बुधवार, 21 जुलाई 2021

30 साल की रानी 'अबक्का चौटा'

साल था 1555 जब पुर्तगाली सेना कालीकट, बीजापुर, दमन, मुंबई जीतते हुए गोवा को अपना हेडक्वार्टर बना चुकी थी। टक्कर में कोई ना पाकर उन्होंने पुराने कपिलेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर उस पर चर्च स्थापित कर डाली।

मंगलौर का व्यवसायिक बंदरगाह अब उनका अगला निशाना था। उनकी बदकिस्मती थी कि वहाँ से सिर्फ 14 किलोमीटर पर 'उल्लाल' राज्य था जहां की शासक थी 30 साल की रानी 'अबक्का चौटा' (Abbakka Chowta).।

पुर्तगालियों ने रानी को हल्के में लेते हुए केवल कुछ सैनिक उसे पकडने भेजा। लेकिन उनमेंसे कोई वापस नहीं लौटा। क्रोधित पुर्तगालियों ने अब एडमिरल 'डॉम अल्वेरो ड-सिलवीरा' (Dom Álvaro da Silveira) के नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेजी। शीघ्र ही जख्मी एडमिरल खाली हाथ वापस आ गया। इसके बाद पुर्तगालियों की तीसरी कोशिश भी बेकार साबित हुई।

चौथी बार में पुर्तगाल सेना ने मंगलौर बंदरगाह जीत लिया। सोच थी कि यहाँ से रानी का किला जीतना आसान होगा, और फिर उन्होंने यही किया। जनरल 'जाओ पिक्सीटो' (João Peixoto) बड़ी सेना के साथ उल्लाल जीतकर रानी को पकड़ने निकला।

लेकिन यह क्या..?? किला खाली था और रानी का कहीं अता-पता भी ना था। पुर्तगाली सेना हर्षोल्लास से बिना लड़े किला फतह समझ बैठी। वे जश्न में डूबे थे कि रानी अबक्का अपने चुनिंदा 200 जवान के साथ उनपर भूखे शेरो की भांति टूट पड़ी।

बिना लड़े जनरल व अधिकतर पुर्तगाली मारे गए। बाकी ने आत्मसमर्पण कर दिया। उसी रात रानी अबक्का ने मंगलौर पोर्ट पर हमला कर दिया जिसमें उसने पुर्तगाली चीफ को मारकर पोर्ट को मुक्त करा लिया।

अब आप अन्त जानने में उत्सुक होंगे..??

रानी अबक्का के देशद्रोही पति ने पुर्तगालियों से धन लेकर उसे पकड़वा दिया और जेल में रानी विद्रोह के दौरान मारी गई।

क्या आपने इस वीर रानी अबक्का चौटा के बारे में पहले कभी सुना या पढ़ा है..??  इस रानी के बारे में जो चार दशकों तक विदेशी आततायियों से वीरता के साथ लड़ती रही, हमारी पाठ्यपुस्तकें चुप हैं। अगर यही रानी अबक्का योरोप या अमेरिका में पैदा हुई होती तो उस पर पूरी की पूरी किताबें लिखी गई होती।

इस कहानी से दो बातें साफ हैं,,

हमें हमारे गौरवपूर्ण इतिहास से जानबूझ कर वन्चित रखा गया है। हमारी 1000 साल की दासता अपने ही देशवासियों (भितरघातियों) के विश्वासघात का नतीजा है। दुर्भाग्य से यह आज भी यथावत है,,,

स्त्रोत:- #Indian_Untold_histrory

रविवार, 11 जुलाई 2021

पुराणों व हिन्दू धर्मग्रंथों में उल्लेखित पर्यावरण ज्ञान

 पुराणों व हिन्दू धर्मग्रंथों में उल्लेखित पर्यावरण ज्ञान



👉 10 कुॅंओं के बराबर एक बावड़ी, 10 बावड़ियों के बराबर एक तालाब, 10 तालाब के बराबर 1 पुत्र एवं 10 पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है।
👉 जीवन में लगाए गए वृक्ष अगले जन्म में संतान के रूप में प्राप्त होते हैं। (विष्णु धर्मसूत्र 19/4)
👉 जो व्यक्ति पीपल अथवा नीम अथवा बरगद का एक, चिंचिड़ी (इमली) के 10, कपित्थ अथवा बिल्व अथवा  ऑंवले के तीन और आम के पांच पेड़ लगाता है, वह *सब पापों से मुक्त हो जाता है। ( भविष्य पुराण)
👉 पौधारोपण करने वाले व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
👉 शास्त्रों के अनुसार पीपल का पेड़ लगाने से संतान लाभ होता है।
👉 अशोक वृक्ष लगाने से शोक नहीं होता है।
👉 पाकड़ का वृक्ष लगाने से उत्तम ज्ञान प्राप्त होता है।
👉 बिल्वपत्र का वृक्ष लगाने से व्यक्ति दीर्घायु होता है।
👉 वट वृक्ष लगाने से मोक्ष मिलता है।
👉 आम वृक्ष लगाने से कामना सिद्ध होती है।
👉 कदम्ब का वृक्षारोपण करने से विपुल लक्ष्मी की प्राप्त होती है। प्राचीन भारतीय चिकित्सा- पद्धति के अनुसार पृथ्वी पर ऐसी कोई भी वनस्पति नहीं है, जो औषधि ना हो।

 स्कंद पुराण में एक सुंदर श्लोक है-

अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम्  दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।

अश्वत्थः         =     पीपल (100% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
पिचुमन्दः      =     नीम (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
न्यग्रोधः         =     वटवृक्ष(80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
चिञ्चिणी        =      इमली (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
कपित्थः        =       कविट (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
बिल्वः           =      बेल (85% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आमलकः      =     आँवला (74% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आम्रः            =     आम (70% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
                            (उप्ति = पौधा लगाना)

        अर्थात्- जो कोई इन वृक्षों के पौधों का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नही करना पड़ेंगे।

       इस सीख का अनुसरण न करने के कारण हमें आज इस परिस्थिति के स्वरूप में नरक के दर्शन हो रहे हैं। 
अभी भी कुछ बिगड़ा नही है, हम अभी भी अपनी गलती सुधार सकते हैं।
औऱ
  • गुलमोहर, निलगिरी- जैसे वृक्ष अपने देश के पर्यावरण के लिए घातक हैं।
  • पश्चिमी देशों का अंधानुकरण कर हम ने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है।
  • पीपल, बड और नीम जैसे वृक्ष रोपना बंद होने से सूखे की समस्या बढ़ रही है
  • ये सारे वृक्ष वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते है साथ ही धरती के तापनाम को भी कम करते है।
          हमने इन वृक्षों के पूजने की परंपरा को अन्धविश्वास मानकर  फटाफट संस्कृति के चक्कर में इन वृक्षों से दूरी बनाकर  यूकेलिप्टस (नीलगिरी) के वृक्ष सड़क के दोनों ओर लगाने की शुरूआत की।  यूकेलिप्टस झट से बढ़ते है लेकिन  ये वृक्ष दलदली जमीन को सुखाने के लिए लगाए जाते हैं। इन वृक्षों से धरती का जलस्तर घट जाता है। विगत ४० वर्षों में नीलगिरी के वृक्षों को बहुतायात में लगा कर पर्यावरण की हानि की गई है।

शास्त्रों में पीपल को वृक्षों का राजा कहा गया है। 

मूले ब्रह्मा त्वचा विष्णु शाखा शंकरमेवच।
पत्रे पत्रे सर्वदेवायाम् वृक्ष राज्ञो नमोस्तुते।।

भावार्थ-जिस वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा जी तने पर श्री हरि विष्णु जी एवं शाखाओं पर देव आदि देव महादेव भगवान शंकर जी का निवास है और उस वृक्ष के पत्ते पत्ते पर सभी देवताओं का वास है ऐसे वृक्षों के राजा पीपल को नमस्कार है।।
    
आगामी वर्षों में प्रत्येक ५०० मीटर के अंतर पर यदि एक एक पीपल, बड़ , नीम आदि का वृक्षारोपण किया जाएगा, तभी अपना भारत देश प्रदूषणमुक्त होगा। 

घरों में तुलसी के पौधे लगाना होंगे।

          हम अपने संगठित प्रयासों से ही अपने "भारत" को नैसर्गिक आपदा से बचा सकते है।

        भविष्य में भरपूर मात्रा में नैसर्गिक ऑक्सीजन मिले इसके लिए आज से ही अभियान आरंभ करने की आवश्यकता है।

         आइए हम पीपल, बड़, बेल, नीम, आंवला एवं आम आदि वृक्षों को लगाकर आने वाली पीढ़ी को निरोगी एवं "सुजलां सुफलां पर्यावरण"  देने का प्रयत्न करे।

शनिवार, 12 जनवरी 2019

यू कैन हील योर लाइफ

यू कैन हील योर लाइफ



प्रकाशक : प्रभात प्रकाशनप्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7494
आईएसबीएन :   9788173156809



You Can Heal Your Life (Hindi) by [Hay, Louise L]

इस पुस्तक में सबकुछ है- जीवन, उसके मूल्य और अपने आप पर कैसे स्वाध्याय करें...

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यू कैन हील योर लाइफ–इस अद्भुत पुस्तक के माध्यम से लुइस एल हे आत्मविकास की यात्रा को पाठकों के साथ बाँट रही हैं। उनका कहना है कि हमारा जीवन कितना भी निम्न स्तरीय क्यों न रहा हो, हम अपने जीवन को पूरी तरह बदलकर उसे और ज्यादा बेहतर बना सकते हैं।

इस पुस्तक में सबकुछ है–जीवन, उसके मूल्य और अपने आप पर कैसे स्वाध्याय करें। अपने बारे में आपको जो भी जानने की आवश्यकता है, वह सब इसमें हैं। इसमें रोग के संभावित मानसिक कारणों की संदर्भ मार्गदर्शिका है, जो वास्तव में उल्लेखनीय और अनूठी है। किसी निर्जन द्वीप पर कोई व्यक्ति इस पुस्तक को पा जाए तो वह अपने जीवन को बेहतरीन बनाने के लिए जो भी जानना चाहता है, वह सब इससे सीख-समझ सकता है।

प्रत्येक अध्याय एक निश्चय के साथ आरंभ होता है और सभी अध्याय एक उपचार के साथ समाप्त होते हैं। जब आप इससे संबंधित जीवन के भाग पर कार्य करेंगे तो प्रत्येक अध्याय उपयोगी सिद्ध होगा। यह चेतन को परिवर्तित करने के लिए तैयार सकारात्मक विचारों का प्रवाह है।

यदि आप पुस्तक के क्रमानुसार दिए गए अभ्यास निष्ठापूर्वक करेंगे तो पुस्तक के समाप्त होने तक निश्चय ही अपने जीवन में परिवर्तन महसूस कर रहे होंगे।
विश्व की सर्वाधिक बिक्रीवाली पुस्तकों में शामिल। 

1. जिसमें मुझे विश्वास है

‘बुद्धि और ज्ञान के द्वार हमेशा खुले रहते हैं।’
जीवन वास्तव में बहुत सरल है। जो हम देते हैं, वही हमें वापस मिलता है
जो कुछ हम अपने विषय में सोचते हैं, वह हमारे लिए सच हो जाता है। मैं मानती हूँ कि हर व्यक्ति, जिनमें मैं भी शामिल हूँ, अपने जीवन में हर अच्छी या बुरी चीज के लिए स्वयं जिम्मेदार है। हमारे मस्तिष्क में आनेवाला हर विचार हमारा भविष्य बनाता है। हममें से हर व्यक्ति अपने विचारों और अपनी भावनाओं द्वारा अपने अनुभवों को जन्म देता है। हमारे विचार, जो हम बोलते हैं, वह सब हमारा अनुभव बन जाता है।

हम खुद परिस्थितियों को जन्म देते हैं और फिर अपनी कुंठा के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को दोषी ठहराते हुए अपनी ऊर्जा नष्ट करते हैं। कोई व्यक्ति, कोई स्थान और कोई चीज हमसे अधिक शक्तिशाली नहीं है, क्योंकि अपने मस्तिष्क में केवल ‘हम’ ही सोचते हैं। जब हम अपने मस्तिष्क में शांति, तालमेल और संतुलन बना लेते हैं तो यह सब हमारे जीवन में भी आ जाता है।

इनमें से कौन सा कथन आपके विचार से मिलता है ?
–लोग मेरे पीछे पड़े हैं।
–हर व्यक्ति हमेशा मेरी मदद करता है।
इनमें से प्रत्येक बिलकुल भिन्न अनुभव को जन्म देगा। हम अपने बारे में और जीवन के बारे में जो भी मानते हैं, वह हमारे लिए सच हो जाता है।

हम जो भी सोचना या मानना चाहते हैं, हर विचार से ब्रह्मांड हमारे साथ होता है
दूसरे रूप में, हम जो भी स्वीकार करते हैं, हमारा अवचेतन मन उसे स्वीकार कर लेता है। इन दोनों का अर्थ है कि मैं अपने और जीवन के बारे में जो भी स्वीकारता हूँ, वह मेरे लिए एक सच्चाई बन जाता है। आप अपने और जीवन के बारे में जो भी सोचते हैं, वह आपके लिए सच हो जाता है। हमारे पास सोचने के लिए असीमित विकल्प होते हैं।
जब हम यह जान जाते हैं तो ‘लोग मेरे पीछे पड़े हैं’ की अपेक्षा ‘हर कोई हमेशा मेरी मदद करना चाहता है’ का विकल्प चुनना सही होगा।

शाश्वत शक्ति कभी हमारा मूल्यांकन या हमारी आलोचना नहीं करती
वह केवल हमारे मूल्यों पर हमें स्वीकार करती है। फिर वह हमारे विचारों को हमारे जीवन में प्रतिबिंबित करती है। यदि मैं मानना चाहती हूँ कि मेरा जीवन बहुत एकाकी है और कोई मुझसे प्रेम नहीं करता, तो मुझे दुनिया में यही मिलेगा।
लेकिन यदि मैं उस विचार को छोड़ने के लिए तैयार हूँ और अपने लिए दृढ़ता से यह कहूँ कि ‘प्रेम हर जगह है और मैं प्रेम करने व प्रेम पाने योग्य हूँ,’ और इस नए विचार पर कायम रहूँ तथा उसे बार-बार स्वीकार करूँ तो यह मेरे लिए सच हो जाएगा। अब मुझसे प्रेम करनेवाले लोग मेरे जीवन में आएँगे, पहले से मौजूद लोग मेरे प्रति अधिक प्रेम रखेंगे और मैं दूसरे के प्रति आसानी से प्रेम की अभिव्यक्ति कर पाऊँगी।

हममें से अधिकतर लोग ‘हम कौन हैं’ के बारे में मूर्खतापूर्ण विचार रखते हैं और जीवन जीने के लिए बहुत से कठोर नियम बनाते हैं
यह हमें दोषी ठहराने के लिए नहीं है, क्योंकि हममें से हर कोई इस क्षण में जितना अच्छा कर सकता है, कर रहा है। यदि हम बेहतर जानते और हमारे पास अधिक समझ एवं सजगता होती तो हम उसे अलग तरीके से करते। कृपया अपनी स्थिति के लिए अपने आपको निचले स्तर पर न रखें। आपने यह पुस्तक उठाई और मुझे खोज निकाला, इसके अर्थ है कि आप अपने जीवन में एक नया, सकारात्मक परिवर्तन लाना चाहते हैं। इसके लिए अपने आपको धन्यवाद दें। ‘पुरुष रोते नहीं !’ ‘महिलाएँ पैसा नहीं सँभाल सकतीं !’ जीवन के लिए कितने संकुचित विचार हैं ये !

जब हम बहुत छोटे होते हैं तो अपने तथा जीवन के बारे में महसूस करना हम अपने आस-पास के बड़ों की प्रतिक्रियाओं से सीखते हैं
इस प्रकार हम अपने तथा अपनी दुनिया के विषय में सोचना सीखते हैं। अब यदि आप ऐसे लोग साथ रहें हैं, जो बहुत दुःखी भयभीत, अपराध-बोध से ग्रस्त या क्रुद्ध थे तो आपने अपने बारे में और अपनी दुनिया के बारे में बहुत सी नकारात्मक बातें सीखीं।
‘मैं कभी भी सही नहीं करता’, ‘यह मेरी गलती है’, ‘यदि मुझे गुस्सा आता है तो मैं एक बुरी व्यक्ति हूँ।’
इस तरह के विचार एक निराशाजनक जीवन को जन्म देते हैं।

जब हम बड़े हो जाते हैं तो अपनी प्रवृत्ति के अनुसार प्रारंभिक जीवन के भावनात्मक वातावरण का पुनःसर्जन करते हैं
यह अच्छा है या बुरा, सही है या गलत; यह वही होता है, जिसे हम अपने अंदर ‘घर’ के रूप में जानते हैं। साथ ही, हम अपने व्यक्तिगत संबंधों में उन संबंधों को फिर से जीवित करने के प्रयास करते हैं, जो संबंध हमारा अपने माँ या पिता के साथ या उनके बीच था। सोचिए कि कितनी बार आपका प्रेमी या बॉस बिलकुल आपकी माँ या आपके पित की तरह था।
हम अपने साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं, जो हमारे माता-पिता हमारे साथ करते थे। हम उसी तरीके से स्वयं को डाँटते और सजा देते हैं। जब आप सुनते हैं तो लगभग उन शब्दों को सुन सकते हैं। एक बच्चे के रूप में जिस तरह हमें प्यार दिया गया था या प्रोत्साहित किया गया था, हम उसी तरीके से खुद को प्यार या प्रोत्साहित करते हैं।

‘तुम कभी कुछ ठीक नहीं करते।’ ‘यह सब तुम्हारी गलती है।’ आपने स्वयं से कितनी बार ऐसा कहा ?
‘तुम लाजवाब हो।’ ‘मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।’ आप कितनी बार खुद से ऐसा कहते हैं ?
फिर भी, इसके लिए हम अपने माता-पिता को दोषी नहीं ठहराएँगे

हम सभी पीड़ितों द्वारा पीड़ित हैं, और शायद वे हमें कुछ ऐसा नहीं सिखा पाते जो वे नहीं जानते थे। यदि आपकी माँ नहीं जानती थीं कि अपने आपसे प्यार कैसे करना है या आपके पिता नहीं जानते थे कि वह आपसे प्यार कैसे करें, तो उनके लिए आपको खुद से प्यार करना सिखाना असंभव था।

वे अपने बचपन में मिली शिक्षा के अनुसार सबकुछ अच्छा कर रहे थे। यदि आप अपने माता-पिता को अधिक समझना चाहते हैं तो उन्हें अपने बचपन के बारे में बताने के लिए प्रेरित कीजिए और यदि आप संवेदना के साथ सुनें तो आपको पता चलेगा कि उनकी शंकाएँ और सख्ती कहाँ से आई हैं। जिन लोगों ने ‘आपके साथ वह सब किया’, वे आपकी तरह ही भयभीत और सहमे हुए थे
मैं ऐसा मानती हूँ कि हम स्वयं अपने माता-पिता का चुनाव करते हैं

हममें से हर कोई इस धरती पर एक सुनिश्चित समय और स्थान पर जन्म लेता है। हम यहाँ पर विशेष पाठ पढ़ने के लिए आए हैं, जो हमें आध्यात्मिक विकास के पथ पर आगे बढ़ाएगा। हम अपनी लिंग, अपना रंग, अपना देश चुनते हैं और फिर हम किसी खास माता-पिता को खोजते हैं, जो उस स्वरूप को प्रतिबिंबित करेंगे, जिस पर हम इस जीवन में काम करना चाहते हैं। फिर जब हम बड़े होते हैं तो आम तौर पर अपने माता-पिता पर उँगली उठाते हैं और रिरियाते हुए शिकायत करते हैं, ‘आपने मेरे साथ ऐसा किया।’ लेकिन वास्तव में हमने उन्हें इसलिए चुना, क्योंकि वे हमारे कार्यों के लिए बिलकुल उपयुक्त थे।

हमारे बचपन में ही हमारी आस्थाएँ स्थापित होती हैं और फिर उन्हीं आस्थाओं का अनुभव करते हुए जीवन में आगे बढ़ते हैं। अपने जीवन में पीछे की ओर देखिए और ध्यान दीजिए कि कितनी बार आप उसी अनुभव से गुजरे हैं। मेरा मानना है कि आपने उन अनुभवों को एक के बाद एक स्वयं बनाया, क्योंकि वे आपके अपने विश्वास को प्रतिबिंबित कर रहे थे। यह कोई मायने नहीं रखता कि हमें कितने लंबे समय से कोई समस्या थी, या वह कितनी बड़ी है या वह हमारे जीवन के लिए कितनी घातक है।
वर्तमान सबसे अधिक शक्तिशाली होती है

आज तक जीवन में आपने जिन घटनाओं का अनुभव किया है, वे सभी आपके अतीत से जुड़े विचारों और आस्थाओं से बने हैं। वे उन विचारों और शब्दों से बने थे, जिन्हें आपने कल, पिछले सप्ताह, पिछले माह, पिछले वर्ष, आपकी आयु के अनुसार 10, 20, 30, 40 या इससे अधिक वर्षों के दौरान इस्तेमाल किया था।

फिर भी, वह आपकी अतीत है। वह बीत चुका है। इस पल में महत्त्वपूर्ण यह है कि आप अभी क्या सोचना, विश्वास करना व कहना चाहते हैं, क्योंकि ये विचार और शब्द आपका भविष्य निर्धारित करेंगे। वर्तमान क्षण ही आपकी ताकत हैं और यही आपके कल, अगले सप्ताह, अगले माह, अगले वर्ष और आगे के अनुभवों का आधार हैं।
आप ध्यान दे सकते हैं कि इस क्षण में आप क्या सोच रहे हैं। वह नकारात्मक है या सकारात्मक है ? क्या आप चाहते हैं कि यह विचार आपका भविष्य तय करे ? बस ध्यान दें और सजग हो जाएँ।