बुधवार, 24 दिसंबर 2014

ज्‍योति‍ष सीखें भाग-8



किसी भी अन् विषय की तरह ज्योतिष की अपनी शब्दावली है। ज्योतिष के लेखों को, ज्योतिष की पुस्तकों को आदि समझने के लिए शब्दावली को जानना जरूरी है। सबसे पहले हम भाव से जुड़े हुए कुछ महत्वपूर्ण संज्ञाओं को जानते हैं -
 
भाव संज्ञाएं
 
केन्द्र - एक, चार, सात और दसवें भाव को एक साथ केन्द्र भी कहते हैं।
त्रिकोण - एक, पांच और नौवें भाव को एक साथ त्रिकोण भी कहते हैं।
उपचय - एक, तीन, :, दस और ग्यारह भावों को एक साथ उपचय कहते हैं। 

मारक - दो और सात भाव मारक कहलाते हैं।
दु:स्थान - :, आठ और बारह भाव दु:स्थान या दुष्-स्थान कहलाते हैं।
क्रूर स्थान - तीन, :, ग्यारह


राशि संज्ञाएं
अग्नि आदि संज्ञाएं
अग्नि - मेष  सिंह   धनु
पृथ्वी - वृषभ कन्या  मकर
वायु - मिथुन तुला   कुम्भ
जल - कर्क   वृश्चिक मीन

नोट: मेषादि द्वादश राशियां अग्नि, पृथ्वी, वायु और जल के क्रम में होती हैं। 

चरादि संज्ञाएं
चरमेष,कर्क,      तुला,मकर
स्थिरवृषभ,सिंह,वृश्चिक,कुम्भ
द्विस्वाभावमिथुन,कन्या,धनु,मीन


नोट: मेषादि द्वादश राशियां चर, स्थिर और द्विस्वाभाव के क्रम में होती हैं।

पुरुष एवं स्त्री संज्ञक राशियां
पुरुषमेष,मिथुन,सिंह,तुला,धनु,कुम्भ
स्त्रीवृषभ,कर्क,कन्या,वृश्चिक,मकर,मीन

नोट: सम राशियां स्त्री संज्ञक और विषम राशियां पुरुष संज्ञक होती हैं।

ज्योतिष की पुस्तकों, लेखों आदि को पढ़ते वक्त इस तरह के शब्द लगातार इस्तेमाल किए जाते हैं,इसलिए इस शब्दावली को कंठस्थ कर लेना चाहिए। ताकि पढ़ते वक्त बात ठीक तरह से समझ आए। अगले पाठ में कुछ और महत्वपूर्ण जानकारियों पर बात करेंगे।

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