मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

मां दुर्गा की पवित्र पौराणिक कथा



या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

कैलाश पर्वत के निवासी भगवान शिव की अर्धांगिनी मां सती पार्वती को ही शैलपुत्री‍, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जाना जाता है।

इसके अलावा भी मां के अनेक नाम हैं जैसे दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि, लेकिन सबमें सुंदर नाम तो 'मां' ही है।

माता की पवित्र गाथा :

आदि सतयुग के राजा दक्ष की पुत्री पार्वती माता को शक्ति कहा जाता है। पार्वती नाम इसलिए पड़ा की वह पर्वतराज अर्थात् पर्वतों के राजा की पुत्र थी। राजकुमारी थी। लेकिन वह भस्म रमाने वाले योगी शिव के प्रेम में पड़ गई। शिव के कारण ही उनका नाम शक्ति हो गया। पिता की ‍अनिच्छा से उन्होंने हिमालय के इलाके में ही रहने वाले योगी शिव से विवाह कर लिया।

एक यज्ञ में जब दक्ष ने पार्वती (शक्ति) और शिव को न्यौता नहीं दिया, फिर भी पार्वती शिव के मना करने के बावजूद अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई, लेकिन दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। पार्वती को यह सब सहन नहीं हुआ और वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।

यह खबर सुनते ही शिव ने अपने सेनापति वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने कंधों पर धारण कर शिव ‍क्रोधित हो धरती पर घूमते रहे। इस दौरान जहां-जहां सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे वहां बाद में शक्तिपीठ निर्मित हो गए। जहां पर जो अंग या आभूषण गिरा उस शक्तिपीठ का नाम वह हो गया। 

माता का रूप :मां के एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल का फूल है। रक्तांबर वस्त्र, सिर पर मुकुट, मस्तक पर श्वेत रंग का अर्धचंद्र तिलक और गले में मणियों-मोतियों का हार हैं। शेर हमेशा माता के साथ रहता है।


माता की प्रार्थना :
जो दिल से पुकार निकले वही प्रार्थना। न मंत्र, न तंत्र और न ही पूजा-पाठ। प्रार्थना ही सत्य है। मां की प्रार्थना या स्तुति के पुराणों में कई श्लोक दिए गए है।

माता का तीर्थ :

मानसरोवर के समीप माता का धाम है। जहां दक्षायनी माता का मंदिर बना है। वहीं पर मां साक्षात विराजमान है।

करवा चौथ की प्रचलित लोककथा



भारत त्योहारों का देश है। करवा चौथ के व्रत संबंध में कई लोककथाएं प्रचलित हैं। एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। 

कृष्ण भगवान ने कहा - बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था। तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी।
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी। एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी। भाइयों से रहा नहीं गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया।
एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी - देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया। भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई।
अब वह दुखी हो विलाप करने लगी, तभी वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। 
उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। 
द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से अपने अखंड सुहाग के लिए हिन्दू महिलाएं करवा चौथ व्रत करती हैं। 

भाग्य के लिए बांस के पौधे

SABHAR : पं.केवल आनंद जोशी

भाग्य के लिए रखें बांस के पौधे: 
फेंगशुई में लम्बी आयु के लिए बांस के पौधे बहुत शक्तिशाली प्रतीक माने जाते हैं। बांस प्रतिकूल परिस्थितियों में भी भरपूर वृद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं और किसी भी प्रकार के तूफानी मौसम का सामना करने का सामर्थ्य रखने के प्रतीक हैं। यह पौधा अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है। यह अच्छे भाग्य का भी संकेत देता है, इसलिए आप बांस के पौधों का चित्र लगाकर उन्हें शक्तिशाली बना सकते हैं।

दरवाजे के पास पानी रखिए:
दरवाजे के पास पानी होना बहुत ही मंगलकारी माना जाता है। विशेष रूप से यह उत्तर-पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर के दरवाजों के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है। पानी का पात्र अत्यंत सावधानी के साथ रखना चाहिए। इस पात्र को दरवाजे के पास बाईं ओर रखना चाहिए। जब आप घर में खडे हों और बाहर की ओर देख रहे हों, तो आपके बाईं ओर पानी हो, दरवाजे के दाईं ओर भूल कर भी पानी का पात्र मत रखिए, क्योंकि इसका उल्टा असर हो सकता है । इसके कारण घर का पुरूष किसी अन्य महिला के प्रति आकर्षित हो सकता है अथवा वैवाहिक जीवन में किसी तीसरे का प्रवेश हो सकता है ।


टेलिफोन और फैक्स उचित स्थान पर रखें:
टेलिफोन और फैक्स मशीनें सम्पर्क स्थापित करने के साधन हैं। वे आपके पास आने वाले व्यवसाय की सूचना देने के साधन हैं। जब जब आपकी घंटी बजती है तब तब आप यह सोचकर उत्तेजित हो उठते हैं कि कोई ग्राहक आना चाहता है आपके बारे में पूछताछ करना चाहता है अथवा उसे आपकी सेवाओं की जरूरत है। ऐसे ग्राहकों की उपस्थिति जो आपके प्रति सहानुभूति रखते हैं और आपके पथप्रदर्शक हैं आपके लिए स्वागतयोग हैं। टेलीफोन व फैक्स की मशीनें धातु की बनी होती हैं। इसलिए जहां तक हो सके, इन्हें उ.-प. कोने में रखना चाहिए। क्योंकि उ.-प. दिशा सहायक व्यक्तियों का क्षेत्र है और इस क्षेत्र का तत्व धातु है ।

किसी भी दरवाजे पर अथवा दरवाजे के ऊपर कैलेंडर न लटकाएं:
किसी भी दरवाजे पर आगे या पीछे की ओर अथवा दरवाजे के मार्ग में कैलेन्डर कभी न लटकाएं, क्योंकि दरवाजे के ऊपर विशेष रूप से मुख्य दरवाजे के ऊपर कैलेन्डर या घड़ी लटकाना घर के सदस्यों की दीर्घ आयु के लिए बुरा है। प्रतीकात्मक रूप से इसका यह मतलब होता है कि आपकी ज़िन्दगी के कितने दिन शेष बचे हैं ।

दक्षिण-पूर्व दिशा में धातु की वस्तुएं और कैंचियां न रखें:
दक्षिण-पूर्व दिशा का तत्व काष्ठ है। पांच तत्वों के विध्वंसक चक्र के अनुसार धातु काष्ठ को काट डालती है, इसलिए इस क्षेत्र में कैंची या चाकू जैसी धारदार वस्तु रखना इस क्षेत्र की ऊर्जा के लिए हानिकारक है। इन वसतुओं का नकारात्मक प्रभाव संपन्नता के मार्ग में बाधक बनता है, क्योंकि इस क्षेत्र से जुड़ी हुई जीवन की अभिलाषा सम्पत्ति है ।

नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए अगरबत्तियां:
प्रत्येक घर में भगवान की पूजा करने के लिए धूप व अगबत्तियों का प्रयोग करते हैं। अगरबत्तियों की मोहक सुगंध से आसपास का वातावरण सुगंधित हो उठता है। ये बहुत ही उपयोगी होती हैं। क्योंकि, इनसे नकारात्मक ऊर्जाओं वाली वायु शुद्ध हो जाती है। धूप जलाने से ऊर्जा का सृजन होता है, स्थान पवित्र हो जाता है व मन को शान्ति मिलती है। इसलिए, प्रतिदिन अगरबत्तियां और धूप जलाना अति उत्तम और बहुत ही शुभ है।

शर्म करें जो रक्‍तदान से कतराते हैं, यहां तो कुत्‍ते तक ने दिया खून

टारंगा (न्‍यूजीलैंड)। अगर आप से कोई अचानक कहे कि मेरा एक दोस्‍त बीमार है, उसकी जिंदगी बचाने के लिए रक्‍त की जरूरत है तो क्‍या आप सहर्ष तैयार हो जायेंगे, ऐसे में ज्‍यादातर लोग तो तैयार नहीं होंगे। लेकिन हम इंसान एक कुत्‍ते से तो सीख ही सकते हैं। न्‍यूजीलैंड के टारंगा में एक लैब्रोडोर नस्‍ल के कुत्‍ते ने बिल्‍ली को बचाने के लिए रक्‍त दिया। आमतौर पर कुत्‍ते और बिल्‍ली के बीच कभी सामान्‍य रिश्‍ते नहीं देखे जाते हैं पर कुत्‍ते ने ऐसे समय में बिल्‍ली को खून दिया जब वो लगभग मरने ही वाली थी, पशु चिकित्‍सक का कहना है कि बिल्‍ली ने गलती से 'चूहे मारने की दवा' खा ली थी, जिससे उसकी हालत एकदम खराब हो गयी थी। बिल्‍ली की ओनर किम एडवर्ड ने बताया कि रोरी (बिल्‍ली) की तबियत बिल्‍कुल बिगड़ती ही जा रही थी, हमारे पास बिल्‍कुल भी वक्‍त नहीं था कि हम एक बिल्‍ली का खून लें और उसे लैब में मैच करवाकर रोरी को दें तभी मैनें अपने दोस्‍त मिशेल व्‍हाइटमोर को कॉल किया जिनके पास लैब्रोडोर प्रजाति का कुत्‍ता है, जिसका नाम 'मेसी' है।

व्‍हॉटमोर का कहना है कि मैंने इस तरह की घटना को पहले कभी नहीं सुना था, मुझे लगा कि किम मुझसे मजाक कर रही हैं लेकिन जो भी यहां हुआ वह आपने आपमें अद्भुत था क्‍योंकि इस तरह की घटना मैंने अपने जीवन में कभी भी नहीं देखी या सुनी थी। मुझे लगता है कि इससे हम इंसानों को भी सीखना चाहिए जो कि रक्‍तदान करने के नाम से ही कतराते हैं।