मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

लक्ष्मीजी की प्रचलित लोककथा

  दिवाली पर देवी लक्ष्मी की कथा              SABHAR-  स्मृति जोशी


हमारी लोक संस्कृति में इसी त्योहार और माता लक्ष्मी की बड़ी भोली व सौंधी सी कथा प्रचलित है। एक बार कार्तिक मास की अमावस को लक्ष्मीजी भ्रमण पर निकलीं। चारों ओर अंधकार व्याप्त था। वे रास्ता भूल गईं। उन्होंने निश्चय किया कि रात्रि वे मृत्युलोक में गुजार लेंगी और सूर्योदय के पश्चात बैकुंठधाम लौट जाएंगी, किंतु उन्होंने पाया कि सभी लोग अपने-अपने घरों में द्वार बंद कर सो रहे हैं।

तभी अंधकार के उस साम्राज्य में उन्हें एक द्वार खुला दिखा जिसमें एक दीपक की लौ टिमटिमा रही थी। वे उस प्रकाश की ओर चल दीं। वहां उन्होंने एक वृद्ध महिला को चरखा चलाते देखा। रात्रि विश्राम की अनुमति मांग कर वे उस बुढ़िया की कुटिया में रुकीं।

वृ्द्ध महिला लक्ष्मीदेवी को बिस्तर प्रदान कर पुन: अपने कार्य में व्यस्त हो गई। चरखा चलाते-चलाते वृ्‍द्धा की आंख लग गई। दूसरे दिन उठने पर उसने पाया कि अतिथि महिला जा चुकी है किंतु कुटिया के स्थान पर महल खड़ा था। चारों ओर धन-धान्य, रत्न-जेवरात बिखरे हुए थे।

कथा की फलश्रुति यह है कि मां लक्ष्मीदेवी जैसी उस वृद्धा पर प्रसन्न हुईं वैसी सब पर हों। और तभी से कार्तिक अमावस की रात को दीप जलाने की प्रथा चल पड़ी। लोग द्वार खोलकर लक्ष्मीदेवी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे।



किंतु मानव समाज यह तथ्य नहीं समझ सका कि मात्र दीप जलाने और द्वार खोलने से महालक्ष्मी घर में प्रवेश नहीं करेंगी। बल्कि सारी रात परिश्रम करने वाली वृद्धा की तरह कर्म करने पर और अंधेरी राहों पर भटक जाने वाले पथिकों के लिए दीपकों का प्रकाश फैलाने पर घरों में लक्ष्मी विश्राम करेंगी। ध्यान दिया जाए कि वे विश्राम करेंगी, निवास नहीं। क्योंकि लक्ष्मी का दूसरा नाम ही चंचला है। अर्थात् अस्थिर रहना उनकी प्रकृति है।

इस दीपोत्सव पर कामना करें कि राष्ट्रीय एकता का स्वर्णदीप युगों-युगों तक अखंड बना रहे। हम ग्रहण कर सकें नन्हे-से दीप की कोमल-सी बाती का गहरा-सा संदेश ‍कि बस अंधकार को पराजित करना है और नैतिकता के सौम्य उजास से भर उठना है। लक्ष्मी सूक्त का पाठ करें और मां लक्ष्मी से दिव्यता का आशीष प्राप्त करें।

।। न क्रोधो न च मात्सर्य

न लोभो ना शुभामति:
भवन्ति कृत पुण्यानां
भक्तानां सूक्त जापिनाम्।।

अर्थात् लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने वाले की क्रोध, मत्सर, लोभ व अन्य अशुभ कर्मों में वृत्ति नहीं रहती। वे सत्कर्मों की ओर प्रेरित होते हैं।

मां दुर्गा की पवित्र पौराणिक कथा



या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

कैलाश पर्वत के निवासी भगवान शिव की अर्धांगिनी मां सती पार्वती को ही शैलपुत्री‍, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जाना जाता है।

इसके अलावा भी मां के अनेक नाम हैं जैसे दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि, लेकिन सबमें सुंदर नाम तो 'मां' ही है।

माता की पवित्र गाथा :

आदि सतयुग के राजा दक्ष की पुत्री पार्वती माता को शक्ति कहा जाता है। पार्वती नाम इसलिए पड़ा की वह पर्वतराज अर्थात् पर्वतों के राजा की पुत्र थी। राजकुमारी थी। लेकिन वह भस्म रमाने वाले योगी शिव के प्रेम में पड़ गई। शिव के कारण ही उनका नाम शक्ति हो गया। पिता की ‍अनिच्छा से उन्होंने हिमालय के इलाके में ही रहने वाले योगी शिव से विवाह कर लिया।

एक यज्ञ में जब दक्ष ने पार्वती (शक्ति) और शिव को न्यौता नहीं दिया, फिर भी पार्वती शिव के मना करने के बावजूद अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई, लेकिन दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। पार्वती को यह सब सहन नहीं हुआ और वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।

यह खबर सुनते ही शिव ने अपने सेनापति वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने कंधों पर धारण कर शिव ‍क्रोधित हो धरती पर घूमते रहे। इस दौरान जहां-जहां सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे वहां बाद में शक्तिपीठ निर्मित हो गए। जहां पर जो अंग या आभूषण गिरा उस शक्तिपीठ का नाम वह हो गया। 

माता का रूप :मां के एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल का फूल है। रक्तांबर वस्त्र, सिर पर मुकुट, मस्तक पर श्वेत रंग का अर्धचंद्र तिलक और गले में मणियों-मोतियों का हार हैं। शेर हमेशा माता के साथ रहता है।


माता की प्रार्थना :
जो दिल से पुकार निकले वही प्रार्थना। न मंत्र, न तंत्र और न ही पूजा-पाठ। प्रार्थना ही सत्य है। मां की प्रार्थना या स्तुति के पुराणों में कई श्लोक दिए गए है।

माता का तीर्थ :

मानसरोवर के समीप माता का धाम है। जहां दक्षायनी माता का मंदिर बना है। वहीं पर मां साक्षात विराजमान है।

करवा चौथ की प्रचलित लोककथा



भारत त्योहारों का देश है। करवा चौथ के व्रत संबंध में कई लोककथाएं प्रचलित हैं। एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। 

कृष्ण भगवान ने कहा - बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था। तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी।
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी। एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी। भाइयों से रहा नहीं गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया।
एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी - देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया। भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई।
अब वह दुखी हो विलाप करने लगी, तभी वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। 
उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। 
द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से अपने अखंड सुहाग के लिए हिन्दू महिलाएं करवा चौथ व्रत करती हैं। 

भाग्य के लिए बांस के पौधे

SABHAR : पं.केवल आनंद जोशी

भाग्य के लिए रखें बांस के पौधे: 
फेंगशुई में लम्बी आयु के लिए बांस के पौधे बहुत शक्तिशाली प्रतीक माने जाते हैं। बांस प्रतिकूल परिस्थितियों में भी भरपूर वृद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं और किसी भी प्रकार के तूफानी मौसम का सामना करने का सामर्थ्य रखने के प्रतीक हैं। यह पौधा अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है। यह अच्छे भाग्य का भी संकेत देता है, इसलिए आप बांस के पौधों का चित्र लगाकर उन्हें शक्तिशाली बना सकते हैं।

दरवाजे के पास पानी रखिए:
दरवाजे के पास पानी होना बहुत ही मंगलकारी माना जाता है। विशेष रूप से यह उत्तर-पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर के दरवाजों के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है। पानी का पात्र अत्यंत सावधानी के साथ रखना चाहिए। इस पात्र को दरवाजे के पास बाईं ओर रखना चाहिए। जब आप घर में खडे हों और बाहर की ओर देख रहे हों, तो आपके बाईं ओर पानी हो, दरवाजे के दाईं ओर भूल कर भी पानी का पात्र मत रखिए, क्योंकि इसका उल्टा असर हो सकता है । इसके कारण घर का पुरूष किसी अन्य महिला के प्रति आकर्षित हो सकता है अथवा वैवाहिक जीवन में किसी तीसरे का प्रवेश हो सकता है ।


टेलिफोन और फैक्स उचित स्थान पर रखें:
टेलिफोन और फैक्स मशीनें सम्पर्क स्थापित करने के साधन हैं। वे आपके पास आने वाले व्यवसाय की सूचना देने के साधन हैं। जब जब आपकी घंटी बजती है तब तब आप यह सोचकर उत्तेजित हो उठते हैं कि कोई ग्राहक आना चाहता है आपके बारे में पूछताछ करना चाहता है अथवा उसे आपकी सेवाओं की जरूरत है। ऐसे ग्राहकों की उपस्थिति जो आपके प्रति सहानुभूति रखते हैं और आपके पथप्रदर्शक हैं आपके लिए स्वागतयोग हैं। टेलीफोन व फैक्स की मशीनें धातु की बनी होती हैं। इसलिए जहां तक हो सके, इन्हें उ.-प. कोने में रखना चाहिए। क्योंकि उ.-प. दिशा सहायक व्यक्तियों का क्षेत्र है और इस क्षेत्र का तत्व धातु है ।

किसी भी दरवाजे पर अथवा दरवाजे के ऊपर कैलेंडर न लटकाएं:
किसी भी दरवाजे पर आगे या पीछे की ओर अथवा दरवाजे के मार्ग में कैलेन्डर कभी न लटकाएं, क्योंकि दरवाजे के ऊपर विशेष रूप से मुख्य दरवाजे के ऊपर कैलेन्डर या घड़ी लटकाना घर के सदस्यों की दीर्घ आयु के लिए बुरा है। प्रतीकात्मक रूप से इसका यह मतलब होता है कि आपकी ज़िन्दगी के कितने दिन शेष बचे हैं ।

दक्षिण-पूर्व दिशा में धातु की वस्तुएं और कैंचियां न रखें:
दक्षिण-पूर्व दिशा का तत्व काष्ठ है। पांच तत्वों के विध्वंसक चक्र के अनुसार धातु काष्ठ को काट डालती है, इसलिए इस क्षेत्र में कैंची या चाकू जैसी धारदार वस्तु रखना इस क्षेत्र की ऊर्जा के लिए हानिकारक है। इन वसतुओं का नकारात्मक प्रभाव संपन्नता के मार्ग में बाधक बनता है, क्योंकि इस क्षेत्र से जुड़ी हुई जीवन की अभिलाषा सम्पत्ति है ।

नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए अगरबत्तियां:
प्रत्येक घर में भगवान की पूजा करने के लिए धूप व अगबत्तियों का प्रयोग करते हैं। अगरबत्तियों की मोहक सुगंध से आसपास का वातावरण सुगंधित हो उठता है। ये बहुत ही उपयोगी होती हैं। क्योंकि, इनसे नकारात्मक ऊर्जाओं वाली वायु शुद्ध हो जाती है। धूप जलाने से ऊर्जा का सृजन होता है, स्थान पवित्र हो जाता है व मन को शान्ति मिलती है। इसलिए, प्रतिदिन अगरबत्तियां और धूप जलाना अति उत्तम और बहुत ही शुभ है।

शर्म करें जो रक्‍तदान से कतराते हैं, यहां तो कुत्‍ते तक ने दिया खून

टारंगा (न्‍यूजीलैंड)। अगर आप से कोई अचानक कहे कि मेरा एक दोस्‍त बीमार है, उसकी जिंदगी बचाने के लिए रक्‍त की जरूरत है तो क्‍या आप सहर्ष तैयार हो जायेंगे, ऐसे में ज्‍यादातर लोग तो तैयार नहीं होंगे। लेकिन हम इंसान एक कुत्‍ते से तो सीख ही सकते हैं। न्‍यूजीलैंड के टारंगा में एक लैब्रोडोर नस्‍ल के कुत्‍ते ने बिल्‍ली को बचाने के लिए रक्‍त दिया। आमतौर पर कुत्‍ते और बिल्‍ली के बीच कभी सामान्‍य रिश्‍ते नहीं देखे जाते हैं पर कुत्‍ते ने ऐसे समय में बिल्‍ली को खून दिया जब वो लगभग मरने ही वाली थी, पशु चिकित्‍सक का कहना है कि बिल्‍ली ने गलती से 'चूहे मारने की दवा' खा ली थी, जिससे उसकी हालत एकदम खराब हो गयी थी। बिल्‍ली की ओनर किम एडवर्ड ने बताया कि रोरी (बिल्‍ली) की तबियत बिल्‍कुल बिगड़ती ही जा रही थी, हमारे पास बिल्‍कुल भी वक्‍त नहीं था कि हम एक बिल्‍ली का खून लें और उसे लैब में मैच करवाकर रोरी को दें तभी मैनें अपने दोस्‍त मिशेल व्‍हाइटमोर को कॉल किया जिनके पास लैब्रोडोर प्रजाति का कुत्‍ता है, जिसका नाम 'मेसी' है।

व्‍हॉटमोर का कहना है कि मैंने इस तरह की घटना को पहले कभी नहीं सुना था, मुझे लगा कि किम मुझसे मजाक कर रही हैं लेकिन जो भी यहां हुआ वह आपने आपमें अद्भुत था क्‍योंकि इस तरह की घटना मैंने अपने जीवन में कभी भी नहीं देखी या सुनी थी। मुझे लगता है कि इससे हम इंसानों को भी सीखना चाहिए जो कि रक्‍तदान करने के नाम से ही कतराते हैं।

सफलता पाने के 10 मंत्रों का अमन कीजिए



क्या है आखिर सफलता! हम जो चाहते हैं उसे प सकें, यही सफलता है। इस सफलता को पाकर जो सुख की अनुभूति होती है, वह अवर्णनीय है। इस सफलता को पाने के कुछ मंत्र हैं, आप भी इन्हें अपनी लाइफ में शामिल करके सफलता की सीढियों पर चढ सकते हैं।

लाइफ में हर काम सोच-समझकर अपनी शाक्ति और योग्यतानुसार ही चुनें और उसे पूर्ण करके ही दम लें, चाहे वह कितना ही मुश्किल क्यों ना हों।


कुछ पाने के लिए कुछ खोना पडता है। वह भी किसी सीमा तक ही जैसे एक महिला जब लेखिका बनकर अपनी पहचान बनाना चाहती है तो उसे अपनी नींद व गप्पबाजी को त्यागना ही पडता है। नींद, आलस्य, गप्प-गोष्ठी जैसी आदतों को त्यागकर ही अपने लक्ष्य की ओर कदम उठाएं।

बहानेबाजी या टालते रहने की प्रवृति इंसार को अकर्मण्य बनाती है। समस्या का समाधान करें, घबराकर पलायन ना करें। असफलता ही सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। आप निरंता प्रयासरत रहें।

मंद स्मृति से पीडित बच्चों पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि यदि उनको कलात्मक हौबी की ओर प्रेरित किया जाए तो उनका शारीरिक और मानसिक विकास तीव्र गति से होता है। नयी प्रेरणा ही उनकी लाइफ में मील का पत्थर साबित हो सकती है।

हमेशा सकारात्मक विचारधारा अपनाएं, आशावादी बनें, क्योंकि निराशावादी विचारधारा ही इंसान को कुंठित कर असफलता की ओर धकेलती जाती है।

आज के प्रगतिशील युग में विकलांग भी पीछे नहीं हैं। वे किसी भी कलात्मक हौबी को निखारकर अपने पैरों पर खडे हो सकते हैं। इस प्रकार वे परिवार में, समाज में आत्मसम्मान से जी सकते हैं। बस देर है सिर्फ अपनी योग्यता की पहचान कर उसमें सम्पूर्ण शक्ति से जुट जाने की। ऎसे लोगों से अपना सम्बन्ध बनायें, जो आपकी तहर महत्वाकांक्षी व परिश्रमी हों तथा सच्चो व दृढ इच्छाशक्ति वाले हों। निराश व्यक्ति का साथ निराशा ही देगा। निराशा सफलता की घोर दुश्मन है।

किसी काम में असफल होने पर भाग्य को दोषी ना मानकर पूरी शक्ति व निष्ठा के साथ अपने लक्ष्य की प्राप्त में जुट जाइये। अपनी आंख अर्जुन की भांति सिर्फ अपने लक्ष्य पर केन्द्रित रखिये।

मूड नहीं बना है या अभी मूड नहीं है नामक बीमारी से बचें। अच्छा समय मूड के कारण रूकता नहीं है और इस प्रकार अच्छा अवसर मुटी से रेत की तरह फिसल जाता है। इसके बाद रह जाता है केवल पछतावा।

सफलता पने केलिए समय का महत्व समझें। उसका एक-एक पल उपयोग में लाएं। एक से अधिक लक्ष्य होने पर प्राथमिकता के अनुसार उन्हें निश्चित करें और निष्ठा व लगनपूर्वक हर लक्ष्य की ओर बढें ताकि सफलता मिले।

सकारात्मक सोच बदलेगी जीवन

गुरुमंत्र : सकारात्मक सोच से रहें टेंशन फ्री
आप सब ने नकारात्मक और सकारात्मक सोच के बारे में न केवल ढेर सारे लेख ही पढ़े होंगे, बल्कि जीवन-प्रबंधन से जुड़ी छोटी-मोटी और मोटी-मोटी किताबें भी पढ़ी होंगी। जब आप इन्हें पढ़ते हैं, तो तात्कालिक रूप से आपको सारी बातें बहुत सही और प्रभावशाली मालूम पड़ती हैं और यह सच भी है। लेकिन कुछ ही समय बाद धीरे-धीरे वे बातें दिमाग से खारिज होने लगती हैं और हमारा व्यवहार पहले की तरह ही हो जाता है। 

इसका मतलब यह नहीं होता कि किताबों में सकारात्मक सोच पर जो बातें कही गई थीं, उनमें कहीं कोई गलती थी। गलती मूलतः हममें खुद में होती है। हम अपनी ही कुछ आदतों के इस कदर बुरी तरह शिकार हो जाते हैं कि उन आदतों से मुक्त होकर कोई नई बात अपने अंदर डालकर उसे अपनी आदत बना लेना बहुत मुश्किल काम हो जाता है लेकिन असंभव नहीं। लगातार अभ्यास से इसको आसानी से पाया जा सकता है।

हम महसूस करते हैं कि हमारा जीवन मुख्यतः हमारी सोच का ही जीवन होता है। हम जिस समय जैसा सोच लेते हैं, कम से कम कुछ समय के लिए तो हमारी जिंदगी उसी के अनुसार बन जाती है। यदि हम अच्छा सोचते हैं, तो अच्छा लगने लगता है और यदि बुरा सोचते हैं, तो बुरा लगने लगता है। इस तरह यदि हम यह नतीजा निकालना चाहें कि मूलतः अनुभव ही जीवन है, तो शायद गलत नहीं होगा। 

आप थोड़ा सा समय लगाइए और अपनी जिंदगी की खुशियों और दुःखों के बारे में सोचकर देखिए। आप यही पाएंगे कि जिन चीजों को याद करने से आपको अच्छा लगता है, वे आपकी जिंदगी को खुशियों से भर देती हैं और जिन्हें याद करने से बुरा लगता है, वे आपकी जिंदगी को दुखों से भर देती हैं।

आप बहुत बड़े मकान में रह रहे हैं लेकिन यदि उस मकान से जुड़ी हुई स्मृतियां अच्छी और बड़ी नहीं हैं तो वह बड़ा मकान आपको कभी अच्छा नहीं लग सकता। इसके विपरीत यदि किसी झोपड़ी में आपने जिंदगी के खूबसूरत लम्हे गुजारे हैं, तो उस झोपड़ी की स्मृति आपको जिंदगी का सुकून दे सकती हैं।

इस बारे में एक कहानी है- एक सेठजी प्रतिदिन सुबह मंदिर जाया करते थे। एक दिन उन्हें एक भिखारी मिला। इच्छा न होने के बाद भी बहुत गिड़गिड़ाने पर सेठजी ने उसके कटोरे में एक रुपए का सिक्का डाल दिया। सेठजी जब दुकान पहुंचे तो देखकर दंग रह गए कि उनकी तिजोरी में सोने की एक सौ मुहरों की थैली रखी हुई थी। रात को उन्हें स्वप्न आया कि मुहरों की यह थैली उस भिखारी को दिए गए एक रुपए के बदले मिली है। 

जैसे ही नींद खुली वे यह सोचकर दुखी हो गए कि उस दिन तो मेरी जेब में एक-एक रुपए के दस सिक्के थे, यदि मैं दसों सिक्के भिखारी को दे देता तो आज मेरे पास सोने की मुहरों की दस थैलियां होतीं। अगली सुबह वे फिर मंदिर गए और वही भिखारी उन्हें मिला। वे अपने साथ सोने की सौ मुहरें लेकर गए ताकि इसके बदले उन्हें कोई बहुत बड़ा खजाना मिल सके। उन्होंने वे सोने की मुहरें भिखारी को दे दीं। 

वापस लौटते ही उन्होंने तिजोरी खोली और पाया कि वहां कुछ भी नहीं था। सेठजी कई दिनों तक प्रतीक्षा करते रहे। उनकी तिजोरी में कोई थैली नहीं आई। सेठजी ने उस भिखारी को भी ढुंढवाया लेकिन वह नहीं मिल सका। उस दिन से सेठजी दुखी रहने लगे। 

क्या आप यह नहीं समझते कि सेठजी ने यह जो समस्या पैदा की, वह अपने लालच और नकारात्मक सोच के कारण ही पैदा की। यदि उनमें संतोष होता और सोच की सकारात्मक दिशा होती तो उनका व्यक्तित्व उन सौ मुहरों से खिलखिला उठता। फिर यदि वे मुहरें चली भी गईं, तो उसमें दुखी होने की क्या बात थी, क्योंकि उसे उन्होंने तो कमाया नहीं था लेकिन सेठजी ऐसा तभी सोच पाते, जब वे इस घटना को सकारात्मक दृष्टि से देखते। इसके अभाव में सब कुछ होते हुए भी उनका जीवन दुखमय हो गया। 

इसलिए यदि आपको सचमुच अपने व्यक्तित्व को प्रफुल्लित बनाना है तो हमेशा अपनी सोच की दिशा को सकारात्मक रखिए। किसी भी घटना, किसी भी विषय और किसी भी व्यक्ति के प्रति अच्छा सोचें, उसके विपरीत न सोचें। दूसरे के प्रति अच्छा सोचेंगे, तो आप स्वयं के प्रति ही अच्छा करेंगे। कटुता से कटुता बढ़ती है। मित्रता से मित्रता का जन्म होता है। आग, आग लगाती है और बर्फ ठंडक पहुंचाती है। 

सकारात्मक सोच बर्फ की डल्ली है जो दूसरे से अधिक खुद को ठंडक पहुंचाती है। यदि आप इस मंत्र का प्रयोग कुछ महीने तक कर सके तब आप देखेंगे कि आप के अंदर कितना बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन हो गया है। जो काम सैकड़ों ग्रंथों का अध्ययन नहीं कर सकता, सैकड़ों सत्संग नहीं कर सकते, सैकड़ों मंदिर की पूजा और तीर्थों की यात्राएं नहीं कर सकते, वह काम सकारात्मकता संबंधी यह मंत्र कर जाएगा। आपका व्यक्तित्व चहचहा उठेगा। आपके मित्रों और प्रशंसकों की लंबी कतार लग जाएगी। 

आप जिससे भी एक बार मिलेंगे, वह बार-बार आपसे मिलने को उत्सुक रहेगा। आप जो कुछ भी कहेंगे, उसका अधिक प्रभाव होगा। लोग आपके प्रति स्नेह और सहानुभूति का भाव रखेंगे। इससे अनजाने में ही आपके चारों ओर एक आभा मंडल तैयार होता चला जाएगा। यही वह व्यक्तित्व होगा, जो अपने परीक्षण की कसौटी पर शत-प्रतिशत खरा उतरेगा-24 कैरेट स्वर्ण की तरह। 

ND
आप पर निर्भर करते हैं परिणाम 
अगर आपने ध्यान सकारात्मकता पर केंद्रित कर लिया तब न केवल अच्छे विचार आएंगे, बल्कि आप स्वयं के प्रति दृढ़ प्रतिज्ञ हो पाएंगे। यह स्थिति आते ही आपके कार्यों पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ना आरंभ हो जाएगा। एक बार आपके मन में सकारात्मकता के विचार आना आरंभ हो गए तब आप अपने आपमें स्वयं ही परिवर्तन देखेंगे और यह परिवर्तन आपके साथियों को भी नजर आने लगेगा।

सकारात्मकता के कारण ही कंपनियां अपने कर्मचारियों को आगे बढ़ने का मौका देती हैं। यही नहीं, कंपनियां अब इस बात को पहले इंटरव्यू में ही जान लेती हैं कि आने वाले व्यक्ति का स्वभाव कैसा है। क्या वह सकारात्मकता में विश्वास रखता है कि नहीं? वह नकारात्मक परिस्थितियों में किस प्रकार की प्रतिक्रिया देता है? क्या वह केवल दिखावे के लिए सकारात्मकता का चोला ओढ़े हुए है? कोई भी कंपनी ऐसा कर्मचारी नहीं रखना चाहती, जिसकी नकारात्मक विचारधारा हो। इसलिए 'थिंक पॉजीटिव...एक्ट पॉजीटिव'।

नकारात्मक सोच से ऐसे बचें 
सकाराकता अपने आपमें सफलता, संतोष और संयम लेकर आती है। व्यक्ति मूलतः सकारात्मक ही रहता है, परंतु कई बार नकारात्मक कदमों के कारण असफलता हाथ लग जाती है। इस असफलता का व्यक्ति पर कई तरह से असर पड़ता है। वह भावनात्मक रूप से टूटता है, वहीं इन सभी का असर उसके व्यक्तित्व पर भी पड़ता है। व्यक्तित्व पर असर लंबे समय के लिए पड़ता है तथा वह कई बार अवसाद में भी चला जाता है। 

ऐसी स्थिति से बाहर आने में काफी लंबा समय भी लग सकता है। नकारात्मकता से आखिर कैसे बचे? क्योंकि प्रोफेशनल वर्ल्ड में हमें तरह-तरह के लोगों से मिलना पड़ता है। साथ ही अपने आपको प्रतिस्पर्धा के इस युग में आगे बनाए रखने के लिए भी तरह-तरह के जतन करना पड़ते हैं। ऐसे में हम अपने आपको सकारात्मक बनाए रखने के लिए स्वयं ही प्रयत्न कर सकते हैं।

परिस्थितियों को पहचानें
अक्सर हमारे मन में कोई भी आवश्यक कार्य या कोई बिजनेस मीटिंग के पूर्व नकारात्मक विचार आते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो? अगर मीटिंग सफल नहीं हुई तब? मेरा फर्स्ट इम्प्रेशन गलत पड़ गया तो फिर क्या होगा? इस प्रकार के प्रश्न मन में आते जरूर हैं। इनसे पीछा छु़ड़ाने के लिए इन बातों का अध्ययन करें कि आखिर ये प्रश्न कौन-सी परिस्थितियों में उपजते हैं। फिर इन समस्याओं से छुटकारा पाने की कोशिश करें, सकारात्मक सोच बनाए रखें। 

इन परिस्थितियों में संभलना सीखें
जिन परिस्थितियों में नकारात्मक विचार आते हैं, उनसे सही तरीके से सामना करना सीखें। इस बात की तरफ ध्यान दें कि इन परिस्थितियों के दौरान अब आप पहले जैसी प्रतिक्रिया नहीं देंगे और इस दौरान संयमित होकर स्वयं के सफल होने की ही कामना स्वयं से करेंगे। आप ऐसा करेंगे तो आप देखेंगे कि जो नकारात्मक विचार आ रहे हैं वह धीरे-धीरे पॉजीटिव सोच मे बदल जाएंगे। 

स्वयं से तर्क करना सीखें
नकारात्मकता का जवाब सकारात्मकता के अलावा कुछ भी नहीं हो सकता यह बात मन में बैठा लें। इसके बाद जो भी नकारात्मक विचार मन में आए उसके साथ तर्क करना सीखें और वह भी सकारात्मकता के साथ। जिस प्रकार से नकारात्मक विचार लगातार आते रहते हैं, ठीक उसी तरह से आप स्वयं से सकारात्मक विचारों के लिए स्वयं को प्रेरित करें और अपने प्रयासों में सफलता हासिल करें।

खूबसूरती नहीं, खूबियों की दीवानी हैं लड़कियां

 - अंजली तिवारी
प्यार में खूबसूरती ही हमेशा मायने नहीं रखती बल्कि बाकी बातें भी जैसे एक-दूसरे के प्रति आकर्षण, विश्वास आदि भी जरुरी होता है। अक्सर लोग ये मानते हैं कि अगर वो सुंदर नहीं हैं या उनका रंग सांवला हैं तो कोई उनसे प्यार नहीं करेगा।


हर लड़के में किसी न किसी लड़की के सपनों का राजकुमार बनने की तमन्ना होती है लेकिन कई बार लड़के लुक्स को ही सबकुछ मान बैठते हैं लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता है। एक लड़की अपने साथी में सिर्फ खूबसूरती ही नहीं देखती है बल्कि और भी कई बातें है जो उसके लिए मायने रखती हैं।

पेश हैं ऐसे ही कुछ खास गुण जिन्हें एक लड़की अपने साथी में खूबसूरती की बजाय ज्यादा तवज्जो देती है।

समझदारी और अच्छा व्यवहार

एक लड़की चाहती है कि उसका साथी दुनिया में सबसे ज्यादा न सही लेकिन कम से कम उससे तो ज्यादा समझदार हो ताकि जिंदगी की मुश्किलों का आसानी से सामना किया जा सके।




साथ ही लड़कियां इस पर भी गौर से ध्यान देती हैं कि वह जिसके साथ प्यार के रास्ते पर चल रहीं हैं वह दूसरों के साथ किस तरह पेश आता हैं? जैसे कि वेटर्स, टैक्सी ड्राइवर या बाकी अनजान और उम्र में छोटे-बड़े लोग।

साथ ही लड़कियां यह भी देखती हैं कि वह भीड़ में या समूह के बीच कैसा बर्ताव करता हैं? यह हमेशा ध्यान रखें, कि समझदारी और अच्छा व्यवहार लड़कियों के मन में अपने साथी के प्रति न सिर्फ आदर का भाव जगाने में मददगार साबित होता है वहीं उन्हें साथी के और करीब ले आता है।


अच्छी पर्सनेलिटी है जरुरी
लड़कियां अपने साथी में खूबसूरती भले ही न देखें लेकिन ये जरुर चाहती हैं कि उनके साथी की पर्सनेलिटी अच्छी और आकर्षक हो। मतलब यह है कि उसने कपड़े कैसे पहने रखें हैं? लोगों के सामने अपने आपको किस तरह से प्रस्तुत करता है?


वह आत्मविश्वास के साथ लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच पाता है या नहीं? उसे लोगों के साथ बातचीत करने में कोई परेशानी या झिझक तो नहीं होती है, वगैरह।

देखभाल और सहानुभूति
लड़कियों पर अच्छी पर्सनेलिटी और अच्छे बर्ताव का कोई असर तब तक नहीं पड़ता, जब तक कि उन्हें ये न महसूस हो, कि वो व्यक्ति अपने से जुड़े लोगों की अच्छी देखभाल कर सकता है अथवा उनके प्रति सहानुभूति रखता है।


लड़कियां चाहतीं हैं कि उनका साथी उसे सिर्फ प्यार न करें बल्कि उसकी देखभाल करने में भी सक्षम हो।

शिक्षित को प्राथमिकता
हर लड़की चाहती है कि उसका साथी उसे ज्यादा पढ़ा-लिखा भले ना हो, लेकिन कम पढ़ा-लिखा भी नहीं होना चाहिए। दरअसल इसके पीछे ये सोच होती हैं कि आप चीजों को अधिक से अधिक और बेहतर तरीके से बड़े और खुले दृष्टिकोण से समझेंगे। काम करने के अवसरों की अधिकता होगी।


यूं कह सकते हैं कि अच्छी शिक्षा एक अच्छे, सुनियोजित और बेहतर जीवन की गारंटी साबित होती है। इसके एवज में लड़कों की खूबसूरती या आकर्षक पर्सनेलिटी उनके सामने ज्यादा मायने नहीं रखता है।

बुद्धिमानी से जीवन चला सके
अक्सर किसी कारणवश अगर कोई पढ़ाई-लिखाई पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाया है या उसमें उसकी विशेष रुचि नहीं रही, ऐसे मामले में लड़कियां ये देखती हैं कि वो अच्छा पढ़ा-लिखा भले न हो लेकिन इतना बुद्धिमान तो हो, कि अपने जीवन को ठीक और सुचारु रुप से चला सके।



दरअसल अच्छी शिक्षा भी सफलता की गारंटी तब तक नहीं है जब तक कि उसे जीवन में सही तरह से लागू करने की कला न आए और जिसे ये कला आती है उसके लिए ये जरुरी नहीं होता कि वह अच्छा पढ़ा-लिखा भी हो।

आर्थिक स्थिति मजबूत हो


प्यार के मामले में पैसा भले ही बहुत ज्यादा मायने न रखे लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जिंदगी की गाड़ी को सही तरीके से चलाने के लिए आर्थिक स्थिति का मजबूत होना बेहद जरुरी है वरना जब जीवन में मुश्किलों का सामना होता है तो प्यार का बुखार उतरने में वक्त नहीं लगता।

दो प्रेम कथाएँ

मालवी लोकजीवन की दो प्रेम कथाएँ
साभार : देवव्रत जोशी
फ़कीर का हुस्न

एक सूफी संत अपने शिष्यों के साथ दुग्ध-धवल चाँदनी रात में अपने घर की छत पर ईश्वर आराधना में मग्न थे। कौतुकवश एक नवयुवक भी वहाँ आया और चुपचाप सत्संग में शामिल हो गया, उसे बड़ा आनंद आया। इतना सुकून, इतनी शांति तो उसे कभी नहीं मिली थी। संत ने भी उसे अपना आशीर्वाद दिया और कहा ‍कि बराबर आया करो।

कुछ दिन बाद अचानक युवक अनुपस्थित रहने लगा। कई सप्ताह, महीने गुजर गए। एक दिन वह आया और उदास मुख, जर्जर शरीर, उखड़े मन से सत्संग में बैठ गया, सबसे पीछे।

गुरु ने देखा और सब कुछ समझ लिया। उसे पास बुलाया। बेटे इतने दिन क्यों नहीं आए। मैंने तो तुम्हारा काफी इंतजार किया... ये दुनिया बड़ी मायावी और दिलकश है। मेरी तरफ देखो' संत ने अपनी दाढ़ी पर हाथ‍ फिराते हुए कहा,' क्या इससे ज्यादा खूबसूरती है कहीं दुनिया में।' युवक संत की भुवन मोहिनी मुस्कान के आगे नत था।

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

नवरात्रि पर्व : नौ दिन कैसे करें कन्या-पूजन

कैसे करें मां भगवती को प्रसन्न्
- स्मृति आदित्य



नवरात्रि यानी सौन्दर्य के मुखरित होने का पर्व। नवरात्रि यानी उमंग से खिल-खिल जाने का पर्व। कहते हैं, नौ दिनों तक दैवीय शक्ति मनुष्य लोक के भ्रमण के लिए आती है। इन दिनों की गई उपासना-आराधना से देवी भक्तों पर प्रसन्न होती है। लेकिन पुराणों में वर्णित है कि मात्र श्लोक-मंत्र-उपवास और हवन से देवी को प्रसन्न नहीं किया जा सकता।
इन दिनों 2 से लेकर 5 वर्ष तक की नन्ही कन्याओं के पूजन का विशेष महत्व है। नौ दिनों तक इन नन्ही कन्याओं को सुंदर गिफ्ट्स देकर इनका दिल जीता जा सकता है। इनके माध्यम से नवदुर्गा को भी प्रसन्न किया जा सकता है। पुराणों की दृष्टि से नौ दिनों तक कन्याओं को एक विशेष प्रकार की भेंट देना शुभ होता है।




* प्रथम दिन इन्हें फूल की भेंट देना शुभ होता है। साथ में कोई एक श्रृंगार सामग्री अवश्य दें। अगर आप मां सरस्वती को प्रसन्न करना चाहते है तो श्वेत फूल अर्पित करें। अगर आपके दिल में कोई भौतिक कामना है तो लाल पुष्प देकर इन्हें खुश करें। (उदाहरण के लिए : गुलाब, चंपा, मोगरा, गेंदा, गुड़हल)


* दूसरे दिन फल देकर इनका पूजन करें। यह फल भी सांसारिक कामना के लिए लाल अथवा पीला और वैराग्य की प्राप्ति के लिए केला या श्रीफल हो सकता है। याद रखें कि फल खट्टे ना हो।

* तीसरे दिन मिठाई का महत्व होता है। 
इस दिन अगर हाथ की बनी खीर, हलवा या केशरिया चावल बना कर खिलाए जाएं तो 
देवी प्रसन्न होती है।

* चौथे दिन इन्हें वस्त्र देने का महत्व है लेकिन सामर्थ्य अनुसार रूमाल या रंगबिरंगे रीबन दिए जा सकते हैं।

* पांचवे दिन देवी से सौभाग्य और संतान प्राप्ति की मनोकामना की जाती है। अत: कन्याओं को पांच प्रकार की श्रृंगार सामग्री देना अत्यंत शुभ होता है। इनमें बिंदिया, चूड़ी, मेहंदी, बालों के लिए क्लिप्स, सुगंधित साबुन, काजल, नेलपॉलिश, टैल्कम पावडर इत्यादि हो सकते हैं।

* छठे दिन बच्चियों को खेल-सामग्री देना चाहिए। आजकल बाजार में खेल सामग्री की अनेक वैरायटी उपलब्ध है। पहले यह रिवाज पांचे, रस्सी और छोटे-मोटे खिलौनों तक सीमित था। अब तो ढेर सारे विकल्प मौजूद है।


* सातवां दिन मां सरस्वती के आह्वान का होता है। अत: इस दिन कन्याओं को शिक्षण सामग्री दी जानी चाहिए। आजकल स्टेशनरी बाजार में विभिन्न प्रकार के पेन, स्केच पेन, पेंसिल, कॉपी, ड्रॉईंग बुक्स, कंपास, वाटर बॉटल, कलर बॉक्स, लंच बॉक्स उपलब्ध है।

* आठवां दिन नवरात्रि का सबसे पवित्र दिन माना जाता है। इस दिन अगर कन्या का अपने हाथों से श्रृंगार किया जाए तो देवी विशेष आशीर्वाद देती है। इस दिन कन्या के दूध से पैर पूजने चाहिए। पैरों पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए। इस दिन कन्या को भोजन कराना चाहिए और यथासामर्थ्य कोई भी भेंट देनी चाहिए। हर दिन कन्या-पूजन में दक्षिणा अवश्य दें।

* नौवें दिन खीर, ग्वारफली और दूध में गूंथी पूरियां कन्या को खिलानी चाहिए। उसके पैरों में महावर और हाथों में मेहंदी लगाने से देवी पूजा संपूर्ण होती है। अगर आपने घर पर हवन का अयोजन किया है तो उसके नन्हे हाथों से उसमें समिधा अवश्य डलवाएं। उसे इलायची और पान का सेवन कराएं।

इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि देवी जब अपने लोक जाती है तो उसे घर की कन्या की तरह ही बिदा किया जाना चाहिए। अगर सामर्थ्य हो तो नौवें दिन लाल चुनर कन्याओं को भेंट में दें। उन्हें दुर्गा चालीसा की छोटी पुस्तकें भेंट करें। गरबा के डांडिए और चणिया-चोली दिए जा सकते हैं।

इन सारी रीतियों के अनुसार पूजन करने से देवी प्रसन्न होकर वर्ष भर के लिए सुख, समृद्धि, यश, वैभव, कीर्ति और सौभाग्य का वरदान देती है।


SABHAR : WEB DUNIYA 

।। श्री दुर्गा चालीसा ।।





नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें॥

शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्बा भवानी॥

॥ इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥ 
॥ जय माता दी ॥

नवरात्रि पर्व : दैवीय शक्ति का अवतरण


हमारे वेद, पुराण व शास्त्र साक्षी हैं कि जब-जब किसी आसुरी शक्ति ने अत्याचार व प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव जीवन को तबाह करने की कोशिश की तब-तब किसी न किसी दैवीय शक्ति का अवतरण हुआ।

इसी प्रकार जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परम पिता परमेश्वर की प्रेरणा से सभी देवगणों ने एक अद्भुत शक्ति का सृजन किया जो आदि शक्ति मां जगदंबा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हुईं।

उन्होंने महिषासुरादि दैत्यों का वध कर भू व देव लोक में पुनःप्राण शक्ति व रक्षा शक्ति का संचार कर दिया।

शक्ति की परम कृपा प्राप्त करने हेतु संपूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से बड़ी श्रद्घा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसी नवरात्रि सुख और समृद्घि देती है। सनातन संस्कृति में नवरात्रि की उपासना से जीव का कल्याण होता है। भगवती राजराजेश्वरी की विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होगा, घर-घर घट-कलश स्थापित किए जाते हैं।

इसके साथ ही अन्योआश्रित जीवन की रीढ़ कृषि व जीवन के आधार प्राणों की रक्षा हेतु इन दोनों ही ऋतुओं में लहलहाती हुई फसलें खेतों से खलिहान में आ जाती हैं। इन फसलों के रख-रखाव व कीट-पतंगों से रक्षा हेतु, घर-परिवार को सुखी व समृद्घ बनाने तथा कष्टों, दुःख-दरिद्रता से छुटकारा पाने हेतु लोग नौ दिनों तक सफाई तथा पवित्रता को महत्व देते हुए देवी की आराधना व हवन, यज्ञादि क्रियाएं करते हैं।