमेशा उसके बारें में सोचों जो आप पाना चाहते हो ,उसके बारें में नहीं जों आप नहीं चाहतें |

हम हर चीज को अपनी और आकर्षित करते हैं ,चाहें वों कुछ भी हो और कितना भी मुस्किल क्यों ना हों |
अपना हर दिन एक खुशनुमा अहसास के साथ शुरू करें फिर देखिए आपका पुरा दिन कितना खुशनुमा गुजरता हैं |
आपकी हर इच्छा पुरी होती हैं |

ब्रह्माण्ड से अपने भगवान से माँगें जो आप पाना चाहते हैं |

Rule.1     प्रश्न करें माँगें जो आप चाहते हैं |
आखिर आप चाहते क्या हैं ?

आप जो भी चाहते हैं उसे कागज पर लिख डालें |

आपकों लिखना हैं कि आपकी जिंदगी कैसी हो ?
आप जो भी चाहते हैं उसे लिख डालें ,
बिलकुल स्पष्ट लिखें हो सके तो उसको लिख कर अपनी pocket में रखें,
आप जो भी चाहते हो उसकी list बना लिजिए |यहां तक कि इसमें यह भी लिख दें कि आपको यह कब तक चाहिए date लिखें यहाँ तक कि time भी लिख दें |
सृष्टि को अपने menu card की तरह use करें
पहले लिख दें जो भी आप चाहते हो, फिर आदेश दें

Rule.2     विश्वास ………|
विश्वास करें कि जो आप चाहते है ,वो आपको मिल चुका है |
विश्वास अटूट होना चाहिए।
एक फिर दौराना चाहता हुँ ,अटूट विश्वास |
वो कहते हैं ना कि अगर आप कुछ भी किसी को भी पूरी सिद्धत से चाहते है, तो पूरा ब्रह्माण्ड आपको उससे मिलाने कि साजिस करता है |

यह ब्रह्माण्ड सब अपने आप कर देगा |

शक करने की कोशिश ना करें |
अपने शक को अपने अटूट विश्वास में बदल दें|

दोस्त कोशिश ना करना शक करने की !

Rule.3  प्राप्त करना ………|
महसूस करे कि वो आपको मिल चुका है,
महसूस करें जैसा आप उस चीज को पाकर करतें ,
जब हम कल्पना को वास्तविकता में बदलतें हैं ,तो और भी बेहतर कल्पनाएँ जन्म लेती हैं |
जो आप चाहतें है, उसका अहसास जगाएँ |
जो आप चाहते हो ,उसे जाकर देखें ,उसे छु कर देखें |
विश्वास करें कि वो आपकी हो चुकी हैं|

जब अन्तर आत्मा कुछ करने को कहती है तो करियें
विश्वास के पहले पायदान पर चढें ,आपकों पुरी सीढी चढनें की जरूरत नहीं हैं |
सिर्फ पहली सीढी चढें !

शुक्रवार, 16 मई 2014

बोले हुए शब्द वापस नहीं आते

बोले हुए शब्द वापस नहीं आते

 एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया.उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा.
संत ने किसान से कहा , ” तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर  के बीचो-बीच जाकर रख दो .” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया.
तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”
किसान वापस गया पर तब  तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है,तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते.
इस कहानी से क्या सीख मिलती है:
  • कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी चाहिए, पर human nature कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये इंसान कहीं ना कहीं hurt हो ही जाता है.
  • जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए.