रविवार, 12 जनवरी 2014

सफलता के लिए हमारा एकाग्र होना जरूरी है

एक दिन महान सूफी संत बायजीद बुस्तामी अपने रूहानी गुरु के पास बैठे हुए थे। आम बातचीत के बाद गुरु जी ने उनसे खिड़की के पास रखी अपनी एक किताब उठाकर लाने को कहा। बुस्तामी ने गुरु जी से पूछा- 'कौन सी खिड़की? खिड़की कहां है?'
यह सुनकर गुरु जी को बहुत अचंभा हुआ। उन्होंने बुस्तामी से कहा- 'ऐसा कैसे संभव है कि वर्षों से तुम मुझसे यहां मिलने आ रहे हो और तुम्हें यही पता नहीं है कि खिड़की कहां है?'
शिष्य ने जवाब दिया- 'गुरु जी, मैं खिड़की पर ध्यान क्यों दूं? जब जब मैं आपके साथ होता हूं, तो सिर्फ आपको देखता हूं। मैं आपके सिवाय किसी दूसरी चीज की तरफ देखता ही नहीं।'
गुरु जी मुस्कराए और बोले- 'बुस्तामी, तुम अब अपने घर जा सकते हो। मेरे पास रूहानी शिक्षा की तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो चुकी है। तुम अपना लक्ष्य हासिल कर चुके हो।'
किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए हमारा एकाग्र होना बहुत जरूरी है। चाहे हम डॉक्टर बनना चाहें या सर्वोत्तम एथलीट, महान गायक बनना चाहें या कोई कलाकार या एक अमीर व्यापारी, हमें लक्ष्य को पाने के लिए पूरी तरह से एकाग्रचित्त बनना होगा। जिस किसी ने भी अपने जीवन में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की है, उसके जीवन को ध्यान से देखो। हम पाते हैं कि उसमें अपने लक्ष्य के लिए एक अनूठी लगन अवश्य मौजूद रही थी।
आध्यात्मिक विकास का क्षेत्र भी इन विषयों से कुछ अलग नहीं है। यह महत्वपूर्ण है कि जब हम आध्यात्मिक अभ्यास करना शुरू करें, अपनी पूरी एकाग्रता उसमें लगा दें। अपने आपको जानने के लक्ष्य पर हमारा पूरा ध्यान पूरी तरह से लगा रहना चाहिए।

जब हम अपनी आत्मा और प्रभु की खोज में हों तो हमें उन्हीं को खोजने पर बराबर ध्यान देना चाहिए। तब हमारा ध्यान किसी दूसरी चीज पर नहीं रहना चाहिए। किसी भी रूप में कोई भटकन हमारे भीतर मौजूद न हो। जब हम प्रभु के संपर्क में बने हुए हों तो हमें किसी भी अन्य चीज का आभास तक नहीं होना चाहिए। जब हम ऐसा कर पाएंगे तभी प्रभु की मदिरा का पान कर सकेंगे। प्रभु की मदिरा को हमें पूरी तन्मयता से पीना चाहिए। इस मदिरा से अपने आपको पूरी तरह से सरमस्त और सरशार होने देना चाहिए। जब हम ध्यान या अभ्यास में बैठे हों तो हमें अपने सामने दिख रही ज्योति के मध्य में ध्यान टिकाना चाहिए और मन में उठते विचारों पर बिलकुल ध्यान नहीं देना चाहिए। जब हम अंतर में प्रभु के शब्द को सुनें तो हमें उन्हीं शब्द पर ध्यान टिकाकर रखना चाहिए। इस समय हमारे लिए शेष सभी चीजें बेमतलब हो जाएं।

इस प्रकार, कहानी में शिष्य की तरह, हम भी अपने आध्यात्मिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को पूरा कर पाएंगे। तभी हम अपने पसंदीदा लक्ष्य को हासिल कर सकेंगे।
हमें अपने ध्यान-अभ्यास या प्रार्थना में एकाग्रचित्त होकर बैठना चाहिए। हमें किसी भी चीज अथवा भाव को अपनी एकाग्रता में बाधा नहीं बनने देना चाहिए। ऐसा तभी संभव है जब हम अपने आसपास की किसी दूसरी चीज को अपने और ध्यान के बीच आने ही न दें। ध्यान या अभ्यास के दौरान हमें बाहरी संसार की किसी चीज पर या अपने शरीर पर कोई ध्यान नहीं देना चाहिए। यहां तक कि उस वक्त हमें अपने विचारों पर भी कोई ध्यान नहीं देना होगा।

हम प्रभु के दरवाजे पर इस तरह से बैठें जैसे कि हम खुद एक बड़ी आंख बन गए हों। तब प्रेममयी भक्ति के साथ, जो कुछ भी हमें मिलने वाला हो, उसका इंतजार करें। रूहानी रास्ते पर कामयाबी हासिल करने का बस यही एक तरीका है।

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