शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

ज्योतिष शास्त्र - एक परिचय

ज्योतिष शास्त्र - एक परिचय

ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। इसे सीखना आसान नहीं है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस शास्त्र को समझना आवश्यक है। सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।
हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति 'द्युत दीप्तों' धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।
छः प्रकार के वेदांगों में ज्योतिष मयूर की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोपरी महत्व को धारण करते हुए मूर्धन्य स्थान को प्राप्त होता है। सायणाचार्य ने ऋग्वेद भाष्य भूमिका में लिखा है कि ज्योतिष का मुख्य प्रयोजन अनुष्ठेय यज्ञ के उचित काल का संशोधन करना है। यदि ज्योतिष न हो तो मुहूर्त, तिथि, नक्षत्र, ऋतु, अयन आदि सब विषय उलट-पुलट हो जाएँ।
ज्योतिष शास्त्र के द्वारा मनुष्य आकाशीय-चमत्कारों से परिचित होता है। फलतः वह जनसाधारण को सूर्योदय, सूर्यास्त, चन्द्र-सूर्य ग्रहण, ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की युति, ग्रह युद्ध, चन्द्र श्रृगान्नति, ऋतु परिवर्तन, अयन एवं मौसम के बारे में सही-सही व महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। इसलिए ज्योतिष विद्या का बड़ा महत्व है।
ज्योतिष का जादू
पहिचानिये सामने वाला किस चिन्ता से ग्रस्त है
अक्सर हम ज्योतिषियों के पास भटकते हैं,और ज्योतिषी अपनी ज्योतिष की कला से आप किस चिन्ता से ग्रस्त हैं,बताकर आप के ह्रदय में एक उथल-पुथल मचा देते हैं,कि आपके मन की बात उनको कैसे पता है ? यह कोई चमत्कार नहीं है,यह केवल ग्रह-गणित है,और जब आप उनके पास पहुंचते हैं,तो वे प्रश्न-कुण्डली बनाकर उस प्रश्न-कुण्डली में स्थित ग्रहों के द्वारा पता कर लेते हैं कि आप किस प्रकार की चिन्ता में हैं। इसके साथ ही अधिकतर लोग ज्योतिषी को भगवान समझ कर पैर पडते हैं,उससे सम्मुख समस्या का समाधान पूँछते हैं,आपकी मनोदशा के अनुसार ज्योतिषी अपने हिसाब से पूजा-पाठ और विभिन्न उपायों से आपसे धन प्राप्त करने का तरीका निकालते हैं। इस प्रकार से जब समस्या का अन्त हो जाता है तो आपके दिमाग में एक ही बात रहती है कि अमुक ज्योतिषी ने आपकी समस्या को समाप्त किया है।
ज्योतिष कोई अजूबा नहीं है। ज्योतिष भी अन्य विषयों की तरह से एक विद्या है,जिस प्रकार से विज्ञान का विद्यार्थी फ़ार्मूला और आंकडों के द्वारा नये नये प्रयोग करने के बाद अपने को समाज के सामने लाकर उच्चता का प्रदर्शन करता है,उसी प्रकार से ज्योतिषी भी आधुनिक कलाओं का सहारा लेकर और रोजाना की जिन्दगी में हर किसी के साथ चलने वाली समस्याओं को पढ कर आपको आपके बारे में बता देता है।
आइये,आपको इस विद्या का मंत्र बताते हैं,जिसके द्वारा ज्योतिषी आपके मन की बात का पता कर लेते है। आप किसी जानकार ज्योतिषी से समय के अनुसार लग्न बनाना सीख लीजिये। अथवा आजकल कम्प्यूटर पर काफ़ी बेवसाइट समय के अनुसार चलने वाली लगनों को वैदिक अथवा पश्चिमी तरीके से बनाकर बता देतीं हैं। जैसे ही आप लगन बनाना सीख गये,समझो आपको ज्योतिष के जादू का पता चल गया। आगे हम आपको इस लगन के द्वारा किस प्रकार से मन की बात को जान सकते है,बताते हैं।
लगन से बायीं तरफ़ ऊपर के खाने से गिनना शुरु कर दीजिये,जो लगन में सबसे ऊपर का खाना है वह पहला भाव कहलाता है,बायीं तरफ़ का दूसरा खाना दूसरा भाव और फ़िर नीचे की ओर देखते है तो तीसरा खाना यह तीसरा भाव है,इसी प्रकार से प्रत्येक खाने को गिनते जाइये और खाने के हिसाब से भाव बनाते जाइये। सभी खाने बारह होते हैं,और बारह खाने ही बारह भाव होते हैं। इन सभी खानों में किसी में सूर्य किसी में चन्द्र किसी में मंगल किसी में बुध और किसी में बृहस्पति शुक्र शनि और राहु केतु ग्रह बैठे होते है। जैसे लगन के पहले खाने से सूर्य सातवें खाने में बैठा है तो वह कहा जायेगा कि सूर्य सातवें भाव में विराजमान है,इसी प्रकार से सभी ग्रहों की स्थिति को एक कागज पर लिख लीजिये।
अब समस्या आती है कि कौन से ग्रह के किस भाव में होने से क्या चिन्ता मिलती है ? इस बात को जानने के लिये नीचे लिखे ग्रह और ग्रह के भाव में होने से मिलने वाली चिन्ता का विवरण है,इसे अपने पास सम्भाल कर रखिये,और समय पर इसका प्रयोग करिये। कुछ समय में आपको पहिचानना आ जायेगा कि सामने वाला किस चिन्ता में है,लो आप बन गये पूरे ज्योतिषी। जैसे ही ग्रह भाव को छोडेगा,उस व्यक्ति की चिन्ता का अन्त हो जायेगा। अब बीच के समय को या तो ज्योतिषी के पास भागने में लगाइये,या फ़िर आराम से चलने वाली चिन्ता का निराकरण अपने अनुसार करिये।
सबसे पहले सूर्य के बारे में बताते हैं कि वह किस भाव में क्या चिन्ता देता है। सूर्य पहले भाव में हो तो किसी के द्वारा कपट करने और छल करने की चिन्ता है,किसी ने झूठ कहकर बदनाम किया है। सूर्य के दूसरे भाव में होने से जो कार्य किया जा रहा है उसके अन्दर लगने वाले धन बल या बाहु बल या भाग्यबल की चिन्ता है,तीसरे भाव में किसी के द्वारा किये जाने वाले झगडे की चिन्ता है,चौथे भाव में किसी के प्रति जलन चल रही है,पांचवें भाव में सन्तान या शिक्षा या खेल की हारजीत की चिन्ता है। छठे भाव में रास्ते में जाते वक्त या आते वक्त कोई काम किया जाना था उसकी चिन्ता है। सातवें भाव में होने पर जीवन साथी या साझेदार के अहम भरे शब्द कहने की चिन्ता है। आठवें भाव में ह्रदय की बीमारी या नौकर के द्वारा काम नहीं करने की चिन्ता है।नवें भाव से विदेश में रहने वाले व्यक्ति की चिन्ता है, दसवें भाव में राज्य या सरकार द्वारा परेशान किये जाने की चिन्ता है,ग्यारहवें भाव में सरकार से या पुत्र अथवा पिता के धन की चिन्ता है,बारहवें भाव में आने जाने वाले रास्ते और शत्रु द्वारा परेशान किये जाने की चिन्ता है।
अब चन्द्रमा के बारे में बताते हैं,कि वह किस भाव में किस प्रकार की चिन्ता देता है। चन्द्रमा पहले भाव में अपने निवास की चिन्ता देता है,दूसरे भाव में धन और विदेश के व्यक्ति या काम की चिन्ता देता है,तीसरे भाव में घर से दूर रहने की चिन्ता और किसी प्रकार के धार्मिक प्रयोजन करने की चिन्ता है,चौथे भाव में कैरियर और मकान अथवा माता या पानी की परेशानी है,पांचवे भाव में संतान अथवा जल्दी से पैसा वाला बनने की चिन्ता,छठे भाव में किये जाने वाले प्रयासों में असफ़लता,सातवें भाव में जीवन साथी या साझेदार के द्वारा किये जाने वाले कपट की चिन्ता,आठवें भाव में मुफ़्त में प्राप्त होने वाले धन और पिता के परिवार से मिलने वाली सम्पत्ति की चिन्ता,नवें भाव में लम्बी दूरी की यात्रा करने या किसी के द्वारा किये गये कपट की कानूनी सहायता प्राप्त नहीं होना,दसवें भाव में वादा खिलाफ़ी की चिन्ता,ग्यारहवें भाव में मित्र द्वारा धोखा देने की चिन्ता,बारहवें भाव से चोरी गया या खोयी चीज की चिन्ता समझनी चाहिये।

1 टिप्पणी:

BharatGurav Astrologer & Vastu Expert ने कहा…

बहुत ही अच्छी तरह से विषय को समझाया है इसके कारण सरल भाषा मे समज मे आता है