गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

मनुष्य की कीमत


लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से  पुछा – “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है ?”
पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये.
फिर वे बोले “बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है.”
बालक – क्या सभी उतना ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं ?
पिताजी – हाँ बेटे.
बालक कुछ समझा नही उसने फिर सवाल किया – तो फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है? किसी की कम रिस्पेक्ट तो कीसी की ज्यादा क्यो होती है?
सवाल सुनकर पिताजी कुछ देर तक शांत रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा.
रॉड लाते ही पिताजी ने पुछा – इसकी क्या कीमत होगी?
बालक – 200 रूपये.
पिताजी – अगर मै इसके बहुत से छोटे-छटे कील बना दू तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी ?
बालक कुछ देर सोच कर बोला – तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का .
पिताजी – अगर मै इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो?
बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला ” तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी.”
फिर पिताजी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमे नही है की अभी वो क्या है, बल्की इसमे है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है.”
बालक अपने पिता की बात समझ चुका था .
Friends अक्सर हम अपनी सही कीमत आंकने मे गलती कर देते है. हम अपनी present status को देख कर अपने आप को valueless समझने लगते है. लेकिन हममें हमेशा अथाह शक्ति होती है. हमारा जीवन हमेशा सम्भावनाओ से भरा होता है. हमारी जीवन मे कई बार स्थितियाँ अच्छी नही होती है पर इससे हमारी Value कम नही होती है. मनुष्य के रूप में हमारा जन्म इस दुनिया मे हुआ है इसका मतलब है हम बहुत special और important हैं . हमें हमेशा अपने आप को improve करते रहना चाहिये और अपनी सही कीमत प्राप्त करने की दिशा में बढ़ते रहना चाहिये.

आज ही क्यों नहीं ?

आज ही क्यों नहीं ? 

एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर-सम्मान किया करता था |गुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन  वह शिष्य अपने अध्ययन के प्रति आलसी और स्वभाव से दीर्घसूत्री था |सदा स्वाध्याय से दूर भागने की कोशिश  करता तथा आज के काम को कल के लिए छोड़ दिया करता था | अब गुरूजी कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन-संग्राम में पराजित न हो जाये|आलस्य में व्यक्ति को अकर्मण्य बनाने की पूरी सामर्थ्य होती है |ऐसा व्यक्ति बिना परिश्रम के ही फलोपभोग की कामना करता है| वह शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता और यदि ले भी लेता है,तो उसे कार्यान्वित नहीं कर पाता| यहाँ तक कि  अपने पर्यावरण के प्रति  भी सजग नहीं रहता है और न भाग्य द्वारा प्रदत्त सुअवसरों का लाभ उठाने की कला में ही प्रवीण हो पता है | उन्होंने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक योजना बना ली |एक दिन एक काले पत्थर का एक टुकड़ा उसके हाथ में देते हुए गुरु जी ने कहा –‘मैं तुम्हें यह जादुई पत्थर का टुकड़ा, दो दिन के लिए दे कर, कहीं दूसरे गाँव जा रहा हूँ| जिस भी लोहे की वस्तु को तुम इससे स्पर्श करोगे, वह स्वर्ण में परिवर्तित हो जायेगी| पर याद रहे कि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात मैं इसे तुमसे वापस ले लूँगा|’
 शिष्य इस सुअवसर को पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ लेकिन आलसी होने के कारण उसने अपना पहला दिन यह कल्पना करते-करते बिता दिया कि जब उसके पास बहुत सारा स्वर्ण होगा तब वह कितना प्रसन्न, सुखी,समृद्ध और संतुष्ट रहेगा, इतने नौकर-चाकर होंगे कि उसे पानी पीने के लिए भी नहीं उठाना पड़ेगा | फिर दूसरे दिन जब वह  प्रातःकाल जागा,उसे अच्छी तरह से स्मरण था कि आज स्वर्ण पाने का दूसरा और अंतिम दिन है |उसने मन में पक्का विचार किया कि आज वह गुरूजी द्वारा दिए गये काले पत्थर का लाभ ज़रूर उठाएगा | उसने निश्चय किया कि वो बाज़ार से लोहे के बड़े-बड़े सामान खरीद कर लायेगा और उन्हें स्वर्ण में परिवर्तित कर देगा. दिन बीतता गया, पर वह इसी सोच में बैठा रहा की अभी तो बहुत समय है, कभी भी बाज़ार जाकर सामान लेता आएगा. उसने सोचा कि अब तो  दोपहर का भोजन करने के पश्चात ही सामान लेने निकलूंगा.पर भोजन करने के बाद उसे विश्राम करने की आदत थी , और उसने बजाये उठ के मेहनत करने के थोड़ी देर आराम करना उचित समझा. पर आलस्य से परिपूर्ण उसका शरीर नीद की गहराइयों में खो गया, और जब वो उठा तो सूर्यास्त होने को था. अब वह जल्दी-जल्दी बाज़ार की तरफ भागने लगा, पर रास्ते में ही उसे गुरूजी मिल गए उनको देखते ही वह उनके चरणों पर गिरकर, उस जादुई पत्थर को एक दिन और अपने पास रखने के लिए याचना करने लगा लेकिन गुरूजी नहीं माने और उस शिष्य का धनी होने का सपना चूर-चूर हो गया | पर इस घटना की वजह से शिष्य को एक बहुत बड़ी सीख मिल गयी: उसे अपने आलस्य पर पछतावा होने लगा, वह समझ गया कि आलस्य उसके जीवन के लिए एक अभिशाप है और उसने प्रण किया कि अब वो कभी भी काम से जी नहीं चुराएगा और एक कर्मठ, सजग और सक्रिय व्यक्ति बन कर दिखायेगा.
 मित्रों, जीवन में हर किसी को एक से बढ़कर एक अवसर मिलते हैं , पर कई लोग इन्हें बस अपने आलस्य के कारण गवां देते हैं. इसलिए मैं यही कहना चाहती हूँ कि यदि आप सफल, सुखी, भाग्यशाली, धनी अथवा महान  बनना चाहते हैं तो आलस्य और दीर्घसूत्रता को त्यागकर, अपने अंदर विवेक, कष्टसाध्य श्रम,और सतत् जागरूकता जैसे गुणों को विकसित कीजिये और जब कभी आपके मन में किसी आवश्यक काम को टालने का विचार आये तो स्वयं से एक प्रश्न कीजिये – “आज ही क्यों नहीं ?”

ज्ञान गंगा

 ग्लास को नीचे रख दीजिये 

एक प्रोफ़ेसर ने अपने हाथ में पानी से भरा एक glass पकड़ते  हुए class शुरू की . उन्होंने उसे ऊपर उठा कर सभी students को दिखाया और पूछा , ” आपके हिसाब से glass का वज़न कितना होगा?”
’50gm….100gm…125gm’…छात्रों ने उत्तर दिया.
” जब तक मैं इसका वज़न ना कर लूँ  मुझे इसका सही वज़न नहीं बता सकता”. प्रोफ़ेसर ने कहा. ” पर मेरा सवाल है:
यदि मैं इस ग्लास को थोड़ी देर तक  इसी तरह उठा कर पकडे रहूँ तो क्या होगा ?”
‘कुछ नहीं’ …छात्रों ने कहा.
‘अच्छा , अगर मैं इसे मैं इसी तरह एक घंटे तक उठाये रहूँ तो क्या होगा ?” , प्रोफ़ेसर ने पूछा.
‘आपका हाथ दर्द होने लगेगा’, एक छात्र ने कहा.
” तुम सही हो, अच्छा अगर मैं इसे इसी तरह पूरे दिन उठाये रहूँ तो का होगा?”
” आपका हाथ सुन्न हो सकता है, आपके muscle में भारी तनाव आ सकता है , लकवा मार सकता है और पक्का आपको hospital जाना पड़ सकता है”….किसी छात्र ने कहा, और बाकी सभी हंस पड़े…
“बहुत अच्छा , पर क्या इस दौरान glass का वज़न बदला?” प्रोफ़ेसर ने पूछा.
उत्तर आया ..”नहीं”
” तब भला हाथ में दर्द और मांशपेशियों में तनाव क्यों आया?”
Students अचरज में पड़ गए.
फिर प्रोफ़ेसर ने पूछा ” अब दर्द से निजात पाने के लिए मैं क्या करूँ?”
” ग्लास को नीचे रख दीजिये! एक छात्र ने कहा.
” बिलकुल सही!” प्रोफ़ेसर ने कहा.
Life की problems भी कुछ इसी तरह होती हैं. इन्हें कुछ देर तक अपने दिमाग में रखिये और लगेगा की सब कुछ ठीक है.उनके बारे में ज्यदा देर सोचिये और आपको पीड़ा होने लगेगी.और इन्हें और भी देर तक अपने दिमाग में रखिये और ये आपको paralyze करने लगेंगी. और आप कुछ नहीं कर पायेंगे.
अपने जीवन में आने वाली चुनातियों और समस्याओं के बारे में सोचना ज़रूरी है, पर उससे भी ज्यादा ज़रूरी है दिन के अंत में सोने जाने से पहले उन्हें नीचे रखना.इस तरह से, आप stressed नहीं रहेंगे, आप हर रोज़ मजबूती और ताजगी के साथ उठेंगे और सामने आने वाली किसी भी चुनौती का सामना कर सकेंगे.

रामानुजाचार्य का परिचय (1017-1137 ई.)

वैष्णव आचार्यों में प्रमुख रामानुजाचार्य की शिष्य परम्परा में ही रामानंद हुए थे जिनके शिष्य कबीर और सूरदास थे। रामानुज ने वेदांत दर्शन पर आधारित अपना नया दर्शन विशिष्ट द्वैत वेदान्त गढ़ा था।

रामानुजाचार्य ने वेदांत के अलावा सातवीं-दसवीं शताब्दी के रहस्यवादी एवं भक्तिमार्गी अलवार सन्तों से भक्ति के दर्शन को तथा दक्षिण के पंचरात्र परम्परा को अपने विचार का आधार बनाया। 

1017 ई. में रामानुज का जन्म दक्षिण भारत के तिरुकुदूर क्षेत्र में हुआ था। बचपन में उन्होंने कांची में यादव प्रकाश गुरु से वेदों की शिक्षा ली। रामानुजाचार्य आलवन्दार यामुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। गुरु की इच्छानुसार रामानुज ने उनसे तीन काम करने का संकल्प लिया था:- ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबंधनम की टीका लिखना। उन्होंने गृहस्थ आश्रम त्यागकर श्रीरंगम के यदिराज संन्यासी से संन्यास की दीक्षा ली।

मैसूर के श्रीरंगम से चलकर रामानुज शालग्राम नामक स्थान पर रहने लगे। रामानुज ने उस क्षेत्र में बारह वर्ष तक वैष्णव धर्म का प्रचार किया। फिर उन्होंने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए पूरे देश का भ्रमण किया। 1137 ई. में वे ब्रह्मलीन हो गए।

मूल ग्रन्थ : ब्रह्मसूत्र पर भाष्य 'श्रीभाष्य' एवं 'वेदार्थ संग्रह'।

विशिष्टाद्वैत दर्शन : रामनुजाचार्य के दर्शन में सत्ता या परमसत् के सम्बन्ध में तीन स्तर माने गए हैं:- ब्रह्म अर्थात ईश्वर, चित् अर्थात आत्म, तथा अचित अर्थात प्रकृति। 

वस्तुतः ये चित् अर्थात् आत्म तत्त्व तथा अचित् अर्थात् प्रकृति तत्त्व ब्रह्म या ईश्वर से पृथक नहीं है बल्कि ये विशिष्ट रूप से ब्रह्म का ही स्वरूप है एवं ब्रह्म या ईश्वर पर ही आधारित हैं यही रामनुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत का सिद्धान्त है।

जैसे शरीर एवं आत्मा पृथक नहीं हैं तथा आत्म के उद्देश्य की पूर्ति के लिए शरीर कार्य करता है उसी प्रकार ब्रह्म या ईश्वर से पृथक चित् एवं अचित् तत्त्व का कोई अस्तित्व नहीं हैं वे ब्रह्म या ईश्वर का शरीर हैं तथा ब्रह्म या ईश्वर उनकी आत्मा सदृश्य हैं।

भक्ति से तात्पर्य: रामानुज के अनुसार भक्ति का अर्थ पूजा-पाठ या किर्तन-भजन नहीं बल्कि ध्यान करना या ईश्वर की प्रार्थना करना है। सामाजिक परिप्रेक्ष्य से रामानुजाचार्य ने भक्ति को जाति एवं वर्ग से पृथक तथा सभी के लिए संभव माना है।

प्रेम और परमात्मा

संतो की उपदेश देने की रीति-नीति भी अनूठी होती है. कई संत अपने पास आने वाले से ही प्रश्न करते है और उसकी जिज्ञासा को जगाते है; और सही-सही मार्गदर्शन कर देते है.

आचार्य रामानुजाचार्य एक महान संत एवं संप्रदाय-धर्म के आचार्य थे . दूर दूर से लोग उनके दर्शन एवं मार्गदर्शन के लिए आते थे. सहज तथा सरल रीति से वे उपदेश देते थे.

एक दिन एक युवक उनके पास आया और पैर में वंदना करके बोला :

“मुझे आपका शिष्य होना है. आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिए.”

रामानुजाचार्यने कहा : “तुझे शिष्य क्यों बनना है ?” युवक ने कहा : “मेरा शिष्य होने का हेतु तो परमात्मा से प्रेम करना है.”

संत रामानुजाचार्य ने तब कहा : “इसका अर्थ है कि तुझे परमात्मा से प्रीति करनी है. परन्तु मुझे एक बात बता दे कि क्या तुझे तेरे घर के किसी व्यक्ति से प्रेम है ?”

युवक ने कहा : “ना, किसीसे भी मुझे प्रेम नहीं.” तब फिर संतश्री ने पूछा : “तुझे तेरे माता-पिता या भाई-बहन पर स्नेह आता है क्या ?”

युवक ने नकारते हुए कहा ,“मुझे किसी पर भी तनिकमात्र भी स्नेह नहीं आता. पूरी दुनिया स्वार्थपरायण है, ये सब मिथ्या मायाजाल है. इसीलिए तो मै आपकी शरण में आया हूँ.”

तब संत रामानुज ने कहा : “बेटा, मेरा और तेरा कोई मेल नहीं. तुझे जो चाहिए वह मै नहीं दे सकता.”

युवक यह सुन स्तब्ध हो गया.

उसने कहा : “संसार को मिथ्या मानकर मैने किसी से प्रीति नहीं की. परमात्मा के लिए मैं इधर-उधर भटका. सब कहते थे कि परमात्मा के साथ प्रीति जोड़ना हो तो संत रामानुजके पास जा; पर आप तो इन्कार कर रहे है.”

संत रामानुज ने कहा : “यदि तुझे तेरे परिवार से प्रेम होता, जिन्दगी में तूने तेरे निकट के लोगों में से किसी से भी स्नेह किया होता तो मै उसे विशाल स्वरुप दे सकता था . थोड़ा भी प्रेमभाव होता, तो मैं उसे ही विशाल बना के परमात्मा के चरणों तक पहोंचा सकता था .

छोटे से बीजमें से विशाल वटवृक्ष बनता है. परन्तु बीज तो होना चाहिए. जो पत्थर जैसा कठोर एवं शुष्क हो उस में से प्रेम का झरना कैसे बहा सकता हूँ ? यदि बीज ही नहीं तो वटवृक्ष कहाँ से बना सकता हूँ ? तूने किसी से प्रेम किया ही नहीं, तो तेरे भीतर परमात्मा के प्रति प्रेम की गंगा कैसे बहा सकता हूँ ?”

काहनी का सार ये है कि जिसे अपने निकट के भाई-बंधुओं से प्रेमभाव नहीं, उसे ईश्वर से प्रेम भाव नहीं हो सकता. हमें अपने आस पास के लोगों और कर्तव्यों से मुंह नहीं मोड़ सकते। यदि हमें आध्यात्मिक कल्याण चाहिए तो अपने धर्म-कर्तव्यों का भी उत्तम रीति से पालन करना होगा।

ड्राइविंग लाइसेंस का अधिकार

ड्राइविंग लाइसेंस का अधिकार

मोटर वाहन अधिनियम 1988

इस अधिनियम के अधीन कोई भी व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान में मोटर वाहन नहीं चला सकता है, जब तक कि उसके पास मोटर वाहन अधिनियम 1988 के अधीन जारी किया गया उसके पास वैध लाइसेंस न हो।


ड्राइविंग लाइसेंस के प्रकार

1-लर्नर्स लाइसेंस

मोटर वाहन लाइसेंस के लिए आवेदन करने पर आरटीओ आफिस सबसे पहले लर्नर मोटर वाहन लाइसेंस जारी करता है ।


2-स्थायी लाइसेंस

आरटीओ आफिस लर्नर्स लाइसेंस धारक को 1 महीने के बाद स्थायी मोटर वाहन लाइसेंस जारी करता है ।


लाइसेंस प्राप्त करने की योग्तता


1-स्थायी मोटर वाहन लाइसेंस प्राप्त करने के लिए लर्नर्स लाइसेंस प्राप्त करना बहुत जरुरी है ।


2-50 सीसी क्षमता औऱ बिना गियर वाले वाहन के लिए लर्नर्स लाइसेंस प्राप्त करने की योग्यता 16 साल (अगर आवेदक के माता-पिता या अभिभावक अपनी सहमति दें) है।


3-जबकि निजी मोटर वाहन चलाने के लिए स्थायी लाइसेंस प्राप्त करने की न्यूनतम आयु 18 साल है ।


4-20 साल का व्यक्ति लर्नर्स लाइसेंस प्राप्त करने के बाद वाणिज्यिक वाहन चलाने के लिए लाइसेंस प्राप्त कर सकता है ।


5-वाणिज्यिक वाहन चलाने वाले व्यक्ति को यातायात के नियमों की जानकारी होनी चाहिए।


लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया

1-मोटर वाहन लाइसेंस प्राप्त करने के लिए आपको अपने क्षेत्रीय आरटीओ में आवेदन करना होगा ।


2-लर्नर्स लाइसेंस के लिए आपको क्षेत्रीय आरटीओ में आवेदन करना होगा ।


3-आवेदन में पासपोर्ट आकार की फोटो, आयु, निवास प्रमाण, मेडिकल फिटनेस की घोषणा करना होगा ।


4-आवेदन के साथ ही निर्धारित शुल्क का भुगतान भी करना होगा ।


5-लाइसेंस प्राप्त करने वाले को लर्नर्स की परीक्षा भी देनी होगी ।


6-लर्नर्स की परीक्षा पास करने के बाद आपको लर्नर्स लाइसेंस जारी किया जायेगा ।


7-अगर आप लर्नर्स परीक्षा में असफल हो जाते हैं तो दोबारा आपको परीक्षा देने का मौका दिया जायेगा ।


8-स्थायी लाइसेंस प्राप्त करने के लिए आपके पास वैध लर्नर्स लाइसेंस होना जरुरी है ।


9-स्थायी लाइसेंस के लिए लर्नर्स लाइसेंस जारी होने के 30 दिनों के बाद और 180 दिन के अंदर आवेदन करना होता है ।


10-लाइसेंस प्राप्त करने के लिए आपको वाहन के सिस्टम, ड्राइविंग, यातायात नियमों के बारे में अच्छी जानकारी होनी चाहिए।


11-स्थायी लाइसेंस को प्राप्त करने के लिए आपको वाहन चलाने का टेस्ट देना होगा । जिसके लिए आपको अपना वाहन साथ में लाना होगा।


12-इस टेस्ट को पास करने के बाद आपको स्थायी लाइसेंस जारी कर दिया जायेगा ।

पुलिस और आपका अधिकार

पुलिस और कानूनी अधिकार


पुलिस कौन है?
पुलिस एक ऐसे व्यक्तियों का समूह है जिनका चयन और प्रशिक्षण कानून और व्यवस्था तथा जनता की सुरक्षा और सेवा के लिए किया जाता है ।
पुलिस के काम
  • कानून और व्यवस्था बनाए रखना
  • अपराध का निवारण करना
  • अपराध की जांच करना
  • संज्ञेय अपराध करने वाले अभियुक्त की गिरफ्तारी करना
  • किसी व्यक्ति के जान, माल औऱ आजादी की सुरक्षा करना
  • किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किए गए हर कानूनी आदेश और वारंट को निष्पादित करना
पुलिस का प्रशासनिक ढांचा
  • एसएचओ (पुलिस थाने का इंचार्ज होता है )
  • डीएसपी (सब डिविजन का पुलिस अधिकारी होता है जबकि मेट्रोपोलिटन शहरों में असिस्टेंट कमिश्नर कहा जाता है ,एसएचओ के काम की देखरेख करता है)
  • एसपी (एक जिले की कानून और व्यवस्था में डीएम की मदद करता है)
  • एसएसपी(एक जिले के पुलिस प्रशासन का इंचार्ज होता है , जो जिला मजिस्ट्रेट के मार्गदर्शन और पर्यवेक्षण में काम करता है, जबकि मेट्रोपोलिटन शहरों में डिप्टी कमिश्नर इंचार्ज होता है, इसकी मददअसिस्टेंट कमिश्नर करता है )
  • डीआईजीपी (एक राज्य के के तीन चार जिलों का इंचार्ज होता है )
  • आईजीपी या डीजीपी (राज्य स्तर के पुलिस प्रशासन का इंचार्ज होता है)
संघ शासित पुलिस प्रशासन
  • संघ शासित क्षेत्र में पुलिस प्रणाली की देखरेख केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी द्वारा किया जाता है । ये अधिकारी आईजीपी के सारे अधिकारों का इस्तेमाल कर सकता है ।
प्रथम सूचना रिपोर्ट(एफआईआऱ)
पुलिस थाने या चौकी में दर्ज की  गयी ऐसी पहली अपराध की रिपोर्ट को प्रथम सूचना रिपोर्ट या एफआईआर कहा जाता है।
  • हर व्यक्ति अपने तरीके से अपराध के उस समय ज्ञात ब्योरे देते हुए रिपोर्ट लिखवा सकता है ।
  • पुलिस इस एफआईआऱ को अपने रिकॉर्ड में दर्ज कर लेगी और पावती के रुप में एक प्रति रिपोर्ट दर्ज कराने वाले को देगी।
  • पुलिस सभी प्रकार के अपराधों की रिपोर्ट दर्ज करती है , लेकिन केवल संज्ञेय अपराधों के मामलों में ही पुलिस स्वयं जांच पड़ताल कर सकती है ।
  • असंज्ञेय अपराधों के मामलों में पुलिस पहले मामले को मजिस्ट्रेट को पेश करती है और उससे आदेश प्राप्त होने के बाद ही वह जांच-पड़ताल शुरु कर सकती है ।
  • अगर थाने में मौजूद पुलिस कर्मचारी/अधिकारी रिपोर्ट लिखने से मना कर दे तो शिकायतकर्ता उस क्षेत्र के पुलिस अधीक्षक या उप पुलिस अधीक्षक को डाक से रिपोर्ट भेज सकता है ।
  •  अगर रिपोर्ट लिखवाने वाला/वाली अनपढ़ हो तो ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारी उसके बताए विवरण के मुताबिक उसकी ओर से रिपोर्ट लिखनी चाहिए और उसे पढ़कर सुनानी चाहिए।
  • ऐसी एफआईआर को सुनकर शिकायतकर्ता करने वाला/वाली रिपोर्ट पर अपने अंगूठे का निशान लगा सकता/सकती है।
  • अगर शिकायतकर्ता को लगता है कि रिपोर्ट में तथ्य ठीक नहीं लिखे गये हैं तो वह रिपोर्ट लिखने वाले पुलिस अधिकारी से आवश्यक संशोधन करने को कह सकता है ।
एफआईआर में निम्नलिखित विषय हों
  • अभियुक्त का नाम और पता हो
  • अपराध होने का दिन,स्थान तथा समय हो
  • अपराध करने का तरीका तथा उसके पीछे नीयत आदि हो
  • साक्षी का परिचय हो
  • अपराध से सम्बद्ध सभी विशेषताएं हों
 परिवाद क्या है? 
  • किन्ही व्यक्ति या व्यक्तियों (जानकार या अनजान) के विरुद्ध मौखिक या लिखित रुप में मजिस्ट्रेट को किया गया आरोप है ताकि मजिस्ट्रेट उनके विरुद्ध  विधिक कार्यवाही कर सकें।
  • जब पुलिस अधिकारी एफआईआर के आधार पर कार्यवाही नहीं करता है, तब व्यथित व्यक्ति उस मजिस्ट्रेट को परिवाद कर सकता है , जिसे उस अपराध पर संज्ञान लेने की अधिकारिता है ।
परिवाद के विषय वस्तु
  • कथित अपराध का विवरण हो
  • अभियुक्त तथा परिवादी का नाम तथा पता हो
  • साक्षियों के नाम तथा पते हों
आत्मरक्षा का अधिकार क्या है ?
  • हर व्यक्ति को आईपीसी की धारा 96 से लेकर धारा 106 द्वारा दिए गए अधिकार हैं कि वह अपने अथवा अन्य व्यक्ति के शरीर या संपत्ति की अन्य व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह के हमले से रक्षा करे।
गिरफ्तारी के कानून
पुलिस किसी भी व्यक्ति पर अपराध का आरोप होने पर ही उसे गिरफ्तार कर सकती है । केवल शिकायत अथवा शक के आधार पर किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है ।
वारंट क्या है ?
  • वारंट न्यायालय द्वारा जारी किया गया तथा न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित एक लिखित आदेश है।
  • हर वारंट तब तक प्रवर्तन में रहेगा जब तक वह उसे जारी करने वाले न्यायालय द्वारा रद्द नहीं कर दिया जाता या जब तक वह निष्पादित नहीं कर दिया जाता है ।
जमानती वारंट क्या है?
  • जमानती वारंट न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए जारी किया गया वारंट है, जिसमें यह पृष्ठांकित है कि जमानत की शर्तें पूरी करने के बाद उसे जमानत दी जा सकती है । इस मामले में पुलिस जमानत देने की हकदार है , अगर गिरफ्तार व्यक्ति शर्तें पूरी करे।
गैरजमानती वारंट क्या है ?
  • गैरजमानती वारंट किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए न्यायालय द्वारा जारी वारंट है । इस मामले में पुलिस अधिकारी जमानत देने के लिए प्राधिकृत नहीं है । जमानत प्राप्त करने के लिए गिरफ्तार व्यक्ति को सम्बद्ध न्यायालय में आवेदन करना होगा।
बिना वारंट के गिरफ्तारी
  • अभियुक्त पर संज्ञेय अभियोग हो या उसके खिलाफ ठोस शिकायत की गयी या ठोस जानकारी मिली हो या अपराध में उसके शामिल होने का ठोस शक हो,
  • अभियुक्त के पास सेंध लगाने का कोई औजार पकड़ा जाए और वह ऐसे औजार के अपने पास होने का समुचित कारण नहीं बता सके,
  • अभियुक्त के पास ऐसा सामान हो जिसे चोरी का समझा जाने के कारण हो अथवा जिस व्यक्ति पर चोरी करने या चोरी के माल खरीद-फरोख्त करने का शक करना वाजिब लगे।
  • अभियुक्त घोषित अपराधी हो ,
  • अभियुक्त किसी पुलिस अधिकारी के कर्तव्य पालन में बाधा पहुंचाए,
  • अभियुक्त पुलिस/कानूनी हिरासत से फरार हो जाए,
  • अभियुक्त के खिलाफ पक्का संदेह हो कि वह सेना का भगोड़ा है,
  • अभियुक्त छोड़ा गया अपराधी हो, लेकिन उसने फिर कानून तोड़ा हो,
  • अभियुक्त संदेहास्पद चाल-चलन का हो या आदतन अपराध करने वाला हो,
  • अभियुक्त पर असंज्ञेय अभियोग हो और वह अपना नाम-पता नहीं बता रहा हो।
गिरफ्तारी के लिए मजिस्ट्रेट का वारंट
  • व्यक्ति को किसी भी मामले में गिरफ्तार करने के दौरान उसका अपराध तथा गिरफ्तारी का आधार बताया जाना चाहिए।
  • उसे यह भी बताया जाना चाहिए कि उस अभियोग पर उसे जमानत पर छोड़ा जा सकता है या नहीं ।
  • गिरफ्तारी के समय व्यक्ति पुलिस से वकील की मदद लेने की इजाजत मांग सकता है । उसके मित्र, संबंधी भी उसके साथ थाने तक जा सकते हैं ।
  • अगर व्यक्ति गिरफ्तारी का प्रतिरोध नहीं कर रहा हो तो गिरफ्तारी के समय पुलिस उससे दुर्व्यवहार नहीं कर सकती है, ना ही मारपीट कर सकती है ।
  • अगर वह पुराना अपराधी नहीं है या उसके हथकड़ी नहीं लगाने पर भाग जाने का खतरा नहीं है , तो गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को हथकड़ी नहीं पहनाई जा सकती है ।
  • अगर किसी महिला को गिरफ्तार किया जाना है , तो पुलिस का सिपाही उसे छू तक नहीं सकता है ।
  • गिरफ्तारी के तुरंत बाद व्यक्ति को थाने के प्रभारी अथवा मजिस्ट्रेट के पास लाया जाना चाहिए।
  • किसी भी स्थिति में , गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना चाहिए।( इसमें गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के पास लाए जाने का समय शामिल नहीं है)
  • किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना, 24 घंटे से ज्यादा समय तक पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता है।
  • गिरफ्तार व्यक्ति डॉक्टर द्वारा अपने शरीर की चिकित्सा परीक्षण की मांग कर सकता है ।
पुलिस हिरासत
  • अगर कोई पुलिसकर्मी हिरासत में किसी व्यक्ति को सताता है या यातना देता है तो उस व्यक्ति को पुलिसकर्मी की पहचान कर उसके खिलाफ आपराधिक आरोप दर्ज करने चाहिए
  • अगर हिरासत मे महिला के साथ बलात्कार तथा यौन संबंधी अन्य दुर्व्यवहार होता है तो उसे तुरंत डॉक्टरी जांच की मांग करनी चाहिए तथा मजिस्ट्रेट से शिकायत करनी चाहिए।
  • किसी महिला को केवल महिलाओं वाले लॉक अप में रखा जाना चाहिए।
  • अगर किसी थाने में ऐसी व्यवस्था नहीं है तो हिरासत में ली गयी महिला को मांग करनी चाहिए कि उसे ऐसे थाने में भेजा जाए जहां महिलाओं के लिए लॉक अप हो।
उच्चतम न्यायालय के निर्देश
  • गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी गिरफ्तारी औऱ हिरासत में लिए जाने की सूचना अपने मित्र, संबंधी या किसी अन्य व्यक्ति को देने का अधिकार है ।
  • गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर थाने ले जाते समय उसे सूचना देने के अधिकार की अवश्य जानकारी देनी चाहिए
  • जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति ने अपनी गिरफ्तारी की जानकारी दी है , उसका नाम पुलिस डायरी में दर्ज किया जाना चाहिए।
जमानत का अधिकार
जमानत क्या है? 
जमानत गिरफ्तार व्यक्ति को कुछ शर्तों पर पुलिस या न्यायिक अभिरक्षा से मुक्त करने की अनुमति है ।
  • अगर अपराध गैर-जमानती नहीं है तो पुलिस को गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत पर छोड़ना ही होगा। 
  • अगर पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट पर्याप्त समझे तो व्यक्ति को निजी मुचलके या बंध-पत्र पर भी छोड़ा जा सकता है ।
  • जमानत और मुचलके पर रिहा व्यक्ति को जब भी अफसर या अदालत तलब करे, हाजिर होना होगा।
प्रतिभु (जमानतदार) क्या होते हैं?
प्रतिभु वे व्यक्ति होते हैं जो मुक्त किए गए व्यक्ति की आवश्यकतानुसार थाने या न्यायालय में उपस्थित प्रत्याभूत करते हैं । अगर मुक्त किया गया व्यक्ति पुलिस थाने या न्यायालय में उपस्थित नहीं होता है तो उसे वह रकम अदा करने के लिए समर्थ होना चाहिए, जिसके लिए वह प्रतिभु है।

पुलिस की जांच
  • अपराध की जांच के दौरान पुलिस आपसे पूछताछ करे तो आपको अपनी जानकारी की बातें सही-सही बताते हुए पुलिस के साथ सहयोग करना चाहिए।
  • संभव हो तो आपको अपराध का सुराग भी पुलिस को देना चाहिए और जुबानी पूछताछ का उचित जवाब देना चाहिए।
  • आपके लिए न तो किसी लिखित बयान पर दस्तखत करना जरुरी है, न ही आपको वे सब बातें लिखकर देनी होती हैं जो आपने जुबानी बताई हैं ।
पुलिस पूछताछ
  • अभियुक्त को पूछताछ के दौरान पुलिस से सहयोग करना चाहिए।
  • अभियुक्त को सावधान भी रहना चाहिए कि पुलिस उसे झूठे मामले में न फंसाए।
  • अभियुक्त को किसी कागज पर बिना पढ़े अथवा उसमें लिखी बातों से सहमत हुए बिना हस्ताक्षर नहीं करने चाहिए।
  • किसी महिला और 15 साल से छोटे पुरुष को पूछताछ के लिए घर से बाहर नहीं ले जाया जा सकता है । उनसे घर पर ही पूछताछ की जा सकती है ।
  • व्यक्ति मजिस्ट्रेट से अनुरोध कर सकता है कि उससे पूछताछ का उचित वक्त दिया जाए।
  • पूछताछ के दौरान व्यक्ति ऐसे किसी सवाल का जवाब देने से मना कर सकता है , जिससे उसे लगे कि उसके खिलाफ आपराधिक मामला बनाया जा सकता है ।
  • व्यक्ति पूछताछ के दौरान कानूनी या अपने किसी मित्र की सहायता की मांग कर सकता है और आम तौर पर ऐसी सहायता की मांग पुलिस मान लेती है।
तलाशी के लिए वारंट
  • अदालत या मजिस्ट्रेट के तलाशी वारंट के बिना पुलिस किसी के घर की तलाशी नहीं ले सकती है ।
  • आमतौर पर चोरी के सामान, फर्जी दस्तावेज, जाली मुहर, जाली करेंसी नोट, अश्लील सामग्री तथा जब्तशुदा साहित्य की बरामदगी के लिए तलाशी ली जाती है ।
  • पुलिस अधिकारी को तलाशी के स्थान पर मौजूद संदिग्ध व्यक्तियों और वस्तुओं की तलाशी लेने देनी चाहिए।
  • तलाशी और माल की बरामदगी इलाके के दो निष्पक्ष तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियों की उपस्थिति में की जानी चाहिए।
  • पुलिस को जब्त सामान की ब्योरा देते हुए पंचनामा तैयार करना चाहिए। इस पर दो स्वतंत्र गवाहों के भी हस्ताक्षर होने चाहिए और इसकी एक प्रति उस व्यक्ति को भी दी जानी चाहिए जिसके घर/इमारत की तलाशी ली गयी हो।
  • तलाशी लेने वाले अधिकारी की भी , तलाशी शुरु करने से पहले , तलाशी ली जा सकती है ।
  • कोई पुरुष किसी महिला की शारीरिक तलाशी नहीं ले सकता है, लेकिन वह महिला के घऱ या कारोबार के स्थान की तलाशी ले सकता है ।
न्यायालय का समन
  • समन न्यायालय द्वारा जारी लिखित आदेश है । जिसके द्वारा न्यायालय किसी विवाद या आरोप से संबद्ध प्रश्नों का उत्तर देने के लिए किसी व्यक्ति को न्यायालय में उपस्थिति होने के लिए बाध्य कर सकता है ।
  • अगर व्यक्ति समन स्वीकार करने से मना करे या न्यायालय के समक्ष अनुपस्थित हो तो न्यायालय गिरफ्तारी का वारंट जारी कर सकता है ।

उपभोक्ता के अधिकार

उपभोक्ता अधिकार
चुनने का अधिकार
 अर्थात जहां संभव हो विभिन्न किस्म की वस्तुओं तथा सेवाओं की प्रतिस्पर्धी मूल्यों पर सुलभता का आश्वासन पाने का अधिकार/एकाधिकार के मामले में इसका अभिप्राय उचित मूल्य पर संतोषजनक गुणवत्ता और सेवा का आश्वासन पाने का अधिकार है । इसमें बुनियादी वस्तुओं तथा सेवाओं का अधिकार भी शामिल है । ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रश्न चयन हेतु अल्पसंख्यकों के अप्रतिबंधित अधिकार के कारण बहु-संख्यकों को उनका समुचित हिस्सा नहीं मिल पाएगा ।  इस अधिकार का बेहतर उपयोग उस प्रतिस्पर्धात्मक बाजार में किया जा सकता है जहां विभिन्न किस्म की वस्तुएं प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर उपलब्ध होती हैं ।


सूचित किए जाने का अधिकार
 अर्थात माल की गुणवत्ता, मात्रा, प्रमाणिकता, प्रभाविकता, शुद्घता, मानक और मूल्य के बारे में सूचित किए जाने का अधिकार ताकि अनुचित व्यापारिक व्यवहार से उपभोक्ताओं को बचाया जा सके ।
 उपभोक्ता को चयन करने अथवा निर्णय लेने से पहले उत्पाद अथवा सेवा के बारे में सभी प्रकार की सूचना प्राप्त करने पर जोर देना चाहिए ।  इससे वह बुद्घिमता, जिम्मेदारी से कार्य कर सकेगा और वह विक्रेता की माल बेचने की कला का शिकार होने से बच सकेगा ।
सुने जाने का अधिकार
 अर्थात उपभोक्ता हितों पर उपयुक्त मंचों में समुचित रूप से विचार किया जाएगा । इसमें उपभोक्ता कल्याण पर विचार करने के लिए गठित विभिन्न मंचों में प्रतिनिधित्व का अधिकार भी शामिल है ।
 अपेक्षाओं को गैर राजनीतिक तथा गैर वाणिज्यिक संगठन बनाने चाहिए जिनको उपभोक्ताओं से संबंधित मामलों में सरकार द्वारा गठित विभिन्न समितियों तथा अन्य निकायों में प्रतिनिधित्व दिया जा सके ।
सुरक्षा का अधिकार
 अर्थात माल और सेवाओं के विपणन से संरक्षण का अधिकार जो जान-माल के लिए खतरनाक हों ।  खरीदी गई वस्तुएं और ली गई सेवाएं, से उनकी तात्कालिक जरूरतें ही पूरी न हों, अपितु उनके दीर्घकालिक हितों की भी पूर्ति हो ।
 खरीद से पूर्व उपभोक्ता को उत्पादों की गुणवत्ता तथा उत्पादों और सेवाओं की गारंटी पर भी जोर देना चाहिए । उनको अधिमानतः आई एस आई, एगमार्क आदि जैसे गुणवत्ता चिह्न वाले उत्पाद खरीदने चाहिए ।
प्रतितोष पाने का अधिकार
 अर्थात अनुचित व्यापार व्यवहारों अथवा बेईमानीपूर्वक उपभोक्ताओं के शोषण के विरुद्घ प्रतितोष प्राप्त करने का अधिकार । इसमें उपभोक्ताओं की वास्तविक शिकायतों का उचित समाधान का अधिकार भी शामिल है ।
 उपभोक्ता अपनी वास्तविक शिकायत की अवश्य रिपोर्ट करें ।  कई बार उनकी शिकायत बहुत कम मूल्य की हो सकती है किन्तु समूचे समाज पर उसका बहुत अधिक प्रभाव  पड सकता । अपनी शिकायतों के प्रतितोष के लिए वे उपभोक्ता संगठनों की सहायता भी ले सकते हैं ।
उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
 अर्थात जीवन भर सूचित उपभोक्ता बने रहने के लिए ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अधिकार । उपभोक्ताओं, विशेष रूप से ग्रामीण उपभोक्ताओं की अज्ञानता उनके शोषण के लिए जिम्मेदार है ।  उन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान होना चाहिए और उन्हें उनका प्रयोग करना चाहिए तभी सफलतापूर्वक वास्तविक उपभोक्ता संरक्षण हासिल किया जा सकता है ।

ओर अधिक जानकारी के लिए यहा जाये  http://consumeraffairs.nic.in/consumer/?q=hi/node/498

ये नंबर बड़े काम के हैं



बच्चे ने बोलना सीखा नहीं कि उसे नंबर्स और लेटर्स सिखाने का सिलसिला शुरू हो जाता है लेकिन क्या आपने कभी अपने बच्चे के मूलांक अर्थात बर्थ नंबर पर ध्यान दिया है? अंक ज्योतिष में मूलांक जन्म की तारीख के अनुसार 1 से 9 माने जाते हैं। प्रत्येक अंक व्यक्ति का मूल स्वभाव दिखाता है। बच्चे का मूल स्वभाव जानकर ही माता-पिता उसे सही तालीम दे सकते हैं। तो क्लिक करिए और देखिए कि आपके बच्चे को कैसी परवरिश की जरूरत है...


मूलांक 1 (1, 10 19, 28): ये बच्चे क्रोधी, जिद्‍दी और अहंकारी होते हैं। अच्छे प्रशासनिक अधिकारी बनते हैं। ये बच्चे तर्क से ही मानते हैं इसलिए डांट-डपट नहीं सहेंगे। इन्हें तर्क देकर प्यार से समझाएं।


मूलांक 2 (2, 11, 20, 29): ये शांत, समझदार, भावुक और होशियार होते हैं। माता-पिता की सेवा करते हैं। जरा सा तेज बोलना इन्हें ठेस पहुंचाता है। इनसे शांति और समझदारी से बात करें।



मूलांक 3 (3, 12, 21,30): ये समझदार और ज्ञानी होने के साथ ही घमंडी भी होते हैं। अच्‍छे सलाहकार बनते हैं। इन्हें समझाने के लिए पर्याप्त कारण व ज्ञान होना जरूरी है।




मूलांक 4 (4, 13, 22): बेपरवाह, खिलंदड़े और कारस्तानी होते हैं। रिस्क लेना इनका स्वभाव होता है। इन्हें अनुशासन में रखना जरूरी है नहीं तो ये व्यसनाधीन हो सकते हैं।




मूलांक 5 (5, 14, 23): ये बच्चे बुद्धिमान, शांत और आशावादी होते हैं। रिसर्च के कामों में रुचि लेते हैं। इसलिए इन्हें पढ़ना भी अच्छा लगता है। इनके साथ धैर्य से और शांति से बातचीत करें।



मूलांक 6 (6, 15, 24): इस मूलांक के बच्चे हंसमुख, शौकीन मिजाज और कलाप्रेमी होते हैं। 'खाओ-पियो, ‍मस्त रहो' के सूत्र पर जीते हैं। इन्हें सही संस्कार और सही दिशा-निर्देश देना जरूरी है।



मूलांक 7 (7, 16, 25): भावुक, निराशावादी, तनिक स्वार्थी लेकिन तीव्र बुद्धि के होते हैं। व्यसनाधीन जल्दी होते हैं। कलाकार हो सकते हैं। इन्हें कड़े अनुशासन के साथ सही मार्गदर्शन की जरूरत होती है।


मूलांक 8 (8, 17, 26): भावुक, अति व्यावहारिक, मेहनती और व्यापार बुद्धि वाले होते हैं, इसलिए थोड़े स्वार्थी भी होते हैं। जीवन में देर से गति आती है। इन्हें सतत सहयोग और अच्छे साथियों की जरूरत होती है।


मूलांक 9 (9, 18, 27): ऊर्जावान, शैतान और तीव्र बुद्धि के विद्रोही बच्चे होते हैं। इनकी माता-पिता से अधिक नहीं बनती है। प्रशासन में कुशल होते हैं। इनकी ऊर्जा को सही दिशा देना और इन्हें समझना जरूरी होता है।

बचपन की बात


जब हम छोटे थे तो स्कूल में या अपने यार दोस्तों के बीच एक शब्द कई बार सुनते थे कि, "तीन तिगड़ी,,बात बिगड़ी" इसका मतलब हुआ कि आप अपना कोई भी काम औने -पौने में ना करें ! बड़े हुए तो देखा घर में " माँ " कभी भी थाली में तीन रोटियां नहीं रखती थी , रखती थीं दो या चार ! आज भी शायद यही स्थिती है हम सब के घरों में ! ये कोई शगुन है या अपशगुन आज तक समझ नहीं आया ! मेरी नजर में चाहे एक हो या दो या हों तीन या चार सबका अपना -अपना अलग महत्त्व होता है ! आप जानते हैं भगवान् शिव को "त्रिनेत्र" कहा जाता है ! इंसान के जीवन में तीन का भी बहुत महत्त्व है ! महत्व तो बहुत सी चीजों का होता है बस फर्क सिर्फ इतना है कि हम उन्हें कितना महत्त्व देते हैं ! इंसान के जीवन से जुड़े "तीन" को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए !

इंसान के जीवन से जुडी कुछ चीजें यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ! 

इंसान के जीवन तीन चीजें ऐसी हैं जो उसे सिर्फ एक बार मिलती हैं
१. माता-पिता (इंसान की उत्पत्ति इन्हीं से होती है , ईश्वर से बढकर है ये )
२. जवानी (इंसान के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय , जीत सको तो जग जीत लो )
३. हुस्न (जवानी के साथ हुस्न भी अनमोल है , हुस्न गया सब गया, हुस्न के लाखों रंग - कौनसा रंग देखोगे )


तीन चीजें इंसान को बहुत सोच समझकर उठानी चाहिए !
१. कदम (आपका उठाया गया एक गलत कदम आपका जीवन नष्ट एवं बर्वाद कर सकता है )
२. कसम (वादा करो तो ऐसा की " प्राण जाए पर वचन ना जाये " )
३. कलम (कलम की ताकत को हम सब अच्छी तरह से जानते हैं , उठाओ सच्चाई के लिए ना की झूंठ के लिए
तीन चीजें इंसान को बहुत सोच समझ का करना चाहिए ,
एक गलती जीवन भर भुगतान 

१. मोहब्बत (आज-कल मोहब्बत अंधी होती है , अब इसके बारे में क्या कहूं ? )
२. बात (अब बात कम बतंगड़ ज्यादा होता है वो भी गाली-गलौच और अशिष्ट )
३. फैंसला (आजकल सब्र पूरी तरह खत्म हो चुका है , फैंसला " ON THE SPOT " )

इंसान के जीवन में तीन चीजें कभी इन्तजार नहीं करती 
१. मौत (रोज -रोज होते सड़क हादसों से लें सबक )
२. वक़्त (लोहा जब गर्म हो तो हतौड़ा मार देना चाहिए , वर्ना " पछतावे होत का जब चिड़िया चुग गयीं खेत " )
३. उम्र (उम्र कभी किसी का इन्तजार नहीं करती , जाग वन्दे अब ना जागेगा तो कब जागेगा )

इंसान को इन तीन चीजों को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए
 १. कर्ज (किसान का पूरा जीवन कर्ज में ही निकल जाता है )
२. फर्ज (फर्ज पर कुर्बान देश भक्तों को सलाम )
३. मर्ज़ (एक चींटी हांथी पर भारी पड़ जाती है )

इंसान को दर्द होता है इन तीन चीजों से
१. धोखा (आज पल -पल पर धोखा खाता इंसान , धोखा अब इंसानी फितरत बन गया है )
२. बेबसी (उफ्फफ्फ्फ़ ये बेबसी कब दूर होगी )
३. बेवफा (तेरी बेवफाई में ऐ सनम दिल दिया दर्द लिया )

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

कैसे ले सूचना के अधिकार का फायदा

आरटीआई (राइट टु इन्फर्मेशन) यानी सूचना का अधिकार ने आम लोगों को मजबूत और जागरूक बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। जम्मू-कश्मीर को छोड़कर यह कानून देश के सभी हिस्सों में लागू है। इस कानून के जरिए कैसे आप सरकारी महकमे से संबंधित अपने काम की जानकारी पा सकते हैं, बता रहे हैं अनिल शर्मा

आरटीआई कानून का मकसद

- इस कानून का मकसद सरकारी महकमों की जवाबदेही तय करना और पारदर्शिता लाना है ताकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके। यह अधिकार आपको ताकतवर बनाता है। इसके लिए सरकार ने केंदीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों का गठन भी किया है।

- ‘सूचना का अधिकार अधिनियम 2005′ के अनुसार, ऐसी जानकारी जिसे संसद या विधानमंडल सदस्यों को देने से इनकार नहीं किया जा सकता, उसे किसी आम व्यक्ति को देने से भी इनकार नहीं किया जा सकता, इसलिए अगर आपके बच्चों के स्कूल के टीचर अक्सर गैर-हाजिर रहते हों, आपके आसपास की सड़कें खराब हालत में हों, सरकारी अस्पतालों या हेल्थ सेंटरों में डॉक्टर या दवाइयां न हों, अफसर काम के नाम पर रिश्वत मांगे या फिर राशन की दुकान पर राशन न मिले तो आप सूचना के अधिकार यानी आरटीआई के तहत ऐसी सूचनाएं पा सकते हैं।

- सिर्फ भारतीय नागरिक ही इस कानून का फायदा ले सकते हैं। इसमें निगम, यूनियन, कंपनी वगैरह को सूचना देने का प्रावधान नहीं है क्योंकि ये नागरिकों की परिभाषा में नहीं आते। अगर किसी निगम, यूनियन, कंपनी या एनजीओ का कर्मचारी या अधिकारी आरटीआई दाखिल करता है है तो उसे सूचना दी जाएगी, बशर्ते उसने सूचना अपने नाम से मांगी हो, निगम या यूनियन के नाम पर नहीं।

- हर सरकारी महकमे में एक या ज्यादा अधिकारियों को जन सूचना अधिकारी (पब्लिक इन्फर्मेशन ऑफिसर यानी पीआईओ) के रूप में अपॉइंट करना जरूरी है। आम नागरिकों द्वारा मांगी गई सूचना को समय पर उपलब्ध कराना इन अधिकारियों की जिम्मेदारी होती है।

- नागरिकों को डिस्क, टेप, विडियो कैसेट या किसी और इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंटआउट के रूप में सूचना मांगने का हक है, बशर्ते मांगी गई सूचना उस रूप में पहले से मौजूद हो।

- रिटेंशन पीरियड यानी जितने वक्त तक रेकॉर्ड सरकारी विभाग में रखने का प्रावधान हो, उतने वक्त तक की सूचनाएं मांगी जा सकती हैं।

ये विभाग हैं दायरे में

- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री दफ्तर
- संसद और विधानमंडल
- चुनाव आयोग
- सभी अदालतें
- तमाम सरकारी दफ्तर
- सभी सरकारी बैंक
- सारे सरकारी अस्पताल
- पुलिस महकमा
- सेना के तीनों अंग
- पीएसयू
- सरकारी बीमा कंपनियां
- सरकारी फोन कंपनियां
- सरकार से फंडिंग पाने वाले एनजीओ

इन पर लागू नहीं होता कानून

- किसी भी खुफिया एजेंसी की वैसी जानकारियां, जिनके सार्वजनिक होने से देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरा हो
- दूसरे देशों के साथ भारत से जुड़े मामले
- थर्ड पार्टी यानी निजी संस्थानों संबंधी जानकारी लेकिन सरकार के पास उपलब्ध इन संस्थाओं की जानकारी को संबंधित सरकारी विभाग के जरिए हासिल कर सकते हैं

राजधानी में आरटीआई

दिल्ली सरकार में प्रशासनिक सुधार विभाग के पूर्व सचिव और आरटीआई एक्सपर्ट प्रकाश कुमार के अनुसार सरकारी फंड लेने वाली सभी प्राइवेट कंपनियां आरटीआई के दायरे में आती हैं। दिल्ली सरकार के विभागों के पीआईओ से जुड़ी सारी जानकारी http://delhigovt.nic.in/rti पर उपलब्ध है। इस साइट पर दिए गए डाउनलोड लिंक पर क्लिक कर आरटीआई का फॉर्म भी डाउनलोड कर सकते हैं। इसमें इसका प्रोफॉर्मा दिया है। आप चाहें तो सादे कागज पर भी तय शुल्क के साथ आवेदन दे सकते हैं। आरटीआई के सेक्शन 19 के तहत अपीलीय अधिकारी के पास आवेदन देने के लिए फॉर्म भी डाउनलोड किया जा सकता है।

बिजली कंपनियां: सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन के आदेशानुसार प्राइवेट बिजली कंपनियां एनडीपीएल, बीएसईएस आदि भी आरटीआई के दायरे में आती हैं। लेकिन इन कंपनियों ने सेंट्रल इन्फमेर्शन कमिशन के आदेश के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट से स्टे लिया हुआ है और अदालत में मामला लंबित होने के कारण फिलहाल इनके बारे में सूचना नहीं हासिल की जा सकती। हालांकि इन कंपनियों ने अपनी जो सूचना सरकार में दी हुई है, उन्हें सरकार के जरिये हासिल किया जा सकता है।

प्राइवेट फोन कंपनियां: इनकी जानकारी संचार मंत्रालय के जरिये ली जा सकती है।

स्कूल-कॉलेज: सरकारी सहायता प्राप्त प्राइवेट स्कूल भी इसके दायरे में आते हैं। सरकारी सहायता नहीं लेने वाले स्कूलों पर यह कानून नहीं लागू होता, लेकिन शिक्षा विभाग के जरिए उनकी जानकारी भी ली सकती है। कॉलेजों के मामले में भी यही नियम है।

कहां करें अप्लाई

संबंधित विभागों के पब्लिक इन्फमेर्शन ऑफिसर को एक ऐप्लिकेशन देकर इच्छित जानकारी मांगी जाती है। इसके लिए सरकार ने सभी विभागों में एक पब्लिक इन्फर्मेशन ऑफिसर यानी पीआईओ की नियुक्ति की है। संबंधित विभाग में ही पीआईओ की नियुक्ति की जाती है।

कैसे करें अप्लाई

सादे कागज पर हाथ से लिखी हुई या टाइप की गई ऐप्लिकेशन के जरिए संबंधित विभाग से जानकारी मांगी जा सकती है। ऐप्लिकेशन के साथ 10 रुपये की फीस भी जमा करानी होती है।

इनका रखें ध्यान

- किसी भी विभाग से सूचना मांगने में यह ध्यान रखें कि सीधा सवाल पूछा जाए। सवाल घूमा-फिराकर नहीं पूछना चाहिए। सवाल ऐसे होने चाहिए, जिसका सीधा जवाब मिल सके। इससे जन सूचना अधिकारी आपको भ्रमित नहीं कर सकेगा।

- एप्लिकेंट को इसका भी ध्यान रखना चाहिए कि आप जो सवाल पूछ रहे हैं, वह उसी विभाग से संबंधित है या नहीं। उस विभाग से संबंधित सवाल नहीं होने पर आपको जवाब नहीं मिलेगा। हो सकता है आपको जवाब मिलने में बेवजह देरी भी हो सकती है।

- एप्लिकेशन स्पीड पोस्ट से ही भेजनी चाहिए। इससे आपको पता चल जाएगा कि पीआईओ को एप्लिकेशन मिली है या नहीं।

- आरटीआई एक्ट कुछ खास मामलों में जानकारी न देने की छूट भी देता है। इसके लिए एक्ट की धारा 8 देख लें ताकि आपको पता चल सके कि सूचना देने से बेवजह मना तो नहीं किया जा रहा है।

पोस्टल डिपार्टमेंट की जिम्मेदारी

केंद्र सरकार के सभी विभागों के लिए 621 पोस्ट ऑफिसों को सहायक जन सूचना दफ्तर बनाया गया है। आप इनमें से किसी पोस्ट ऑफिस में जाकर आरटीआई काउंटर पर फीस और ऐप्लिकेशन जमा कर सकते हैं। वे आपको रसीद और एक्नॉलेजमेंट (पावती पत्र) देंगे। पोस्ट ऑफिस की जिम्मेदारी है कि वह ऐप्लिकेशन संबंधित अधिकारी तक पहुंचाए। इसके अलावा आप किसी भी बड़े पोस्ट ऑफिस में जाकर खुले लिफाफे में अपनी ऐप्लिकेशन दे सकते हैं। इस तरह आपको पोस्टल चार्ज नहीं देना होगा। आप स्टैंप लगाकर पोस्टल ऑडर या डिमांड ड्राफ्ट के साथ सीधे ऐप्लिकेशन को लेटर बॉक्स में भी डाल सकते हैं।

कैसे लिखें आरटीआई ऐप्लिकेशन

- सूचना पाने के लिए कोई तय प्रोफार्मा नहीं है। सादे कागज पर हाथ से लिखकर या टाइप कराकर 10 रुपये की तय फीस के साथ अपनी ऐप्लिकेशन संबंधित अधिकारी के पास किसी भी रूप में (खुद या डाक द्वारा) जमा कर सकते हैं।

- आप हिंदी, अंग्रेजी या किसी भी स्थानीय भाषा में ऐप्लिकेशन दे सकते हैं।

- ऐप्लिकेशन में लिखें कि क्या सूचना चाहिए और कितनी अवधि की सूचना चाहिए?

- आवेदक को सूचना मांगने के लिए कोई वजह या पर्सनल ब्यौरा देने की जरूरत नहीं। उसे सिर्फ अपना पता देना होगा। फोन या मोबाइल नंबर देना जरूरी नहीं लेकिन नंबर देने से सूचना देने वाला विभाग आपसे संपर्क कर सकता है।

कैसे जमा कराएं फीस

- केंद और दिल्ली से संबंधित सूचना आरटीआई के तहत लेने की फीस है 10 रुपये।

- फीस नकद, डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल ऑर्डर से दी जा सकती है। डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल ऑर्डर संबंधित विभाग (पब्लिक अथॉरिटी) के अकाउंट ऑफिसर के नाम होना चाहिए। डिमांड ड्राफ्ट के पीछे और पोस्टल ऑर्डर में दी गई जगह पर अपना नाम और पता जरूर लिखें। पोस्टल ऑर्डर आप किसी भी पोस्ट ऑफिस से खरीद सकते हैं।

- गरीबी रेखा के नीचे की कैटिगरी में आने वाले आवेदक को किसी भी तरह की फीस देने की जरूरत नहीं। इसके लिए उसे अपना बीपीएल सर्टिफिकेट दिखाना होगा। इसकी फोटो कॉपी लगानी होगी।

- सिर्फ जन सूचना अधिकारी को ऐप्लिकेशन भेजते समय ही फीस देनी होती है। पहली अपील या सेंट्रल इन्फेर्मशन कमिश्नर को दूसरी अपील के लिए भी 10 रुपये की फीस देनी होगी।

- अगर सूचना अधिकारी आपको समय पर सूचना उपलब्ध नहीं करा पाता और आपसे 30 दिन की समयसीमा गुजरने के बाद डॉक्युमेंट उपलब्ध कराने के नाम पर अतिरिक्त धनराशि जमा कराने के लिए कहता है तो यह गलत है। ऐसे में अधिकारी आपको मुफ्त डॉक्युमेंट उपलब्ध कराएगा, चाहे उनकी संख्या कितनी भी हो।

एक्स्ट्रा फीस

सूचना लेने के लिए आरटीआई एक्ट में ऐप्लिकेशन फीस के साथ एक्स्ट्रा फीस का प्रोविजन भी है, जो इस तरह है :

- फोटो कॉपी: हर पेज के लिए 2 रुपये
- बड़े आकार में फोटो कॉपी: फोटो कॉपी की लागत कीमत
- दस्तावेज देखने के लिए: पहले घंटे के लिए कोई फीस नहीं, इसके बाद हर घंटे के लिए फीस 5 रुपये
- सीडी: एक सीडी के लिए 50 रुपये

कब हो सकता है इनकार

कुछ खास हालात में ही जन सूचना अधिकारी आपकी ऐप्लिकेशन लेने से इनकार कर सकता है, जैसे कि :
- अगर ऐप्लिकेशन किसी दूसरे जन सूचना अधिकारी या पब्लिक अथॉरिटी के नाम पर हो।
- अगर आप ठीक तरह से सही फीस का भुगतान न कर पाए हों।
- अगर आप गरीबी रेखा से नीचे के परिवार के सदस्य के रूप में फीस से छूट मांग रहे हैं, लेकिन इससे जुड़े सटिर्फिकेट की फोटोकॉपी न दे पाए हों।
- अगर कोई खास सूचना दिए जाने से सरकारी विभाग के संसाधनों का गलत इस्तेमाल होने की आशंका हो या इससे रेकॉर्डांे को देखने में किसी नुकसान की आशंका हो।

नोट- अगर आरटीआई को जन सूचना अधिकारी रिजेक्ट कर देता है, तो भी आवेदक को वह कुछ सूचनाएं जरूर देगा। ये हैं:
- रिजेक्शन की वजह
- उस टाइम पीरियड की जानकारी, जिसमें रिजेक्शन के खिलाफ अपील दायर की जा सके
- उस अधिकारी का नाम व पता, जिसके यहां इस फैसले के खिलाफ अपील की जा सकती है।

देरी होने पर कार्रवाई

आमतौर पर सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी 30 दिन में मिल जानी चाहिए। जीवन और सुरक्षा से संबंधित मामलों में 48 घंटों में सूचना मिलनी चाहिए, जबकि थर्ड पार्टी यानी प्राइवेट कंपनियों के मामले में 45 दिन की लिमिट है। ऐसा न होने पर संबंधित विभाग के संबंधित अधिकारी पर 250 रुपये रोजाना के हिसाब से 25 हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। गलत या गुमराह करनेवाली सूचना देने या गलत भावना से ऐप्लिकेशन रिजेक्ट करने पर भी कार्रवाई का प्रावधान है।

अपील का अधिकार

- अगर आवेदक को तय समयसीमा में सूचना मुहैया नहीं कराई जाती या वह दी गई सूचना से संतुष्ट नहीं होता है तो वह प्रथम अपीलीय अधिकारी के सामने अपील कर सकता है। पीआईओ की तरह प्रथम अपीलीय अधिकारी भी उसी विभाग में बैठता है, जिससे संबंधित जानकारी आपको चाहिए।

- प्रथम अपील के लिए कोई फीस नहीं देनी होगी। अपनी ऐप्लिकेशन के साथ जन सूचना अधिकारी के जवाब और अपनी पहली ऐप्लिकेशन के साथ-साथ ऐप्लिकेशन से जुड़े दूसरे दस्तावेज अटैच करना जरूरी है।

- ऐसी अपील सूचना उपलब्ध कराए जाने की समयसीमा के खत्म होने या जन सूचना अधिकारी का जवाब मिलने की तारीख से 30 दिन के अंदर की जा सकती है।

- अपीलीय अधिकारी को अपील मिलने के 30 दिन के अंदर या खास मामलों में 45 दिन के अंदर अपील का निपटान करना जरूरी है।

सेकंड अपील कहां करें

- अगर आपको पहली अपील दाखिल करने के 45 दिन के अंदर जवाब नहीं मिलता या आप उस जवाब से संतुष्ट नहीं हैं तो आप 45 दिन के अंदर राज्य सरकार की पब्लिक अथॉरिटी के लिए उस राज्य के स्टेट इन्फर्मेशन कमिशन से या केंद्रीय प्राधिकरण के लिए सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन के पास दूसरी अपील दाखिल कर सकते हैं। दिल्ली के लोग दूसरी अपील सीधे सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन में ही कर सकते हैं।

- इसके अलावा कुछ और वजहों से आप सीआईसी जा सकते हैं, जैसे कि अगर आप संबंधित पब्लिक अथॉरिटी में जन सूचना अधिकारी न होने की वजह से आरटीआई नहीं डाल सकते।

- केंद्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी आपकी ऐप्लिकेशन को संबंधित केंद्रीय लोक (जन) सूचना अधिकारी या अपीलीय अधिकारी को भेजने से इनकार करे

- सूचना के अधिकार एक्ट के तहत सूचना पाने की आपकी रिक्वेस्ट ठुकरा दी जाए या आधी-अधूरी जानकारी दी जाए।

सीआईसी का पता : सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिश्नर, अगस्त क्रांति भवन, भीकाजी कामा प्लेस, नई दिल्ली -66, फोन : 2616-1137

कैसे लिखें आवेदन


सेवा में,
जन सूचना अधिकारी
उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद
निर्माण खंड 16, वसुंधरा, सेक्टर 16, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

विषय : सूचना का अधिकार कानून, 2005 के तहत आवेदन

महोदय,

वसुंधरा सेक्टर 4 बी स्थित सेंट्रल पार्क के रखरखाव और उस पर होने वाली कुछ व्यावसायिक गतिविधियों के बारे में यह जानकारी दें।

1. इस पार्क का मेंटनेंस किसके पास है?

2. इस पार्क को डिवेलप करने में उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद ने कितनी राशि खर्च की?

3. क्या रखरखाव के लिए इस पार्क को किसी निजी संस्था को दिया गया है?

4. अगर हां, तो किन शर्तों पर दिया गया है?

5. पार्क में होने वाली अवैध गतिविधियों की जानकारी क्या आवास विकास परिषद को है?

मैं आवेदन शुल्क के रूप में 10 रुपये का पोस्टल ऑर्डर/मनी ऑर्डर (जो भी भेजना हो) साथ में भेज रहा हूं। कृपया सूचना का अधिकार एक्ट के अनुसार मुझे समय पर सूचना उपलब्ध कराई जाए।

आपका विश्वासी/आवेदक/भवदीय
करण सिंह चौहान
तारीख : 15.12.2012
पता : वसुंधरा, सेक्टर-5 बी, हाउस नंबर 1027, गाजियाबाद, यूपी, 201012

आरटीआई असर : एक मिसाल
गाजियाबाद के वसुंधरा में लेखक के फ्लैट के पास स्थित सेंट्रल पार्क को आवास विकास परिषद ने डिवेलप किया था। आवास विकास परिषद ने मेंटनेंस के लिए इसे सेक्टर 4 बी के आरडब्ल्यूए को सौंप दिया। इसके लिए कुछ शर्तें भी तय की गईं थीं। लेकिन इसके रखरखाव की जिम्मेदारी आते ही आरडब्ल्यूए ने शर्तों का उल्लंघन करते हुए इसका कमर्शल इस्तेमाल शुरू कर दिया। इसमें शादी समारोह आयोजित होने लगे। देर रात तक डीजे की आवाज से आसपास के लोग परेशान होने लगे। सुबह-शाम इस पार्क में टहलने आने वाले लोगों को दिक्कत होने लगी। बच्चों को भी खेलने में दिक्कत होने लगी। बढ़ती परेशानी से छुटकारा पाने के लिए आवास विकास परिषद के वसुंधरा गाजियाबाद स्थित ऑफिस से इस पार्क से रखरखाव और कमर्शल इस्तेमाल की जानकारी आरटीआई के तहत मांगी गई। पहले तो निर्माण खंड १६ के इग्जेक्युटिव इंजीनियर ने इसके कमर्शल इस्तेमाल की जानकारी होने से इनकार कर दिया और इसकी सूचना आवेदनकर्ता को भेज दी गई। इस बीच पार्क का कमर्शल इस्तेमाल होता रहा। इसके बाद सबूतों (फोटो और पेपर की कटिंग) के साथ सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर के पास अपील की गई। इसके बाद आवास विकास को अपनी गलती का अहसास हुआ। इसके बाद पार्क के बेजा इस्तेमाल की बात तो संबंधित विभाग ने मान ली और कहा कि इस पार्क को परिषद अपने कब्जे में ले लेगा। फिर यही हुआ। इसके बाद पार्क का कमर्शल इस्तेमाल रुक गया और इसके आसपास रहने वाले लोगों ने सुकून की सांस ली।

उत्तर प्रदेश
- नोएडा, गाजियाबाद सहित यूपी के लोग दूसरी अपील स्टेट इन्फर्मेशन कमिशन में कर सकते हैं। इसका पता है :

चीफ इन्फर्मेशन कमिश्नर, स्टेट इन्फमेर्शन कमिशन, छठी मंजिल, इंदिरा भवन, लखनऊ, यूपी- 226001
फोन : 0522-2288599/ 2288598
वेबसाइट : upsic.up.nic.in

हरियाणा
हरियाणा के लिए स्टेट इन्फर्मेशन कमिशन में दूसरी अपील कर सकते हैं। इनका पता है :

चीफ इन्फर्मेशन कमिश्नर, स्टेट इन्फर्मेशन कमिशन, हरियाणा, एससीओ नं.- 70-71 सेक्टर-8 सी, चंडीगढ़
फोन: 0172-२७२६५६८
वेबसाइट : cicharyana.gov.in

बिहार में नई पहल, फोन पर आवेदन
बिहार सरकार ने सूचना के अधिकार में पहल करते हुए 29 जनवरी 2007 को जानकारी सुविधा केंद्र की स्थापना की थी। कोई भी शख्स बिहार में किसी जगह से 15311 पर फोन करके सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत अपना आवेदन लिखवा सकता है, जिसे संबंधित दफ्तर के लोक सूचना पदाधिकारी को डाक या ईमेल द्वारा भेजा जाता है। लेकिन अब आम लोगों ऑनलाइन भी आवेदन दर्ज करा सकते हैं -
वेबसाइट: www.biharonline.gov.in/rti

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस ए. के. पटनायक और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की खंडपीठ ने 13 सितंबर 2012 के फैसले पर पुनर्विचार के लिए केंद्र सरकार की याचिका पर सरकार की नीयत पर सवाल उठाया। कोर्ट का मानना है कि सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन और स्टेट इन्फर्मेशन कमिशनों में नौकरशाहों को ही नियुक्त किया जा रहा है, जबकि इसमें न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति होनी चाहिए। हाई कोर्ट के पीठासीन या रिटायर्ड चीफ जस्टिस या सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस को ही आयोग का अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए। इससे ये आयोग स्वतंत्र होंगे और सरकार के प्रभाव से मुक्त होंगे। कोर्ट ने कहा कि सूचना का अधिकार कानून ने अच्छा काम किया है लेकिन इसकी खामियों के कारण बहुत नुकसान हो चुका है और इसे दूर करना होगा। इस समय सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन में मुख्य सूचना आयुक्त समेत ९ सदस्यों में से कोई भी न्यायिक बैकग्राउंड का नहीं है। सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन में एक चीफ इन्फर्मेशन कमिश्नर और 10 इन्फर्मेशन कमिश्नर होते हैं।

सुरक्षा का खतरा
ऐप्लिकेंट सुरक्षा को लेकर सीआईसी कई बार निर्देश दिए हैं। उनका कहना है कि अगर आवेदक को कोई खतरा महसूस होता है तो वह पुलिस अपनी सुरक्षा मांग सकता है।

ऐसा भी हो सकता है?
- कई बार आपका ऐप्लिकेशन ऑफिसों में रिसीव नहीं किया जाता है। अगर ऐसी कोई दिक्कत आए तो अपना आवेदन स्पीड पोस्ट से भेजें।
- कई बार ऐसे भी मामले आए हैं, जिसमें आवेदकों को झूठे केस में फंसा दिया जाता है। बिहार में हाल ही में ऐसे दो मामले सामने आए थे।
- मुजफ्फरपुर और मोतिहारी में दो आरटीआई कार्यकर्ताओं को झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भेज दिया गया है। एक मामले में जब आरटीआई कार्यकर्ता खुद घेरे में नहीं आया तो उसके पुत्र को ही एक गलत मुकदमा दर्ज कराकर जेल भेज दिया गया। मुजफ्फरपुर के मोतीपुर थाना क्षेत्र के रतनपुर गांव निवासी कृष्णा राय के पुत्र कुंदन राय को एक झूठे मुकदमे में जेल भेज दिया गया। उनकी गलती इतनी थी कि उन्होंने अपने प्रखंड के बीडीओ से कुछ ऐसी सूचना मांगी थी जिसके सामने आने से बीडीओ साहब भारी परेशानी में फंस सकते थे।
- इसी तरह मोतिहारी के संग्रामपुर निवासी राजेंद्र सिंह ने जब सूचना के अधिकार के तहत कुछ ऐसे मामलों में जानकारी मांगी, जिससे संबंधित अधिकारियों की फजीहत हो सकती थी तो उन्हें आर्म्स एक्ट के झूठे मुकदमे में फंसाकर जेल भेज दिया गया।

अपने मोबाइल से भी पा सकते हैं जानकारी
अगर आपके पास एंड्रॉयड मोबाइल फोन है तो इस लिंक पर जाकर एप डाउनलोड कर सकते हैं:

https://play.google.com/store/apps/details?id=com.vbulletin.build_890&hl=en

इसके अलावा आप google play से भी अपने एंड्रॉयड मोबाइल फोन पर यह एप इंस्टॉल कर सकते हैं।

सीआईसी के पास पेंडिंग केस
सेंट्रल इन्फर्मेशन कमिशन के पास 5 दिसंबर 2012 तक आरटीआई से संबंधित 27000 से ज्यादा केस पेंडिंग हैं। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में राज्य मंत्री वी नारायणसामी ने बताया कि सीआईसी के हर कमिश्नर साल में औसतन 2800 केसों का निपटारा करते हैं, लेकिन आरटीआई के आवेदनों की संख्या बढ़ने से पेंडिंग केसों की संख्या बढ़ती जा रही है। [NBT]

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