मंगलवार, 7 जनवरी 2014

रजिस्ट्रेशन कैसे करे

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इसके लिए इस फॉर्म को भरकर दिए गये ईमेल एड्रेस पैर मेल करे
ईमेल : shubhvivahsutharsamaj@gmail.com पर 
और कॉल करे इस नंबर पर 
ANIL SHARMA
+919887349108, 9461229108


या इस पते पर भेज दे :
अनिल शर्मा, त्रिपोलीया रोड, सुथारवाड़ा, 
विश्वकर्मा मंदिर के पीछे, बांसवाड़ा 
मो- +919887349108, 9461229108



शुभ विवाह मेरिज ब्यूरो


शुभ विवाह मेरिज ब्यूरो


                         शुभ विवाह मेरिज ब्यूरो 




हमें अपने बच्चों के लिए विवाह की बडी चिन्ता रहती है। खासकर लड़कीयों की क्योकिं लड़कियां जल्दि ही बड़ी हो जाती है। हर मॉ-बाप का यही सपना होता है कि चाहे उसका बेटा हो या बेटी उसका सम्बन्ध किसी अच्छे परिवार के साथ हो जाये ताकि उसकी जिन्दगी सफल हो जाए।  आजकल रोजमर्रा समाचार पत्रों मे कई घर परिवार की कहानियां पढ़ ी रहे है और सुन ी रहे है । अगर सम्बन्ध की सही पहचान करने में जरा सी ी ला परवाही हो जाए तो एक नही बल्कि जिन्दगीयों पर असर पडता है। जिसके बारे में हम सभी जानते है।  
खैर ! इन सारी समस्याओं को हमने एक सीधे सादे आसान तरिके सुलझाने की कोशिश की है। ‘‘शुभ विवाह’’ मेरिज ब्यूरो के द्वारा हम आपके शहर मे लाए है आपकी वैवाहिक समस्याओं का स्थाई समाधान । अपनी बेटी हो या बेटा, अगर आपको उसकी शादी कि चिन्ता खाए जा रही है तो आप आईये हमारे पास, हम आपकी हर सं व मदद करने को तैयार है।

श्री विश्वकर्मा  सुथार समाज बांसवाड़ा डूंगरपुर 

गुजराती मेवाड़ा सुथार समाज 

एक सन्देश समाज के नाम 

प्यारे मित्रों, आज हम 21 वीं सदीं में अपना पदार्पण कर चुके है, लेकिन हमारा समाज आज भी 19 वीं सदीं में जी रहा है। समाज में इस नयी सदी कि नयी उर्जा का संचार करने के लिए, हमें नये उर्जावान नेतृत्व की आवश्यकता है। आज देश की आबादी का 70 प्रतिशत युवा वर्ग है, ऐसी स्थिती मे युवाओं को समझने के लिए, समाज कि बागडोर युवाओ के हाथो मे होनी चाहिये, चाहे वो देश के किसी भी समाज, घराने या खानदान से हो। समाज की प्रगति को बढावा देने में युवा वर्ग का जोश का उपयोग हो सकता है, लेकिन निगरानी अगर वरिष्ट बुद्धिजीवियो द्वारा की जाए तो एक सुदृढ़ समाज का निर्माण हो सकता है, और ये दोनों के तालमेल से समाज की की गाड़ी समय के साथ साथ हमेशा आगे चलती रहेगी।


हम इतने समझदार, बुद्धिमान और साधन सम्पन्न होने के बावजूद हम अगर समाज को कुछ नही दे सकते तो, हमारा इस समाज में पैदा होना ही व्यर्थ है, क्योंकि हमे यह कभी नही भुलना चाहिये कि, समाज मे पैदा होने से लेकर मरने तक और अन्तिम यात्रा के वक्त हमने समाज से बहुत कुछ पाया, इसलिए हमे यह सोचना चाहिये की समाज को हमने क्या दिया है?

वैसे तो समाज के प्रति नैतिक जिम्मेदारियों का निर्वाहन का दायित्व तो प्रत्येक व्यक्ति का है, और ऐसा मैं मानता हूँ कि सभी को अपनी क्षमता के अनुरुप नैतिक जिम्मेदारियों का निर्वाहन करना चाहिए। लेकिन 21वीं सदी के इस सबसे व्यस्ततम् समय या युं कहें सबसे भीड-भाड जैसे समय में, जहाँ लोग रोजमर्रा की जिंदगी में अपने आपको ही भूल जाते हैं, समाज की तो बात ही छोडिये। ऐसे व्यस्ततम् समय में हमने अपने आपको रोजमर्रा का जिन्दगी से परे रखकर, लोगों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने का प्रयास करके, आज हम इस मन्जिल तक पहुँच पाये हैं। आशा है कि हमारा यह छोटा सा प्रयास समाज को एक शसक्त व तनाव मुक्त समाज बनाने के विकास में सहयोगी होगा।

हमने विभिन्न पत्र पत्रिकाओं, इन्टरनेट पे वेवसाइटों और समाज के साथ उठते बैठते यह पाया है कि, विश्वकर्मा समाज से सम्बन्धित अनेकों प्रयास काफी बिखरे से हैं, जबकि वे सभी सराहनीय और अत्यधिक प्रबल समाज को दर्शातें हैं। समाज की इन सब कमीयों को दुर करने के लिये विभिन्न पत्र पत्रिकाओं, इन्टरनेट पे वेवसाइटों और समाज के द्वारा उपलब्ध जानकारी का नियमित अध्ययन किया जाय, और उसे एक स्थान पर उपलब्ध कराया जाय। इसकें साथ ही विभिन्न पत्र पत्रिकाओं को सारी दुनिया के सामने लाया जा सके ऐसा माध्यम का हमें निर्माण करना होगा। ऐसे ही एक माध्यम इन्टरनेट के द्वारा मैनें विश्वकर्मा परिवार.ओबाजी को बनाया है, जो कि अभी अपने प्रथम चरण में है। आप सभी के सहयोग और मार्गदर्शन के द्वारा यह एक दिन शसक्त व तनाव मुक्त समाज को बनाने में अपना रोल बखूबी निभायेगा।

  साहित्यक पगडण्डो पर चलते हुए ही सम्भव है कि मानव को बौद्धिक चेतना की प्राप्ती हो सके। चुनैती भरी सृजनतामय जीवन की अवधि के सौपान से गुजरना एक महान् साहस की बात है। आज विश्व भौतिकवाद के गहन अन्धकार मय दौर से गुजर रहा है। केवल मात्र इस भयानक दौरे से बचने का एक ही विकल्प है विज्ञान के देवता भगवान विश्वकर्मा की शरण में आना, क्योंकि विश्वकर्मा भगवान के अनुकूल भौतिकताप से पीडित मानवता के लिए रामबाण औषध सिद्ध होगी। ऐसी मेरी परिकल्पना ही नही अपितु मेरा दृढ विश्वास भी है। विश्वकर्मा समाज में यह लघु ग्रंथ परन्तु सार रत्नों से भरा समुद्र की तरह है। प्रत्येक शिल्पी, वैज्ञानिक व उद्योगपतियों के लिये आद्यातन विज्ञानमय गीता के समान है।
यहां तक ही नहीं अपितु जो व्यक्ति श्री विश्वकर्मा भगवान को पुर्णरुपेण मानकर चलेंगे तथा उनको वीतराग पुरुष मानकर चिन्तन करेंगे तो निश्चित रुप से वो सत्यपक्ष को प्राप्त करने में सक्षम होंगे ।

                                                                                                                                   - अनिल विश्वकर्मा