शनिवार, 12 जनवरी 2019

यू कैन हील योर लाइफ

यू कैन हील योर लाइफ



प्रकाशक : प्रभात प्रकाशनप्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7494
आईएसबीएन :   9788173156809



You Can Heal Your Life (Hindi) by [Hay, Louise L]

इस पुस्तक में सबकुछ है- जीवन, उसके मूल्य और अपने आप पर कैसे स्वाध्याय करें...

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यू कैन हील योर लाइफ–इस अद्भुत पुस्तक के माध्यम से लुइस एल हे आत्मविकास की यात्रा को पाठकों के साथ बाँट रही हैं। उनका कहना है कि हमारा जीवन कितना भी निम्न स्तरीय क्यों न रहा हो, हम अपने जीवन को पूरी तरह बदलकर उसे और ज्यादा बेहतर बना सकते हैं।

इस पुस्तक में सबकुछ है–जीवन, उसके मूल्य और अपने आप पर कैसे स्वाध्याय करें। अपने बारे में आपको जो भी जानने की आवश्यकता है, वह सब इसमें हैं। इसमें रोग के संभावित मानसिक कारणों की संदर्भ मार्गदर्शिका है, जो वास्तव में उल्लेखनीय और अनूठी है। किसी निर्जन द्वीप पर कोई व्यक्ति इस पुस्तक को पा जाए तो वह अपने जीवन को बेहतरीन बनाने के लिए जो भी जानना चाहता है, वह सब इससे सीख-समझ सकता है।

प्रत्येक अध्याय एक निश्चय के साथ आरंभ होता है और सभी अध्याय एक उपचार के साथ समाप्त होते हैं। जब आप इससे संबंधित जीवन के भाग पर कार्य करेंगे तो प्रत्येक अध्याय उपयोगी सिद्ध होगा। यह चेतन को परिवर्तित करने के लिए तैयार सकारात्मक विचारों का प्रवाह है।

यदि आप पुस्तक के क्रमानुसार दिए गए अभ्यास निष्ठापूर्वक करेंगे तो पुस्तक के समाप्त होने तक निश्चय ही अपने जीवन में परिवर्तन महसूस कर रहे होंगे।
विश्व की सर्वाधिक बिक्रीवाली पुस्तकों में शामिल। 

1. जिसमें मुझे विश्वास है

‘बुद्धि और ज्ञान के द्वार हमेशा खुले रहते हैं।’
जीवन वास्तव में बहुत सरल है। जो हम देते हैं, वही हमें वापस मिलता है
जो कुछ हम अपने विषय में सोचते हैं, वह हमारे लिए सच हो जाता है। मैं मानती हूँ कि हर व्यक्ति, जिनमें मैं भी शामिल हूँ, अपने जीवन में हर अच्छी या बुरी चीज के लिए स्वयं जिम्मेदार है। हमारे मस्तिष्क में आनेवाला हर विचार हमारा भविष्य बनाता है। हममें से हर व्यक्ति अपने विचारों और अपनी भावनाओं द्वारा अपने अनुभवों को जन्म देता है। हमारे विचार, जो हम बोलते हैं, वह सब हमारा अनुभव बन जाता है।

हम खुद परिस्थितियों को जन्म देते हैं और फिर अपनी कुंठा के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को दोषी ठहराते हुए अपनी ऊर्जा नष्ट करते हैं। कोई व्यक्ति, कोई स्थान और कोई चीज हमसे अधिक शक्तिशाली नहीं है, क्योंकि अपने मस्तिष्क में केवल ‘हम’ ही सोचते हैं। जब हम अपने मस्तिष्क में शांति, तालमेल और संतुलन बना लेते हैं तो यह सब हमारे जीवन में भी आ जाता है।

इनमें से कौन सा कथन आपके विचार से मिलता है ?
–लोग मेरे पीछे पड़े हैं।
–हर व्यक्ति हमेशा मेरी मदद करता है।
इनमें से प्रत्येक बिलकुल भिन्न अनुभव को जन्म देगा। हम अपने बारे में और जीवन के बारे में जो भी मानते हैं, वह हमारे लिए सच हो जाता है।

हम जो भी सोचना या मानना चाहते हैं, हर विचार से ब्रह्मांड हमारे साथ होता है
दूसरे रूप में, हम जो भी स्वीकार करते हैं, हमारा अवचेतन मन उसे स्वीकार कर लेता है। इन दोनों का अर्थ है कि मैं अपने और जीवन के बारे में जो भी स्वीकारता हूँ, वह मेरे लिए एक सच्चाई बन जाता है। आप अपने और जीवन के बारे में जो भी सोचते हैं, वह आपके लिए सच हो जाता है। हमारे पास सोचने के लिए असीमित विकल्प होते हैं।
जब हम यह जान जाते हैं तो ‘लोग मेरे पीछे पड़े हैं’ की अपेक्षा ‘हर कोई हमेशा मेरी मदद करना चाहता है’ का विकल्प चुनना सही होगा।

शाश्वत शक्ति कभी हमारा मूल्यांकन या हमारी आलोचना नहीं करती
वह केवल हमारे मूल्यों पर हमें स्वीकार करती है। फिर वह हमारे विचारों को हमारे जीवन में प्रतिबिंबित करती है। यदि मैं मानना चाहती हूँ कि मेरा जीवन बहुत एकाकी है और कोई मुझसे प्रेम नहीं करता, तो मुझे दुनिया में यही मिलेगा।
लेकिन यदि मैं उस विचार को छोड़ने के लिए तैयार हूँ और अपने लिए दृढ़ता से यह कहूँ कि ‘प्रेम हर जगह है और मैं प्रेम करने व प्रेम पाने योग्य हूँ,’ और इस नए विचार पर कायम रहूँ तथा उसे बार-बार स्वीकार करूँ तो यह मेरे लिए सच हो जाएगा। अब मुझसे प्रेम करनेवाले लोग मेरे जीवन में आएँगे, पहले से मौजूद लोग मेरे प्रति अधिक प्रेम रखेंगे और मैं दूसरे के प्रति आसानी से प्रेम की अभिव्यक्ति कर पाऊँगी।

हममें से अधिकतर लोग ‘हम कौन हैं’ के बारे में मूर्खतापूर्ण विचार रखते हैं और जीवन जीने के लिए बहुत से कठोर नियम बनाते हैं
यह हमें दोषी ठहराने के लिए नहीं है, क्योंकि हममें से हर कोई इस क्षण में जितना अच्छा कर सकता है, कर रहा है। यदि हम बेहतर जानते और हमारे पास अधिक समझ एवं सजगता होती तो हम उसे अलग तरीके से करते। कृपया अपनी स्थिति के लिए अपने आपको निचले स्तर पर न रखें। आपने यह पुस्तक उठाई और मुझे खोज निकाला, इसके अर्थ है कि आप अपने जीवन में एक नया, सकारात्मक परिवर्तन लाना चाहते हैं। इसके लिए अपने आपको धन्यवाद दें। ‘पुरुष रोते नहीं !’ ‘महिलाएँ पैसा नहीं सँभाल सकतीं !’ जीवन के लिए कितने संकुचित विचार हैं ये !

जब हम बहुत छोटे होते हैं तो अपने तथा जीवन के बारे में महसूस करना हम अपने आस-पास के बड़ों की प्रतिक्रियाओं से सीखते हैं
इस प्रकार हम अपने तथा अपनी दुनिया के विषय में सोचना सीखते हैं। अब यदि आप ऐसे लोग साथ रहें हैं, जो बहुत दुःखी भयभीत, अपराध-बोध से ग्रस्त या क्रुद्ध थे तो आपने अपने बारे में और अपनी दुनिया के बारे में बहुत सी नकारात्मक बातें सीखीं।
‘मैं कभी भी सही नहीं करता’, ‘यह मेरी गलती है’, ‘यदि मुझे गुस्सा आता है तो मैं एक बुरी व्यक्ति हूँ।’
इस तरह के विचार एक निराशाजनक जीवन को जन्म देते हैं।

जब हम बड़े हो जाते हैं तो अपनी प्रवृत्ति के अनुसार प्रारंभिक जीवन के भावनात्मक वातावरण का पुनःसर्जन करते हैं
यह अच्छा है या बुरा, सही है या गलत; यह वही होता है, जिसे हम अपने अंदर ‘घर’ के रूप में जानते हैं। साथ ही, हम अपने व्यक्तिगत संबंधों में उन संबंधों को फिर से जीवित करने के प्रयास करते हैं, जो संबंध हमारा अपने माँ या पिता के साथ या उनके बीच था। सोचिए कि कितनी बार आपका प्रेमी या बॉस बिलकुल आपकी माँ या आपके पित की तरह था।
हम अपने साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं, जो हमारे माता-पिता हमारे साथ करते थे। हम उसी तरीके से स्वयं को डाँटते और सजा देते हैं। जब आप सुनते हैं तो लगभग उन शब्दों को सुन सकते हैं। एक बच्चे के रूप में जिस तरह हमें प्यार दिया गया था या प्रोत्साहित किया गया था, हम उसी तरीके से खुद को प्यार या प्रोत्साहित करते हैं।

‘तुम कभी कुछ ठीक नहीं करते।’ ‘यह सब तुम्हारी गलती है।’ आपने स्वयं से कितनी बार ऐसा कहा ?
‘तुम लाजवाब हो।’ ‘मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।’ आप कितनी बार खुद से ऐसा कहते हैं ?
फिर भी, इसके लिए हम अपने माता-पिता को दोषी नहीं ठहराएँगे

हम सभी पीड़ितों द्वारा पीड़ित हैं, और शायद वे हमें कुछ ऐसा नहीं सिखा पाते जो वे नहीं जानते थे। यदि आपकी माँ नहीं जानती थीं कि अपने आपसे प्यार कैसे करना है या आपके पिता नहीं जानते थे कि वह आपसे प्यार कैसे करें, तो उनके लिए आपको खुद से प्यार करना सिखाना असंभव था।

वे अपने बचपन में मिली शिक्षा के अनुसार सबकुछ अच्छा कर रहे थे। यदि आप अपने माता-पिता को अधिक समझना चाहते हैं तो उन्हें अपने बचपन के बारे में बताने के लिए प्रेरित कीजिए और यदि आप संवेदना के साथ सुनें तो आपको पता चलेगा कि उनकी शंकाएँ और सख्ती कहाँ से आई हैं। जिन लोगों ने ‘आपके साथ वह सब किया’, वे आपकी तरह ही भयभीत और सहमे हुए थे
मैं ऐसा मानती हूँ कि हम स्वयं अपने माता-पिता का चुनाव करते हैं

हममें से हर कोई इस धरती पर एक सुनिश्चित समय और स्थान पर जन्म लेता है। हम यहाँ पर विशेष पाठ पढ़ने के लिए आए हैं, जो हमें आध्यात्मिक विकास के पथ पर आगे बढ़ाएगा। हम अपनी लिंग, अपना रंग, अपना देश चुनते हैं और फिर हम किसी खास माता-पिता को खोजते हैं, जो उस स्वरूप को प्रतिबिंबित करेंगे, जिस पर हम इस जीवन में काम करना चाहते हैं। फिर जब हम बड़े होते हैं तो आम तौर पर अपने माता-पिता पर उँगली उठाते हैं और रिरियाते हुए शिकायत करते हैं, ‘आपने मेरे साथ ऐसा किया।’ लेकिन वास्तव में हमने उन्हें इसलिए चुना, क्योंकि वे हमारे कार्यों के लिए बिलकुल उपयुक्त थे।

हमारे बचपन में ही हमारी आस्थाएँ स्थापित होती हैं और फिर उन्हीं आस्थाओं का अनुभव करते हुए जीवन में आगे बढ़ते हैं। अपने जीवन में पीछे की ओर देखिए और ध्यान दीजिए कि कितनी बार आप उसी अनुभव से गुजरे हैं। मेरा मानना है कि आपने उन अनुभवों को एक के बाद एक स्वयं बनाया, क्योंकि वे आपके अपने विश्वास को प्रतिबिंबित कर रहे थे। यह कोई मायने नहीं रखता कि हमें कितने लंबे समय से कोई समस्या थी, या वह कितनी बड़ी है या वह हमारे जीवन के लिए कितनी घातक है।
वर्तमान सबसे अधिक शक्तिशाली होती है

आज तक जीवन में आपने जिन घटनाओं का अनुभव किया है, वे सभी आपके अतीत से जुड़े विचारों और आस्थाओं से बने हैं। वे उन विचारों और शब्दों से बने थे, जिन्हें आपने कल, पिछले सप्ताह, पिछले माह, पिछले वर्ष, आपकी आयु के अनुसार 10, 20, 30, 40 या इससे अधिक वर्षों के दौरान इस्तेमाल किया था।

फिर भी, वह आपकी अतीत है। वह बीत चुका है। इस पल में महत्त्वपूर्ण यह है कि आप अभी क्या सोचना, विश्वास करना व कहना चाहते हैं, क्योंकि ये विचार और शब्द आपका भविष्य निर्धारित करेंगे। वर्तमान क्षण ही आपकी ताकत हैं और यही आपके कल, अगले सप्ताह, अगले माह, अगले वर्ष और आगे के अनुभवों का आधार हैं।
आप ध्यान दे सकते हैं कि इस क्षण में आप क्या सोच रहे हैं। वह नकारात्मक है या सकारात्मक है ? क्या आप चाहते हैं कि यह विचार आपका भविष्य तय करे ? बस ध्यान दें और सजग हो जाएँ।

रविवार, 18 मार्च 2018

''हरी नाम सदा सुखकारी''


 भगवन श्री कृष्णा के नामो और उनके नाम स्मरण के महत्त्व के बारे में हमारे इस आर्टिकल को पूरा पढ़े जिसके पड़ने मात्र से आपको असीम सुख की प्राप्ति होगी और भगवन का नाम स्मरण भी होगा जिससे आपके दुःख  नष्ट होंगे और निश्चित ही पुण्य का उदय होगा, ईश्वर आपका कल्याण करे 

गोविन्द माधव मुकुन्द हरे मुरारे,
शम्भो शिवेश शशिशेखर शूलपाणे।
दामोदराच्युत जनार्दन वासुदेव,
त्याज्या भटा य इति संततमामनन्ति।।
स्कन्दपुराण में यमराज नाममहिमाके विषय में कहते हैं–’जो गोविन्द, माधव, मुकुन्द, हरे, मुरारे, शम्भो, शिव, ईशान, चन्द्रशेखर, शूलपाणि, दामोदर, अच्युत, जनार्दन, वासुदेव–इस प्रकार सदा उच्चारण करते हैं, उनको मेरे प्रिय दूतो ! तुम दूर से ही त्याग देना।’
यदि जगत् का मंगल करने वाला श्रीकृष्ण-नाम कण्ठ के सिंहासन को स्वीकार कर लेता है तो यमपुरी का स्वामी उस कृष्णभक्त के सामने क्या है? अथवा यमराज के दूतों की क्या हस्ती है?

भगवन्नाम


भगवान का नाम उन परमात्मा का वाचक है जो अखिल ब्रह्माण्ड के नायक, परिचालक, उत्पादक और संहारक हैं। ‘भगवान’ शब्द समस्त ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य का संकेत करता है। अत: भगवान में अनन्त ब्रह्माण्डों के अनन्त जीवों का ज्ञान, उनके अनन्तानन्त कर्मों का ज्ञान, अनन्तानन्त कर्मों के फलों का ज्ञान और उन कर्मफलों को देने की सामर्थ्य है। वे भगवान एक ही हैं; किन्तु उन्हें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, प्रजापति, इन्द्र, वरुण, अग्नि, राम, कृष्ण, गोविन्द, वासुदेव, नारायण आदि विभिन्न नामों से सम्बोधित किया जाता है। नाम-संकीर्तन उस परमपिता के प्रति अभिवादन है, उसके अमित उपकारों की स्वीकारोक्ति है और उसके प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन है। यह दीनता का प्रदर्शन है, गरीब की गुहार है और शरणागतभाव की अभिव्यक्ति है। यह समय का सदुपयोग है जिसमें भक्त स्वयं को समर्पण कर अपने अहंकार को नकारता है। भगवन्नाम शब्द में विलक्षण शक्ति है। जिस प्रकार किसी व्यक्ति का नाम लेने पर वही आता है; ठीक उसी तरह भगवन्नाम उच्चारण करने पर तीक्ष्ण तीर की तरह लक्ष्यभेद करता हुआ वह सीधे भगवान के हृदय पर प्रभाव करता है जिसके फलस्वरूप मनुष्य भगवत्कृपा का भाजन बनता है और उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

कलजुग केवल नाम अधारा

गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है–’कलजुग केवल नाम अधारा’
कलिजुग केवल हरि गुन गाहा।
गावत नर पावहिं भव थाहा।।
कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना।
एक अधार राम गुन गाना।।
‘सत्ययुग में ध्यान, त्रेता में यज्ञ के द्वारा और द्वापर में परिचर्या के द्वारा जो परम वस्तु प्राप्त होती है, कलियुग में केवल हरिनाम-संकीर्तन से उसकी प्राप्ति होती है।’ विष्णुपुराण के अनुसार–’कलौ संकीर्त्य केशवम्।’ कलियुग में भगवान श्रीकृष्ण के कीर्तन को प्रधानता दी गई है। कलियुग में तो संसार-सागर से पार उतरने के लिए एकमात्र भगवान का नाम ही सुदृढ़ नौका है। लगन हो, रटन हो और नाम पर विश्वास हो तो इस नाम-जप के प्रभाव से सब कुछ हो सकता है।

भगवान के नामोच्चारण की महिमा

भगवान के नाम की विलक्षण महिमा है। इस भगवन्नाम से जल में डूबता हुआ गजराज समस्त शोक से छूट गया, द्रौपदी का वस्त्र अनन्त हो गया, नरसीमेहता के सम्पूर्ण कार्य बिना किसी उद्योग के सिद्ध हो गए, नाम के स्पर्श से सेतुबंधन के समय पत्थर भी तैर गए, मीरा के लिए विष भी अमृत समान हो गया, अवढरदानी शिवजी भी नाम के प्रताप से भयानक विषपान कर गए और नीलकण्ठ बन गए और संसार को भस्मीभूत होने से बचा लिया, व्याध भी ‘राम’ का उल्टा ‘मरा’ जपकर वाल्मीकि बन गए, भक्त प्रह्लाद भी हिरण्यकशिपु द्वारा दी गई समस्त विपत्तियों से छूट गए और धधकती हुई ज्वाला भी उन्हें  भस्म नहीं कर सकी, बालक ध्रुव को अविचल पदवी प्राप्त हुई, नामजप के प्रभाव से ही हनुमानजी ने श्रीराम को अपना ऋणी बना लिया, अंतकाल में पुत्र का नाम नारायण लेने से अजामिल को भगवत्-पद की प्राप्ति हुई, नाम के प्रभाव से ही असंख्य साधकों को चमत्कारमयी सिद्धियां प्राप्त हुईं–ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो भगवान के नाम की महिमा को दर्शाते हैं।
नामोच्चार संसार के रोगों के निवारण की महान औषधि है। जैसे जलती हुई अग्नि को शान्त करने में जल सर्वोपरि साधन है, घोर अन्धकार को नष्ट करने के लिए सूर्य ही समर्थ है, वैसे दम्भ, कपट, मद, मत्सर आदि अनन्त दोषों को नष्ट करने के लिए श्रीभगवन्नाम ही सर्वसमर्थ है। बारम्बार नामोच्चारण करने से जिह्वा पवित्र हो जाती है। मन को अत्यन्त प्रसन्नता होती है। समस्त इन्द्रियों को सच्चिदानंदमय परम सुख प्राप्त होता है। समस्त शोक-संताप नष्ट हो जाते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार–’भगवान का नाम प्रेम से, बिना प्रेम से, किसी संकेत के रूप में, हंसी-मजाक करते हुए, किसी डांट-फटकार लगाने में अथवा अपमान के रूप में भी ग्रहण करने से मनुष्य के सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं।’
रामचरितमानस में कहा गया है–’भाव कुभाव अनख आलसहुँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहुँ।।’ भगवान का नाम लेकर जो जम्हाई भी लेता है उसके समस्त पाप भस्मीभूत हो जाते हैं। यथा–’राम राम कहि जै जमुहाहीं। तिन्हहि न पाप पुंज समुहाहीं।।
भगवन्नाम से तो बड़े-बड़े अमंगल ही क्या, भाग्य में लिखे हुए अनिष्टकारी योग भी मिट जाते हैं। तीर्थ में वास, लक्ष-लक्ष गोदान अथवा कोटि जन्म के सुकृत–कुछ भी भगवन्नाम के तुल्य नहीं है। नाम की सामर्थ्य असीम है, अचिन्तनीय है।
भक्त नामदेव का कहना है कि–’सोने के पर्वत, हाथी और घोड़े का दान तथा करोड़ों गायों का दान नाम के समान नहीं। ऐसा नाम अपनी जीभ पर रखो, जिससे जरा और मृत्यु पुन: न हो।’

प्रश्न यह उठता है कि नाम में इतनी शक्ति आयी कहां से? 


भगवान मनुष्यों पर अनुग्रह करने के लिए युग-युग में अवतार लेते हैं। अपने परिकरों के साथ आते हैं और कार्य हो जाने पर अपने गणों के साथ नित्यधाम को लौट जाते हैं। दु:खी जीवों के लिए वे छोड़ जाते हैं अपना अभय और अमृतप्रद नाम-चिन्तामणि। केवल यही नहीं, नाम के भीतर वे अपनी भारी शक्ति का आधान कर जाते हैं। नाम की शक्ति तो थी ही, प्रभु की शक्ति को पाकर नाम नामी (भगवान) की अपेक्षा महान बन जाता है। श्रीरामचन्द्रजी ने एक पाषाणमयी अहल्या का उद्धार किया था पर नाम युग-युग में शत-शत अहल्याओं का उद्धार करता है। अब इतनी अहल्या हैं कहां? तो इसका उत्तर है–’हल्या’ का अर्थ है कृषियोग्य; अहल्या का अर्थ है कृषि के अयोग्य अर्थात् पाषाण। सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य का हृदय पाषाण होता जा रहा है। भगवान तो प्रकट हैं नहीं जो उनका उद्धार करें। परन्तु उनका नाम तो है ही। भगवान तो उद्धार करके चले गए, नाम इस समय महान उद्धारलीला करके (अनेकों पाषाणहृदयों को द्रवित करके) शत-शत जीवों का उद्धार कर रहा है।

भगवान श्रीकृष्ण के नाम की महिमा से सम्बन्धित कुछ सुन्दर प्रसंग

प्राचीन कथाओं पर विश्वास करना यद्यपि कठिन होता है परन्तु भक्ति हृदय से (श्रद्धा और विश्वास से) की जाती है, तर्क से नहीं। प्रस्तुत हैं भगवन्नाम की महिमा से सम्बन्धित कुछ प्रसंग–
एक बार भगवती पार्वती ने भगवान शंकर से कहा–’देव ! आज किसी भक्त श्रेष्ठ का दर्शन कराने की कृपा करें।’ भगवान शंकर तत्काल उठ खड़े हुए और कहा–’जीवन के वही क्षण सार्थक हैं जो भगवान के भक्तों के सांनिध्य में व्यतीत हों।’ भगवान शंकर पार्वतीजी को वृषभ पर बैठाकर चल दिए। पार्वतीजी ने पूछा–’हम कहां चल रहे हैं?’ शंकरजी ने कहा–’हस्तिनापुर चलेंगे। जिनके रथ का सारथि बनना श्रीकृष्ण ने स्वीकार किया, उन महाभाग अर्जुन के अतिरिक्त श्रेष्ठ भक्त पृथ्वी पर और कौन हो सकता है।’ किन्तु हस्तिनापुर में अर्जुन के भवन के द्वार पर पहुँचने पर पता लगा कि अर्जुन सो रहे हैं। पार्वतीजी को भक्त का दर्शन करने की जल्दी थी पर शंकरजी अर्जुन की निद्रा में विघ्न डालना नहीं चाहते थे। उन्होंने श्रीकृष्ण का स्मरण किया। तत्काल ही श्रीकृष्ण, उद्धवजी, रुक्मिणीजी और सत्यभामाजी के साथ पधारे और शंकर-पार्वतीजी को प्रणाम कर आने का कारण पूछा।
शंकरजी ने कहा–’आप भीतर जाकर अपने सखा को जगा दें, क्योंकि पार्वतीजी अर्जुन के दर्शन करना चाहती हैं।’ ‘जैसी आज्ञा’ कहकर श्रीकृष्ण अंदर चले गए। बहुत देर हो गयी पर अंदर से कोई संदेश नहीं आया तब शंकरजी ने ब्रह्माजी का स्मरण किया। ब्रह्माजी के आने पर शंकरजी ने उन्हें अर्जुन के कक्ष में भेजा। पर ब्रह्माजी के अंदर जाने पर भी बहुत देर तक कोई संदेश नहीं आया। शंकरजी ने नारदजी का स्मरण किया। शंकरजी की आज्ञा से नारदजी अंदर गए। किन्तु संदेश तो दूर, कक्ष से वीणा की झंकार सुनाई देने लगी। पार्वतीजी से रहा नहीं गया। वे बोलीं–’यहां तो जो आता है, वहीं का हो जाता है। पता नहीं वहां क्या हो रहा है? आइये, अब हम स्वयं चलते हैं।’ भगवान शंकर पार्वतीजी के साथ अर्जुन के कक्ष में पहुँचे।
उधर श्रीकृष्ण जब अर्जुन के कक्ष में पहुँचे तब अर्जुन सो रहे थे और उनके सिरहाने बैठी सुभद्राजी उन्हें पंखा झल रही थीं। अपने भाई (श्रीकृष्ण) को आया देखकर वे खड़ी हो गईं और सत्यभामाजी पंखा झलने लगीं। उद्धवजी भी पंखा झलने लगे। रुक्मिणीजी अर्जुन के पैर दबाने लगीं। तभी उद्धवजी व सत्यभामाजी चकित होकर एक-दूसरे को देखने लगे। श्रीकृष्ण ने पूछा–’क्या बात है?’ तब उद्धवजी ने उत्तर दिया–’धन्य हैं ये कुन्तीनन्दन ! निद्रा में भी इनके रोम-रोम से ‘श्रीकृष्ण-श्रीकृष्ण’ की ध्वनि निकल रही है।’ तभी रुक्मिणीजी बोलीं–’वह तो इनके चरणों से भी निकल रही है।’
अर्जुन के शरीर से निकलती अपने नाम की ध्वनि जब श्रीकृष्ण के कान में पड़ी तो प्रेमविह्वल होकर भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन के चरण दबाने बैठ गए। भगवान श्रीकृष्ण के नवनीत से भी सुकुमार हाथों के स्पर्श से अर्जुन की निद्रा और भी प्रगाढ़ हो गयी।

उसी समय ब्रह्माजी ने कक्ष में प्रवेश किया और यह दृश्य, कि भक्त सो रहा है और उसके रोम-रोम से ‘श्रीकृष्ण’ की मधुर ध्वनि निकल रही है और स्वयं भगवान श्रीकृष्ण अपनी पत्नी रुक्मिणीजी के साथ उसके चरण दबा रहे हैं, ब्रह्माजी भावविह्वल हो गए और अपने चारों मुखों से वेद की स्तुति करने लगे। इसे देखकर देवर्षि नारद भी वीणा बजाकर संकीर्तन करने लगे। भगवान शंकर व माता पार्वती भी इस अलौकिक दिव्य-प्रेम को देखकर प्रेम के अपार सिन्धु में निमग्न हो गए। शंकरजी का डमरू भी डिमडिम निनाद करने लगा और वे नृत्य करने लगे। पार्वतीजी भी स्वर मिलाकर हरिगुणगान करने लगीं।
इस तरह सच्चे भक्त के अलौकिक दिव्य-प्रेम ने भगवान को भी भावविह्वल कर दिया।
जहाँ कहीं और कभी भी शुद्ध हृदय से  कृष्ण नाम का उच्चारण होता है वहाँ-वहाँ स्वयं कृष्ण अपने को व्यक्त करते हैं। नाम और कृष्ण अभिन्न हैं।
कौरवों की सभा में जब द्रौपदी निरावरण हुई तब द्रौपदी ने बारम्बार ‘गोविन्द’ और ‘कृष्ण’ का नाम लेकर पुकारा और आपत्तिकाल में अभय देने वाले भगवान श्रीकृष्ण का मन-ही-मन चिन्तन किया। वह बोली–
गोविन्द द्वारकावासिन् कृष्ण गोपीजनप्रिय।
कौरवै: परिभूतां मां किं न जानासि केशव।।
हे नाथ हे रमानाथ व्रजनाथार्तिनाशन।
कौरवार्णवमग्नां मामुद्धरस्व जनार्दन।।
कृष्ण कृष्ण महायोगिन् विश्वात्मन् विश्वभावन।
प्रपन्नां पाहि गोविन्द कुरुमध्येऽवसीदतीम्।।
अर्थात्–’ हे गोविन्द ! हे द्वारकावासी श्रीकृष्ण ! हे गोपियों के प्राणबल्लभ ! हे केशव ! कौरव मेरा अपमान कर रहे हैं, इस बात को क्या आप नहीं जानते? हे नाथ ! हे लक्ष्मीनाथ ! हे व्रजनाथ ! हे संकट-नाशन जनार्दन ! मैं कौरवरूप समुद्र में डूबी जा रही हूँ; मेरा उद्धार कीजिए ! हे सच्चिदानन्दस्वरूप श्रीकृष्ण ! महायोगिन् ! विश्वात्मन् ! विश्वभावन ! गोविन्द ! कौरवों के बीच कष्ट में पड़ी हुई मुझ शरणागत अबला की रक्षा कीजिए।’
द्रौपदी की करुण प्रार्थना सुनकर कृपालु श्रीकृष्ण गद्गद् हो गए तथा शय्या और आसन छोड़कर दया से द्रवित होकर पैदल ही दौड़ चले। धर्मस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण ने वहां पधारकर अव्यक्तरूप से द्रौपदी की साड़ी में प्रवेश किया और भांति-भांति की सुन्दर साड़ी से द्रौपदी को ढक दिया। इस तरह वस्त्र के रूप में भगवान वहां तुरंत आ पहुँचे।
भगवान के नाम की महिमा दर्शाने वाली एक और कथा जो कि बताती है कि भगवान्नाम के फलस्वरूप ही श्रीराधाजी का प्राकट्य हुआ–
ब्रह्माण्डपुराण के उत्तरखण्ड के छठे अध्याय में कात्यायनीदेवी द्वारा श्रीबृषभानु को वर देने की कथा है–
बृषभानु संतानहीन होने के कारण बड़ा दु:खी जीवन बिता रहे थे। तब उनकी पत्नी ने उनसे मां कात्यायनी देवी की आराधना करने के लिए कहा। श्रीबृषभानुजी के कठोर तपस्या करने पर वाग्देवी (सरस्वतीजी) ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें आदेश दिया–
हरिनाम विना वत्स वर्णशुद्धिर्न जायते।
‘वत्स ! हरिनाम के बिना व्रण-शुद्धि नहीं होगी। अतएव राजन् ! हरिनाम का कीर्तन ही कल्याणकारी है। तुम पवित्र हरिनामों को ही क्रम से ग्रहण करो।’
उन्हीं के निर्देश से क्रतुमुनि के द्वारा बृषभानु को हरिनाम प्राप्त हुआ। वह नाम इस प्रकार था–
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
श्रीबृषभानुजी की तपस्या और इस नाम-जप से प्रसन्न होकर कात्यायनी देवी उनके सामने प्रकट हो गयीं और उन्होंने श्रीबृषभानुजी से वर मांगने के लिए कहा। यद्यपि श्रीबृषभानुजी ने संतान-प्राप्ति की कामना से साधना आरम्भ की थी तथापि वे कात्यायनी देवी से बोले–’आपके दर्शन से ही मेरे सारे अभीष्ट पूर्ण हो गए।’ पर कात्यायनी देवी ने उनके पूर्ण अभीष्ट और कामना की पूर्ति के लिए उनको एक ज्योतिर्मय डिम्ब दिया। उसी से श्रीराधा का प्राकट्य हुआ। इस प्रकार ‘नाम’ के फलस्वरूप श्रीबृषभानुजी ने संतान प्राप्त की।
पावन ब्रजभूमि में आज भी चारों और ढोलक, मंजीरों की गूंज पर नाम-संकीर्तन की स्वरलहरी सुनाई देती है। इसी स्वरलहरी के सांनिध्य और स्पर्श से वृन्दावन के वृक्षों और लताओं में आज भी ‘राधेकृष्ण’की ध्वनि होती रहती है। भक्त शिरोमणि तुलसीदासजी ने अपने ब्रजप्रवास मे इसकी अनुभूति करते हुए कहा था–
बृन्दावन के वृक्ष को, मर्म न जाने कोय।
डार-डार अरु पात-पात में राधे राधे होय।।
भगवान श्रीकृष्ण का नाम चिन्तामणि, कल्पवृक्ष है–सब अभिलाषित फलों को देने वाला है। यह स्वयं श्रीकृष्ण है, पूर्णतम है, नित्य है, शुद्ध है, सनातन है। श्रीकृष्णचैतन्य महाप्रभु ने अपने ग्रंथ ‘श्रीचैतन्य-चरितामृत’ में कहा है–
सांसारिक तथा आध्यात्मिक सब प्रकार के लाभ देने में श्रीकृष्ण का नाम स्वयं श्रीकृष्ण के तुल्य है। नाम, विग्रह, स्वरूप–तीनों एक हैं; एक ही सत्ता की इन तीन दशाओं में कोई भेद नहीं है। तीनों चिदानन्दरूप हैं।

भगवान श्रीकृष्ण के कुछ प्रचलित नाम व उनका भावार्थ

भगवान के नाम अनन्त हैं, उनकी गणना कर पाना किसी के लिए भी सम्भव नहीं। यहां कुछ थोड़े से प्रचलित नामों का अर्थ दिया जा रहा है–
  • कृष्ण’कृष्ण’ शब्द की महाभारत में व्याख्या विलक्षण है। भगवान ने इस सम्बन्ध में स्वयं कहा है–’मैं काले लोहे की बड़ी कील बनकर पृथ्वी का कर्षण करता हूँ और मेरा वर्ण भी कृष्ण है–काला है, इसीलिए मैं ‘कृष्ण’ नाम से पुकारा जाता हूँ।
  • परमात्मा–सृष्टि का जो मूल कारण है; जिसके संसर्ग के बिना प्रकृति में सृजन-क्रिया सम्भव नहीं, उस सर्वव्यापक चित् तत्त्व को परमात्मा कहते हैं।
  • हरि–इस प्रसिद्ध नाम की व्युत्पत्ति दो प्रकार से दी गयी है–(१) जो यज्ञ में हवि के भाग को ग्रहण करते हैं वे प्रभु यज्ञभोक्ता होने से हरि कहलाए। (२) हरिन्मणि (नीलमणि) के समान उनका रूप अत्यन्त सुन्दर एवं रमणीय है।
  • अच्युत–जिनके स्वरूप, शक्ति, सौन्दर्य, ऐश्वर्य, ज्ञानादि का कभी किसी काल में, किसी भी कारण से ह्रास नहीं होता, वे भगवान अच्युत कहे जाते हैं।
  • भगवान–ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य–भगवान इन छहों ऐश्वर्यों से पूर्णतया युक्त हैं।
  • माधव–मायापति अथवा लक्ष्मीपति होने से भगवान का नाम माधव है।
  • गोविन्द–भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिराज धारण कर इन्द्र के कोप से गोप-गोपी और गायों की रक्षा की। अभिमान-भंग होने पर इन्द्र और कामधेनु ने  उन्हें ‘गोविन्द’ नाम से विभूषित किया। गौओं ने अपने दूध से भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक कर उन्हें गोविन्द–गौओं का इन्द्र बनाया।
  • गोपाल–गायों का पालन करने वाले।
  • हृषीकेश–हृषीक कहते हैं इन्द्रियों को। जो मन सहित समस्त इन्द्रियों का स्वामी है, वह हृषीकेश है।
  • पृश्निगर्भ–पृश्निगर्भ के अर्थ हैं–अन्न, वेद, जल तथा अमृत। इनमें भगवान निवास करते हैं; अत: पृश्निगर्भ कहलाते हैं।
  • वासुदेव–जिस प्रकार सूर्य अपनी किरणों से समस्त जगत् को आच्छादित करता है, उसी प्रकार इस विश्व को आच्छादित करने के कारण भगवान ‘वासुदेव’ कहलाते हैं।
  • केशव–केशव कहलाने के तीन कारण हैं–(१) अत्यन्त सुन्दर केशों से सम्पन्न होने से ‘केशव’ हैं। (२) केशी के वध के कारण ‘केशव’ हैं। (३) ब्रह्मा, विष्णु और शिव जिसके वश में रहकर अपने कार्यों का सम्पादन करते हैं, वह परमात्मा है केशव।
  • ईश्वर–उत्पत्ति, पालन, प्रलय में सब प्रकार से समर्थ होने के कारण ईश्वर कहलाते हैं।
  • पद्मनाभ–जिसकी नाभि में जगतकारणरूप पद्म स्थित है, वे पद्मनाभ कहे जाते हैं।
  • पद्मनेत्र–कमल के समान नेत्र वाले।
  • जनार्दन–जो प्रलयकाल में सबका नाश कर देते हैं अथवा जो अवतार लेकर दुष्टजनों का दमन करते हैं और भक्तलोग जिनकी प्रार्थना करते हैं; वे जनार्दन कहे जाते हैं।
  • नारायण–’नार’ कहते हैं–जल को, ज्ञान को और नर को। ज्ञान के द्वारा जिन्हें प्राप्त किया जाय, वे नारायण हैं। और नर के सखा हैं और जल में घर बनाकर (क्षीरसागर में) रहते हैं।
  • मुकुन्द–मुक्तिदाता होने से भगवान को मुकुन्द कहा जाता है
  • प्रभु–सर्वसमर्थ।
  • मधसूदन–प्रलय-समुद्र में मधु नामक दैत्य को मारने वाले।
  • मुरारी–मुर दैत्य के नाशक।
  • दयानिधि–दया के समुद्र।
  • कालकाल–काल के भी महाकाल।
  • नवनीतहर–माखन का हरण करने वाले।
  • बालवृन्दी–गोप-बालकों के समुदाय को साथ रखने वाले।
  • मर्कवृन्दी–वानरों के झुंड के साथ खेलने वाले।
  • यशोदातर्जित–यशोदा माता की डांट सहने वाले।
  • दामोदर–मैया द्वारा रस्सी से कमर में बांधे जाने वाले।
  • भक्तवत्सल–भक्तों से प्यार करने वाले।
  • श्रीधर–वक्ष:स्थल में लक्ष्मी को धारण करने वाले।
  • प्रजापति–सम्पूर्ण जीवों के पालक।
  • गोपीकरावलम्बी–गोपियों के हाथ को पकड़कर नाचने वाले।
  • बलानुयायी–बलरामजी का अनुकरण करने वाले।
  • श्रीदामप्रिय–श्रीदामा के प्रिय सखा।
  • अप्रमेयात्मा–जिसकी कोई माप नहीं ऐसे स्वरूप से युक्त।
  • गोपात्मा–गोपस्वरूप।
  • हेममाली–सुवर्णमालाधारी।
  • आजानुबाहु–घुटने तक लंबी भुजा वाले।
  • कोटिकन्दर्पलावण्य–करोड़ों कामदेवों के समान सौन्दर्यशाली।
  • क्रूर–दुष्टों को दण्ड देने के लिए कठोर।
  • व्रजानन्दी–अपने शुभागमन से सम्पूर्ण व्रज का आनन्द बढ़ाने वाले।
  • व्रजेश्वर–व्रज के स्वामी।
जीवन की जटिलताओं में फंसे, हारे-थके, आत्म-विस्मृत सम्पूर्ण प्राणियों के लिए आज के जीवन में भगवन्नाम ही एकमात्र तप है, एकमात्र साधन है, एकमात्र धर्म है। इस मनुष्य जीवन का कोई भरोसा नहीं है। इसके प्रत्येक श्वास का बड़ा मोल है। अत: उसका पूरा सदुपयोग करना चाहिए–
साँस-साँस पर कृष्ण भज, वृथा साँस मत खोय।
ना जाने या साँस को आवन होय, न होय।।

गुरुवार, 20 जुलाई 2017

जानिए 2018 का अंक ज्योतिष भविष्यफल

अंक ज्योतिष का 2018 का राशिफल आपके मूलांक पर आधारित है। साल 2018 पर चंद्रमा का अधिपत्य रहने वाला है। दूसरे शब्दों में कहें तो वर्ष 2018 पूरी तरह से चंद्रमा के नियंत्रण में रहेगा। ज्योतिष में चन्द्र ग्रह का विशेष महत्व है। यह साल पूरी तरह से महिलाओं के लिए काफ़ी सशक्त रहने वाला है, इसलिए महिलाओं को आसमान छूने से कोई भी ताक़त रोक नहीं सकती। अंक शास्त्र के अनुसार रचनात्मक लोगों के लिए भी यह साल फ़ायदा देने वाला होगा। उनके कार्यशैली में निखार आएगा और वे एक मुक़ाम को हासिल करेंगे। तो चलिए जानते हैं कि मूलांक 1 से लेकर 9 तक की भविष्यवाणियों को लेकर क्या कहता है हमारा यह भविष्यफल।

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मूलांक 1 का राशिफल


अंक ज्योतिष के अनुसार मूलांक 1 वाले जातकों के लिए यह साल ख़ूबसूरत रहने वाला है, इसलिए यदि आप कुछ नया शुरू करने की सोच रहे हैं तो यह साल इसकी गवाही दे रहा है। भविष्य की योजनाओं में सफलता मिलेगी। इस दौरान आप बहुत ही रचनात्मक और सशक्त महसूस करेंगे। काम के प्रति आपके समर्पण और मेहनत के लिए आपकी तारीफ़ होगी। माता-पिता का आशीर्वाद और सहयोग प्राप्त होगा। कई सालों की मेहनत का फल इस समय आपको प्राप्त होगा। वहीं जीवनसाथी के साथ आप सुकून भरा वक़्त बिताएँगे, साथ ही उनका सहयोग भी आपको प्राप्त होगा। महिलाएँ आपके लिए इस साल देवदूत की तरह साबित होंगी, क्योंकि साल 2018 के हर मोड़ पर वे आपके लिए खड़ी रहेंगी। परिवार में ख़ुशहाली के लिए लोगों से मिल-जुलकर रहें। पढ़ाई में बच्चों का प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर रहेगा, यही आपकी ख़ुशी का सबसे बड़ा राज़ होगा। इस दौरान आपके मन में आध्यात्मिक विचार उफान मारेंगे। वहीं प्रेमी-जोड़ों के लिए यह साल किसी तोहफ़े से कम नहीं है। साल 2018 में वे एक-दूसरे के साथ काफ़ी रोमांटिक वक़्त बिताएँगे। यदि आपके दिल को कोई भा गया है तो उसे प्रपोज़ कर सकते हैं। हाँ, ज्योतिष के अनुसार प्रपोज़ करने का सही समय चुनना बेहतर रहेगा। सितारे पूरी तरह से आपके साथ है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि यह साल मूलांक 1 के जातकों के लिए ही आ रहा है।

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मूलांक 2 का भविष्यफल

मूलांक 2 के जातकों के लिए यह साल काफ़ी कुछ लेकर आ रहा है। मूलांक 2 के जातकों में कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे। पेशेवर और निजी ज़िन्दगी दोनों शानदार रहेगी। साल 2018 में भाग्य भी आपका साथ देगा, पूरे साल पैसों की कमी नहीं रहने वाली है। यदि आप डेयरी, मोती या आर्ट का कारोबार करते हैं तो आपको बेहतर मुनाफ़ा प्राप्त होगा। कलात्मक लोगों के लिए भी साल 2018 किसी तोहफ़े से कम नहीं है। वर्ष 2018 में आपको वे सभी चीज़ें मिलेंगी जिन्हें आप पाना चाहते हैं, इसलिए अपने स्तर पर प्रयास जारी रखें। कई मामलों में आपको माता का सहयोग प्राप्त होगा जो आपके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। मूलांक 2 के जातकों के पारिवारिक जीवन के लिए यह साल बहुत ही अच्छा रहने वाला है। अंक शास्त्र के अनुसार शादीशुदा लोग पूरे साल आनन्द और स्नेह से रहेंगे। प्रेम-संबंधों में भी मधुरता आएगी। इस साल आपकी रचनात्मकता ही आपकी सफलता की कूँजी होगी। सेहत की बात करें तो स्वास्थ्य बेहतर रहने वाला है, लेकिन खान-पान पर ध्यान देना होगा। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि यह साल मूलांक 2 के जातकों को ही समर्पित है।
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मूलांक 3 का भविष्यकथन


मूलांक 3 अंक शास्त्र के मुताबिक़ मूलांक 3 के जातकों के लिए यह साल औसत रहने वाला है। आपके लिए इस साल भी कुछ ख़ास नया नहीं होगा, हालाँकि इसका मतलब यह नहीं कि आप प्रयास करना ही छोड़ दें। आप अपने स्तर पर प्रयास करते रहें। साल 2018 के शुरुआती दौर में आप किसी बात को लेकर परेशान हो सकते हैं, लेकिन स्थितियों में जल्द ही सुधार भी हो जाएगा और आपको कई सुनहरे मौक़े मिलेंगे। आप जितनी मेहनत करेंगे आपको परिणाम भी उतने ही अच्छे मिलेंगे। इस दौरान आपके समझ में भी वृद्धि होगी और आप अपने कार्यों को सरलतापूर्वक पूरा करेंगे। वर्ष 2018 में आपको कई उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन आपको विचलित नहीं होना है, बल्कि आपको इस दौरान सकारात्मक रहना है। इस दौरान आप अपनी योग्यता और काबिलियत से अच्छे परिणाम पाएँगे। आपके व्यक्तित्व और चरित्र में सुधार होगा। आर्थिक स्थिति की बात करें तो आपको कुछ अच्छे रिजल्ट्स मिलेंगे। इस साल आपको सामाजिक दायरे बढ़ाने के लिए कई मौक़े मिलेंगे और समाज के लोगों के साथ आपके रिश्ते बेहतर होंगे। परिवार में हँसी-ख़ुशी का माहौल रहेगा और पूरे साल आप अपने बच्चों के साथ सुखद पल बिताने में सफल रहेंगे। हाँ, साथ ही आपको इस बात का ख़्याल रखना है कि उन्हें आपके लाड़-प्यार की हमेशा ज़रूरत है। इसलिए बच्चों का पूरा ध्यान रखें। वर्ष 2018 में आपका झुकाव दान-पुण्य की ओर रहेगा और उदार स्वभाव के लिए लोग आपकी तारीफ़ भी करेंगे। सेहत के मामले में यह साल अच्छा रहने वाला है। अंत में कह सकते हैं कि यह साल भले ही औसत है, लेकिन आप कड़ी मेहनत और लगन से सुखद परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।

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मूलाकं 4 की भविष्यवाणी

 मूलांक 4 मूलांक 4 के जातकों के लिए यह इस साल आपको कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन आप अपने प्रयासों और मेहनत से इन चुनौतियों पर विजय प्राप्त करेंगे। अपनी मेहनत की वजह से ही आप अपने लक्ष्य को पाने में सफल रहेंगे। अतः अपनी कमज़ोरियों को इस साल अपने ऊपर हावी ना होने दें। पेशेवर और निजी ज़िन्दगी में आपको कुछ तनाव हो सकता है, लेकिन आपको हताश नहीं होना है, बल्कि आपको विवेक से काम लेना होगा। महत्वपूर्ण कार्यों को आसानी से पूरा करने में आप सफल रहेंगे। पूरे साल आपको नकारात्मक चीज़ों से दूर रहना है, क्योंकि ये आपके राह में रोड़ा बन सकती हैं। मानसिक रूप से आप थोड़े असहज हो सकते हैं। इससे निदान के लिए योग और ध्यान का सहारा लें। साथ ही अच्छी सेहत के लिए व्यायाम भी करें। चाहे परिस्थिति कितनी भी विकट हो, आप सकारात्मक बने रहें। घरेलू मामलों में आपको मिले-जुले परिणाम मिलेंगे। माता की सेहत पर विशेष ध्यान देना होगा। यदि आप विद्यार्थी हैं तो आपको एकाग्रता में कमी महसूस हो सकती है। आप पढ़ाई में कुछ ख़ास नहीं कर पाएँगे। इसलिए भटकने से अच्छा होगा कि आप अपने लक्ष्य पर ध्यान दें। वैसे तो साल 2018 आपके लिए औसत है, लेकिन आपको सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ना है। इस बात को आप गाँठ बाँधे लें तो अच्छा होगा।
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मूलांक 5 का फलादेश


मूलांक 5 मूलांक 5 के जातकों को साल 2018 मिला-जुला परिणाम देने वाला है। इस साल कई चुनौतियाँ आपकी परीक्षा लेंगी। अतः आपको अपने स्वभाव और सोच पर विशेष ध्यान देना होगा। कार्य-स्थल पर वाद-विवाद करने से बचें, अन्यथा आप किसी मुसीबत में पड़ सकते हैं। इसके साथ ही अपने ग़ुस्से पर काबू रखें और सोच-विचार कर बोलें। इससे आपके रिश्तों में मधुरता आएगी। दोस्तों और लोगों से सलीके से पेश आएँ। आप अपने सकारात्मक स्वभाव से कॅरियर की नई ऊँचाई पर पहुँचेंगे। वित्त संबंधी मामलों में सतर्क रहें। पूरे साल पैसे का आगमन होता रहेगा, लेकिन ख़र्चों पर लगाम लगाने की ज़रूरत होगी। छात्रों को अच्छे परिणाम के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। अपने लक्ष्य को पाने के लिए आपको पढ़ाई में अतिरिक्त समय भी देना होगा और पूरी लगन के साथ पढ़ाई करनी होगी। अतः आप शांत रहें, आत्मविश्वास में कमी ना आने दें और ज़िन्दगी को एक सुखद मोड़ पर ले जाएँ।

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मूलांक 6 का फलकथन

 मूलांक 6 अंक ज्योतिष के अनुसार सफलता पाने के लिए आपको कड़ी मेहनत करनी होगी। वैसे तो स्थितियाँ धीरे-धीरे बदलेंगी, लेकिन भाग्य आपके साथ रहेगा इसलिए घबराने की ज़रूरत नहीं है। इस साल आप बुरे और अच्छे दोनों तरह के अनुभव करेंगे। इस दौरान आपको कई सुनहरे मौक़े मिलेंगे, लेकिन इन मौक़ों का फ़ायदा उठाने के लिए कड़ी मेहनत के साथ-साथ आपको स्मार्ट तरीक़े से काम भी करना होगा। सेहत पर विशेष ध्यान दें, अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। साथ ही माता जी की सेहत का पूरा ख़्याल रखें। माता जी की सेहत को नज़रअंदाज़ करना उचित नहीं होगा। कुछ परेशानियों के कारण आप तनाव में आ सकते हैं जिसके कारण काम में आपका मन लगेगा और एकाग्रता की कमी रहेगी, हालाँकि अपने आशावादी सोच के कारण आप सफलता के पथ पर अग्रसर रहेंगे। वैवाहिक जीवन के लिए आपसी समझ बेहद ज़रूरी है और सफल वैवाहिक जीवन का यही राज़ भी है। साथ ही रिश्तों में किसी बात को छिपाएँ नहीं। जहाँ तक प्रेम-संबंधों का सवाल है तो साल 2018 इसके लिए कुछ ख़ास अच्छा नहीं है। पार्टनर के साथ किसी बात को लेकर थोड़ी बहस हो सकती है। एक-दूसरे पर आरोप लगाने से बचें, नहीं तो आपके रिश्ते हमेशा के लिए ख़राब हो सकते हैं। सकारात्मक परिणाम के लिए सकारात्मक रुख़ अपनाएँ। साथ ही चीज़ों की बेहतरी के लिए आप अंक ज्योतिष के आधार पर नाम में सुधार भी कर सकते हैं।

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मूलांक 7 का राशिफल

मूलांक 7 के जातकों के लिए साल 2018 ख़ुशियोंभरा होगा। इस साल कई सुनहरे मौक़े आपका बेसब्री से इंतज़ार भी कर रहे हैं। पूर्व में किए गए कार्यों के सुखद परिणाम आपको इस समय मिलेंगे। आपकी ज़िन्दगी में कुछ बड़े बदलाव होंगे और आपको कुछ अच्छे रिजल्ट्स भी मिलेंगे, जिसकी तलाश आपको वर्षों से थी। कार्य-स्थल पर आपको अप्रत्याशित मुनाफ़ा होगा। यदि आप नौकरीपेशा हैं तो सैलरी भी बढ़ेगी और आपकी पदोन्नती भी होगी, हालाँकि आपको अपने वित्तीय स्थिति पर ध्यान देने की ज़रूरत पड़ेगी। गृहस्थ जीवन के लिहाज़ से 2018 की अवधि अच्छी है। परिवार के सदस्यों में मेल-भाव बना रहेगा, जो आपकी ख़ुशी का सबसे बड़ा राज़ होगा। घर में मांगलिक कार्यों का आयोजन होगा। इस दौरान आप बहुत कुछ नया सीखेंगे और गहन चिंतन भी करेंगे। आपके अंदर आध्यात्म को जानने की रूची जागृत होगी और गुप्त विद्या की ओर आपका रूझान होगा। ननिहाल से आपको साल 2018 में सहयोग मिलेगा। उनके सलाह आपके राह को आसान करेंगे। अंततः कह सकते हैं कि साल 2018 में आपके आस-पास सकारात्मक माहौल ही रहने वाला है।

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मूलांक 8 का भविष्यफल

मूलांक 8 अंक शास्त्र पर आधारित 2018 राशिफल के मुताबिक़ मूलांक 8 के जातकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। आपकी सफलता की राह में कई बाधाएँ आएँगी। इन विषम परिस्थितियों के कारण आप तनाव में भी आ सकते हैं। ये चुनौतियाँ पूर्व में किए गए कार्यों के कारण उत्पन्न होंगी। चीज़ें आपके अनुरूप नहीं होंगी। हर एक क़दम पर आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए किसी भी नतीजे पर पहुँचने से पहले अच्छी तरह से सोच-विचार कर लें। आपके कार्य समय पर पूरा नहीं होंगे और निजी जीवन में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। यदि आप विद्यार्थी हैं तो पढ़ाई में भी दिक़्क़तें आएँगी और एकाग्रता की कमी रहेगी। घरेलू मामलों में अधिक सतर्कता की ज़रूरत पड़ेगी। परिवार के सदस्यों के बीच आपसी विवाद होने की संभावना है। अपने पार्टनर पर बेवजह शक-संदेह करने से बचें। आपके रचनात्मक कार्यों में भी बाधा आ सकती है। स्वास्थ्य के मामले में भी आपको सतर्क रहने की दरकार है। ग़लत जीवनशैली के कारण सेहत संबंधी परेशानी हो सकती है। जैसा कि साल 2018 काफ़ी चुनौतियों से भरा है, लेकिन आपको आशावादी सोच रखने की ज़रूरत होगी, क्योंकि ज़िन्दगी में अच्छी और बुरी चीज़ें होती हैं। सभी समस्याओं को एक किनारे रखकर अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रीत करें। सकारात्मक रुख़ और साहस के साथ आगे बढ़ें। सभी पेशेवर और निजी समस्याओं का समाधान होगा।
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मूलांक 9 का फलकथन

मूलांक 9 के जातकों के लिए यह साल किसी तोहफ़े से कम नहीं है। साल 2018 में आपकी ज़िन्दगी में कई अच्छे बदलाव होंगे। आपकी सफलता एक नए मुक़ाम पर पहुँचेगी और आय के नए स्रोत बनेंगे। कार्य-स्थल पर आपका प्रदर्शन क़ाबिल-ए-तारीफ़ रहेगा। अपने रचनात्मक कार्यों और मेहनत से आपके सीनियर काफ़ी प्रभावित होंगे। कारोबार में भी अच्छे परिणाम मिलेंगे। प्रभावशाली लोगों के लिए तो साल 2018 किसी भी मायने में शानदार है, ख़ासकर राजनेताओं के लिए। यह साल एथलीटों के लिए भी काफ़ी अच्छा रहने वाला है। गृहस्थ जीवन में ख़ुशियों का माहौल बना रहेगा। परिवार के सदस्यों का पूरा सहयोग मिलेगा। अपने चहेतों के साथ समय बिताएँ। इससे आपके तनाव दूरे होंगे। पढ़ाई में बच्चों का प्रदर्शन शानदार रहेगा। सेहत के मामलों में भी वर्ष 2018 अच्छा रहने वाला है। योग और व्यायाम से सेहत को और बेहतर बना सकते हैं। तो पहले से ही तैयार हो जाएँ, क्योंकि नया साल आपके लिए कई सुनहरे मौक़े लेकर आ रहा है।

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