रविवार, 6 अक्तूबर 2013

नवरात्रि पर्व : दैवीय शक्ति का अवतरण


हमारे वेद, पुराण व शास्त्र साक्षी हैं कि जब-जब किसी आसुरी शक्ति ने अत्याचार व प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव जीवन को तबाह करने की कोशिश की तब-तब किसी न किसी दैवीय शक्ति का अवतरण हुआ।

इसी प्रकार जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परम पिता परमेश्वर की प्रेरणा से सभी देवगणों ने एक अद्भुत शक्ति का सृजन किया जो आदि शक्ति मां जगदंबा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हुईं।

उन्होंने महिषासुरादि दैत्यों का वध कर भू व देव लोक में पुनःप्राण शक्ति व रक्षा शक्ति का संचार कर दिया।

शक्ति की परम कृपा प्राप्त करने हेतु संपूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से बड़ी श्रद्घा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसी नवरात्रि सुख और समृद्घि देती है। सनातन संस्कृति में नवरात्रि की उपासना से जीव का कल्याण होता है। भगवती राजराजेश्वरी की विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होगा, घर-घर घट-कलश स्थापित किए जाते हैं।

इसके साथ ही अन्योआश्रित जीवन की रीढ़ कृषि व जीवन के आधार प्राणों की रक्षा हेतु इन दोनों ही ऋतुओं में लहलहाती हुई फसलें खेतों से खलिहान में आ जाती हैं। इन फसलों के रख-रखाव व कीट-पतंगों से रक्षा हेतु, घर-परिवार को सुखी व समृद्घ बनाने तथा कष्टों, दुःख-दरिद्रता से छुटकारा पाने हेतु लोग नौ दिनों तक सफाई तथा पवित्रता को महत्व देते हुए देवी की आराधना व हवन, यज्ञादि क्रियाएं करते हैं।



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