गणपति बाप्पा मोरिया
गणेशोत्सव
के दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर सोने, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर की
गणेशजी की
प्रतिमा
बनाई जाती है। गणेशजी की इस प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर, मुंह पर कोरा कपड़ा
बांधकर उस पर स्थापित किया जाता है। फिर मूर्ति पर (गणेशजी की) सिंदूर चढ़ाकर
षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए।
गणेशजी का पूजन सायंकाल के समय करना चाहिए। पूजनोपरांत दृष्टि नीची रखते हुए चंद्रमा को अर्घ्य देकर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा भी देनी चाहिए।
इस प्रकार चंद्रमा को अर्घ्य देने का तात्पर्य है कि जहां तक संभव हो गणेश जयंती के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। क्योंकि इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से कलंक का भागी बनना पड़ता है।
अगर दस दिनों तक गणेश स्थापना की सामर्थ्य ना हो तो वस्त्र से ढंका हुआ कलश, दक्षिणा तथा गणेशजी की प्रतिमा किसी पुजारी या आचार्य को समर्पित करके गणेशजी के विसर्जन का विधान उत्तम माना गया है।
गणेशजी का इस तरह पूजन करने से विद्या, बुद्धि की तथा ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही विघ्न-बाधाओं का भी समूल नाश हो जाता है। अगर गणेश दस दिनों तक स्थापित किए हैं तो प्रतिदिन गणेश चतुर्थी की कथा-गणेशजी का पूजन सायंकाल के समय करना चाहिए। पूजन का समय हर दिन एक ही रखें।
कहा जाता है कि श्री गणेश स्थापना दिवस से हर दिन उसी समय पर प्रतीक्षा करते हैं। आरती-पूजनोपरांत प्रसाद का वितरण करें। हो सके तो भगवान गणेश का जयकारा करें।
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