सोमवार, 7 जुलाई 2014

आओ फिर एक नई शुरुवात करे


























मंजिल की तरफ लगातार बढ़ने के लिए जरूरी है कि आपकी सोच सकारात्मक हो। सकारात्मक सोच न सिर्फ आपके व्यक्तित्व में चार चांद लगा देता है, बल्कि ये आपको आत्मविश्वास से भी लबरेज रखता है। वहीं नकारात्मक ख्याल न सिर्फ आपको खुद से दूर कर देती है, बल्कि आगे बढ़ने के मार्ग को भी बंद कर देती है। ये पूरी तरह आपके और आपकी सफलता के बीच रोड़ा बन जाती है।


समाज में ऐसे युवाओं की कमी नहीं, जो अपने व्यक्तित्व व करियर को लेकर हीनभावना से ग्रस्त रहते हैं और जिंदगी से इतने निराश हो जाते हैं, मानो कुदरत ने सबसे ज्यादा परेशानियां उनको ही दी हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ऐसे लोग सिर्फ अपनी कमजोरियों को ही याद रखते हैं। तो क्यों न आने वाले साल में जीवन की नई शुरुआत की जाए ताकि असफलता भी सफलता बन आपके कदम चूमे।
जीवन के सफर में मंजिल की तरफ लगातार बढ़ने के लिए जरूरी है कि आपकी सोच सकारात्मक हो। सकारात्मक सोच न सिर्फ आपके व्यक्तित्व में चार चांद लगा देता है, बल्कि ये आपको आत्मविश्वास से भी लबरेज रखता है। वहीं नकारात्मक ख्याल न सिर्फ आपको खुद से दूर कर देती है,बल्कि आपके आगे बढ़ने के मार्ग को भी बंद कर देता है। ये पूरी तरह आपके और आपकी सफलता के बीच रोड़ा बन जाती है। ऐसे में आप चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते।

जीवन हो रंगमय

सकारात्मक सोच का शोर आज चारों ओर है। इस पर काफी-कुछ कहा-सुना जा रहा है और पढ़ने-देखने और सुनने में अच्छा भी लगता है। लेकिन कितने लोग हैं, जो सचमुच इस पर अमल कर पाते हैं। हम खुद रोजमर्रा की जिंदगी में झांकें तो एक दिन में न जाने कितनी बार खुद को दुखी, निराश, तनावग्रस्त करते हैं छोटी-छोटी बातों के लिए। तो क्यों न इस बार सकारात्मक सोच के साथ जीवन में रंग भरने का संकल्प लेकर देंखे। इंसान की सोच अगर संकीर्ण हो, सिर्फ स्वयं पर या अपने लोगों पर ही केंद्रित हो तो सोच धीरे-धीरे नकारात्मक होती चली जाएगी। प्रगतिशील सोच नहीं बन सकेगी। जीवन को बुद्धिमत्ता, जीवंतता और समाजोपयोगी ढंग से नहीं जिया जाए तो क्या इसे सही जीना कह सकते हैं। एक सपाट बदरंग या बेरंग और बेनूर जिंदगी न आप में और न आपके संपर्क में आने वाले किसी व्यक्ति में उत्साह या उल्लास का संचार कर सकेगी। तो साल की शुरुआत करें सकारात्मक सोच के साथ, बी पाजिटिव।

कर भला तो हो भला

आपने अपने बड़ों को ये कहते अवश्य सुना होगा कि दिन भर में एक काम अच्छा जरूर करो। उस एक अच्छे काम की प्रतीक्षा क्यों? शायद आज जरूरत है थोड़ी सी अलग समझ की। कभी अपने अलावा दूसरों के बारे में सोच कर देखें। निराश व्यक्ति के लिए जीवन बेनूर हो जाता है। जीवन उसे निरर्थक और व्यर्थ लगने लगता है। उत्साह, जोश, उमंग जैसे शब्द उसके व्यवहार से गायब ही हो जाते हैं। दुख व परेशानियों के बोझ को ढोने की शक्ति उसमें होती तो है, पर लगातार हताशा में घिरे रहने से उसे लगता है कि वो शक्ति उसमें नहीं रह गई है। ऐसे निराश व्यक्ति की समस्या का हल निकालने का प्रयास करें। उसमें परेशानियों से लड़ने की क्षमता जगाएं। अगर उसे हंसा सकें तो ये कोई छोटी उपलब्धि नहीं है और इससे प्राप्त खुशी कोई छोटी खुशी नहीं है। जरूरत है इसे उपलब्धि मानना और इस तरह की खुशियों को बटोर कर अपने और दूसरों के जीवन को संवारना। अपने लिए तो सभी जीते हैं, क्यों न थोड़ा सा हम दूसरों के लिए भी जी लें। कुछ लमहों के लिए सही, दूसरे के चेहरे पर मुसकान लाने का प्रयास तो करें। ये काम मुश्किल है, पर नामुमकिन नहीं। अपनी इच्छाओं, तकलीफों, दुख-दर्द और परेशानियों को कहीं ताले में बंद कर दें। अपनी सोच में थोड़ा-सा बदलाव लाकर देखिए।

असफलता से कैसा डर

मनोवैज्ञानिक डा. अरुणा ब्रूटा कहती है कि वैसे तो अमूमन लोग नकारात्मक नहीं सोचते, लेकिन लगातार मिल रही असफलता या बार-बार हो रही आलोचनाओं के चलते नकारात्मक भावनाएं उनके ऊपर हावी हो जाती हैं। इससे उनके व्यक्तित्व पर गहरा असर पड़ता है। कई बार तो लोग भावनात्मक रूप से टूट भी जाते हैं और अंदर ही अंदर आत्महीनता की ग्रंथियां निराशावादी सोच को किस तरह बढ़ावा देती चली जाती हैं कि पता भी नहीं चलता। ऐसी स्थिति से निकलने में लोगों को लंबा वक्त लगता है। नकारात्मक विचार धीरे-धीरे लोगों को अपने चंगुल में कसता है। नकारात्मक ख्याल न सिर्फ आपको खुद से दूर कर देते हैं, बल्कि आपके आगे बढ़ने के मार्ग को भी बंद कर देता है। सकारात्मक सोच आपके व्यक्तित्व में चार चांद लगा देता है। नकारात्मक सोच का एक कारण आत्मविश्वास का कमजोर होना भी है। जब हमारे अंदर आत्मविश्वास की कमी होती है, तो हमें किसी की कोई भी बात जल्द बुरी लगती है। ऐसे में न सिर्फ व्यक्तित्व, बल्कि उनके जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। पर अगर हम जीवन में मिलने वाली असफलताओं से सीख लें और सफल होने का प्रयास करें तो ये दिन भी जल्द ही बीत जाएंगे।

खूबियों को पहचानें

मनोवैज्ञानिक डा. समीर पारिख कहते हैं कि हर किसी को अपने अंदर झांक कर देखने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि हर किसी के अंदर कुछ खूबियां भी हैं। जैसे कुछ लोग समझते हैं कि वे मोटे हैं, इसलिए अपनी बात को अच्छे तरीके से नहीं रख पाते। कोई समझता है कि उनकी हाइट कम है, इसलिए उनकी बातों का उतना प्रभाव नहीं हो पाता, तो कोई ये मान बैठता है कि उनकी अंग्रेजी कमजोर है, इसलिए आफिस में अपना प्रभाव छोड़ने में नाकामयाब रखते हैं। दरअसल, खुद के साथ ये सरासर नाइंसाफी है। अगर जीवन में आगे बढ़ना है, मंजिल पानी है, तो ऐसे नकारात्मक विचारों से खुद को आजाद करें और सकारात्मकता विचारों के साथ जीवन को समृद्ध बनाएं।

बदलें नजरिया

खुद को नकारात्मक प्रभाव से मुक्त करना मुश्किल नहीं है, बस हमें चीजों को देखने का नजरिया बदलना होगा। हर घटना के दो पहलू होते हैं। हमें अपने आपको ये प्रशिक्षण देना है कि कैसे हम सकारात्मक पहलू को पहले देखें। सकारात्मक नजरिया अपनाते ही नकारात्मक पहलू कमजोर दिखाई देता है और हम नामुमकिन से लगने वाले काम भी आसानी से कर लेते हैं। हमारा नजरिया ही यह तय करता है कि हम असफलता को किस तरह लेते हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले लोगों के लिए सफलता की ही तरह एक सीढ़ी है असफलता, इसलिए वे हारकर भी जीतने की कला जानते हैं। इस तरह आप नजरिए में थोड़ा बदलाव कर नकारात्मक सोच से छुटकारा पा सकते हैं।

करें नई शुरुआत

स्नेहा बैडमिंटन की बेहतरीन खिलाड़ी है, लेकिन अपनी सांवली सूरत की वजह से वो खुद को बेहद बदसूरत समझती है। ऐसे में अगर कोई उसकी प्रशंसा कर दे, तो उसे लगता है कि वो उसका मजाक उड़ा रहे हैं। डा. ब्रूटा कहती हैं कि स्नेहा की तरह ऐसे कई लोग हैं, जो अपने व्यक्तित्व को लेकर हीनभावना के शिकार होते हैं। कई लोग करियर को लेकर भी हीनभावना से ग्रस्त होते हैं। ये हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि हमें अपने व्यक्तित्व का नकारात्मक पक्ष जल्दी नजर आता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम सिर्फ उसे ही देखें। जिंदगी में अगर संघर्ष है, तो कामयाबी भी है। फिर छोटी-छोटी बातों को लेकर उससे शिकवा क्यों किया जाए। इस तरह आप नकारात्मक पक्षों को नकार कर अपना आत्मविश्वास मजबूत कर सकते हैं। तो इस साल से कीजिए नई सुरुात जो आपके भीतरी व्यक्तित्व के साथ आपके अंदरूनी खूबसूरती को भी बढ़ाने में कारगर साबित होगा।

कुछ ऐसा हो जीवन

एक गीत है, दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है। कहने का तात्पर्य यह है कि आप केवल अपने दोषों को ही नहीं देखें। ऐसे कई लोग हैं, जो आपसे भी बुरी स्थिति में जी रहे हैं। अगर आप महान व्यक्तियों की आत्मकथा पढें, तो पाएंगे कि सारी विषम परिस्थितियों के बावजूद जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। एपीजे अब्दुल कलाम, बराक ओबामा जैसी तमाम शख्सियतें हैं, जिन्होंने सफलता के पहले संघर्ष का लंबा दौर देखा और बाद में भी कई बार आलोचनाओं के शिकार हुए, लेकिन इन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। इसलिए स्वयं की खूबियों का आंकलन करने के लिए आत्मनिरीक्षण करें और ये देखें कि आप कौन सा कार्य सबसे अच्छे ढंग से कर सकते हैं। अपनी उपलिब्धयों को डायरी में लिखें और जब नकारात्मक विचार आप पर हावी होने लगे, तो डायरी पढ़ें। आप पाएंगे कि आपका तनाव कम हो रहा है।

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