मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

*“मैंने गांधी को क्यों मारा”* what's app massage

🔴💢💥 कृपया एक बार जरूर पढे,
यह किसी के पक्ष या विरोध की बात नहीं है,
Supreme Court से अनुमति मिलने पर प्रकाशित की गयी है....

60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम का अंतिम भाषण -
*“मैंने गांधी को क्यों मारा”*

👉 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नही हुआ बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया l
नाथूराम गोड़से समेत 17 अभियुक्तों पर गांधी जी की हत्या का मुकदमा चलाया गया l इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था पर यह Court परिसर तक ही सिमित रह गयी क्योकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधी जी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोड़से ने 60 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया l
*“मैंने गांधी को क्यों मारा”*
Presented by Gaurav Katiyar ~

नाथूराम गोड़से ने गांधी हत्या के पक्ष में अपनी 150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुति की ll

“नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के कुछ मुख्य अंश”

🔸1. नाथूराम का विचार था कि गांधी जी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी | कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे | नाथूराम गोड़से को भय था गांधी जी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे l


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🔸2. 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ आक्रोश उफ़ान पे था |
भारतीय जनता इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधी जी के पास गयी लेकिन गांधी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से साफ़ मना कर दिया l


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🔸3. महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया | महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे वो केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के 1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध तक नहीं कर सके l


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🔸4. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी जी ने अपने प्रिय सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे | गांधी जी ने सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया |


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🔸5. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी | पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया l


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🔸6. गांधी जी कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह से कहा कि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अत: वहां का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए | अतएव राजा हरिसिंह को शासन छोड़ कर काशी जाकर प्रायश्चित करने | जबकि  हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था | गांधी जी की नीतियाँ धर्म के साथ, बदलती रहती थी | उनकी मृत्यु के पश्चात सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को भारत में मिलाने का कार्य किया | गांधी जी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता |


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🔸7. पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली | मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी नतमस्तक हो गये और गांधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया l


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🔸8. महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी जी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया | लेकिन महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके |


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🔸9. लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से विजय प्राप्त हुयी किन्तु गान्धी अपनी जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया | गांधी जी अपनी मांग को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम निकलवाने में माहिर थे | इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे |


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🔸10. 14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, लेकिन गांधी जी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि गांधी जी ने  स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधी जी ने कुछ नहीं किया |


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🔸11. धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे | जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी + उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे | बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का चलन शुरू हुआ |


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🔸12. कुछ एक मुसलमान द्वारा वंदेमातरम् गाने का विरोध करने पर महात्मा गांधी झुक गये और इस पावन गीत को भारत का राष्ट्र गान नहीं बनने दिया |


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🔸13. गांधी जी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा। वही दूसरी ओर गांधी जी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम कहकर पुकारते थे |


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🔸14. कांग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्र ध्वज बनाने के लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र को भारत का राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी किन्तु गांधी जी की जिद के कारण उसे बदल कर तिरंगा कर दिया गया l


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🔸15. जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधी जी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला l


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🔸16. भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया | केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की राशि न देने का निर्णय लिया | जिसका महात्मा गांधी ने विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान दे दी ।
महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहे, फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या नाजायज | गांधी जी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की |

👉उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की हत्या को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया |
नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि माहात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की |
मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन किसी भी देशभक्त को देश के टुकड़े करने के, एक समप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ | गांधी जी की हत्या के सिवा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था ll

नाथूराम गोड़से ......
द्वारा अदालत में दिए बयान के मुख्य अंश.....

मैने गांधी को नहीं मारा
मैने गांधी का *वध* किया है
गांधी वध..

वो मेरे दुश्मन नहीं थे परन्तु उनके निर्णय राष्ट्र के लिए घातक साबित हो रहे थे..

जब व्यक्ति के पास कोई रास्ता न बचे तब वह मज़बूरी में सही कार्य के लिए गलत रास्ता अपनाता है..

मुस्लिम लीग और पाकिस्तान निर्माण की गलत निति के प्रति गांधीजी की सकारात्मक प्रतिक्रिया ने ही मुझे मजबूर किया..

पाकिस्तान को 55 करोड़ का भुकतान करने की गैरवाजिब मांग को लेकर गांधी जी अनशन पर बैठे..

बटवारे में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दुओ की आपबीती और दूरदशा ने मुझे हिला के रख दिया था..

अखंड हिन्दू राष्ट्र
गांधी जी के कारण मुस्लिम लीग के आगे घुटने  टेक रहा था..

बेटो के सामने माँ का खंडित होकर टुकड़ो में बटना
विभाजित होना असहनीय था..

अपनी ही धरती पर हम परदेशी बन गए थे..

मुस्लिम लीग की सारी गलत मांगो को गांधी जी मानते जा रहे थे..

मैने ये निर्णय किया के भारत माँ को अब और विखंडित और दयनीय स्थिति में नहीं होने देना है तो मुझे गांधी को मारना ही होगा..
और
मैने इसलिए गांधी को मारा...!!

मुझे पता है इसके लिए मुझे फ़ासी होगी
में इसके लिए भी तैयार हूं...

और हां यदि मातृभूमि की रक्षा करना अपराध हे तो मै यह अपराध बार बार करूँगा
हर बार करूँगा ...

और
जब तक सिन्ध नदी पुनः अखंड हिन्द में न बहने लगे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन नहीं करना !!

मुझे फ़ासी देते वक्त मेरे एक हाथ में केसरिया  ध्वज
और दूसरे हाथ में अखंड भारत का नक्शा हो !!

मै फ़ासी चढ़ते वक्त अखंड भारत की जय जय बोलना चाहूँगा !!

हे भारत माँ
मुझे दुःख हे मै तेरी इतनी ही सेवा कर पाया ..

- नाथूराम गोडसे..

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पहुँचे ll

🍁 जय माँ  🍁

सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

ब्रम्हाजी से लेकर पृथ्वीराज चौहान तक की वंशावली

ब्रम्हाजी से लेकर पृथ्वीराज चौहान तक की वंशावली

वर्तमान इतिहासकारों ने इतिहास को 2000 से 4000 वर्षो में समेट लिया है विदेशी इतिहासकार अगर ये कार्य करे तो समझा जा सकता है की इसाई सम्प्रदाय की उत्पत्ति 2000 वर्ष पूर्व हुई और यहूदियो की 4500 वर्ष पूर्व अतः इससे पहले का इतिहास उन्हें नहीं ज्ञात है .. पर हमारे देश के इतिहासकार अगर ऐसा करे तो समझ से परे है जबकि हमारे पास रामायण महाभारत और पुराणों जैसे अनेकों एतिहासिक ग्रन्थ है जिनकी घटनाएं सत्य प्रमाणित भी होती जा रही है.. वैसे प्रमाणों की आवश्यकता सिर्फ भारतीयों को क्यूँ होती है विदेशियों के कथनों और ग्रंथो को हम बिना जांचे परखे क्यों सच मान लेते है..!
इस पोस्ट में हम आपको बता रहे है कई एतिहासिक ग्रंथो से जुटाई ऐसी जानकारी जिसके बाद हमें अपने अतीत में झाँकने में आसानी होगी.. हम जानते हैं कि सारी सृष्टी परमपिता ब्रम्हा से उत्पन्न हुई है लेकिन अब जानते है उनकी पूरी वंशावली..

1. परमपिता ब्रम्हा से प्रजापति दक्ष हुए.
2. दक्ष से अदिति हुए.
3. अदिति से बिस्ववान हुए.
4. बिस्ववान से मनु हुए जिनके नाम से हम लोग मानव कहलाते हैं.
5. मनु से इला हुए.
6. इला से पुरुरवा हुए जिन्होंने उर्वशी से विवाह किया.
7. पुरुरवा से आयु हुए.
8. आयु से नहुष हुए  जो इन्द्र के पद पर भी आसीन हुए परन्तु सप्तर्षियों के श्राप के कारण पदच्युत हुए.
9. नहुष के बड़े पुत्र यति थे जो सन्यासी हो गए इसलिए उनके दुसरे पुत्र ययाति राजा हुए. ययाति के पुत्रों से ही समस्त वंश चले. ययाति के पांच पुत्र थे. देवयानी से यदु और तर्वासु तथा शर्मिष्ठा से दृहू, अनु, एवं पुरु. यदु से यादवों का यदुकुल चला जिसमे आगे चलकर श्रीकृष्ण ने जन्म लिया. तर्वासु से मलेछ, दृहू से भोज तथा पुरु से सबसे प्रतापी पुरुवंश चला. अनु का वंश ज्यादा नहीं चला.

10. पुरु के कौशल्या से जन्मेजय हुए.
11. जन्मेजय के अनंता से प्रचिंवान हुए.
12. प्रचिंवान के अश्म्की से संयाति हुए.
13. संयाति के वारंगी से अहंयाति हुए.
14. अहंयाति के भानुमती से सार्वभौम हुए.
15. सार्वभौम के सुनंदा से जयत्सेन हुए.
16. जयत्सेन के सुश्रवा से अवाचीन हुए.
17. अवाचीन के मर्यादा से अरिह हुए.
18. अरिह के खल्वंगी से महाभौम हुए.
19. महाभौम के शुयशा से अनुतनायी हुए.
20. अनुतनायी के कामा से अक्रोधन हुए.
21. अक्रोधन के कराम्भा से देवातिथि हुए.
22. देवातिथि के मर्यादा से अरिह हुए.
23. अरिह के सुदेवा से ऋक्ष हुए.
24. ऋक्ष के ज्वाला से मतिनार हुए.
25. मतिनार के सरस्वती से तंसु हुए.
26. तंसु के कालिंदी से इलिन हुए.
27. इलिन के राथान्तरी से दुष्यंत हुए.
28. दुष्यंत के शकुंतला से भरत हुए जिनके नाम पर हमारा देश भारतवर्ष कहलाता है.

29. भरत के सुनंदा से भमन्यु हुए.
30. भमन्यु के विजय से सुहोत्र हुए.
31. सुहोत्र के सुवर्णा से हस्ती हुए जिनके नाम पर पूरे प्रदेश का नाम हस्तिनापुर पड़ा.
32. हस्ती के यशोधरा से विकुंठन हुए.
33. विकुंठन के सुदेवा से अजमीढ़ हुए.
34. अजमीढ़ से संवरण हुए.
35. संवरण के तपती से कुरु हुए जिनके नाम से ये वंश कुरुवंश कहलाया.
36. कुरु के शुभांगी से विदुरथ हुए.
37. विदुरथ के संप्रिया से अनाश्वा हुए.
38. अनाश्वा के अमृता से परीक्षित हुए.
39. परीक्षित के सुयशा से भीमसेन हुए.
40. भीमसेन के कुमारी से प्रतिश्रावा हुए.
41. प्रतिश्रावा से प्रतीप हुए.
42. प्रतीप के सुनंदा से तीन पुत्र देवापि, बाह्लीक एवं शांतनु का जन्म हुआ. देवापि किशोरावस्था में ही सन्यासी हो गए एवं बाह्लीक युवावस्था में अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ने में लग गए इसलिए सबसे छोटे पुत्र शांतनु को गद्दी मिली. शांतनु से भीष्म हुए जिनकी कहानी और वंशावली विचित्र है ..

43. शांतनु कि गंगा से देवव्रत हुए जो आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए. भीष्म का वंश आगे नहीं बढा क्योंकि उन्होंने आजीवन ब्रम्हचारी रहने की प्रतिज्ञा कि थी. शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए. चित्रांगद की मृत्यु युवावस्था में ही हो गयी. विचित्रवीर्य कि दो रानियाँ थी, अम्बिका और अम्बालिका. विचिचित्रवीर्य भी संतान प्राप्ति के पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गए, लेकिन महर्षि व्यास कि कृपा से उनका वंश आगे चला.
44. विचित्रवीर्य के महर्षि व्यास की कृपा से अम्बिका से ध्रतराष्ट्र, अम्बालिका से पांडू तथा अम्बिका की दासी से विदुर का जन्म हुआ.
45. ध्रितराष्ट्र से दुर्योधन, दुहशासन, इत्यादि 100 पुत्र एवं दुशाला नमक पुत्री हुए. इनकी एक वैश्य कन्या से युयुत्सु नामक पुत्र भी हुआ जो दुर्योधन से छोटा और दुशासन से बड़ा था. इतने पुत्रों के बाद भी इनका वंश आगे नहीं चला क्योंकि इनके समूल वंश का नाश महाभारत के युद्घ में हो गया.  किन्दम ऋषि के श्राप के कारण पांडू संतान उत्पत्ति में असमर्थ थे. उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों को दुर्वासा ऋषि के मंत्र से संतान उत्पत्ति की आज्ञा दी. कुंती के धर्मराज से युधिष्ठिर, पवनदेव से भीम और इन्द्रदेव से अर्जुन हुए तथा माद्री के अश्वनीकुमारों से नकुल और सहदेव का जन्म हुआ. इन  पांचो के जन्म में एक एक साल का अंतर था. जिस दिन भीम का जन्म हुआ उसी दिन दुर्योधन का भी जन्म हुआ.
46. युधिष्ठिर के द्रौपदी से प्रतिविन्ध्य एवं देविका से यौधेय हुए. भीम के द्रौपदी से सुतसोम, जलन्धरा से सवर्ग तथा हिडिम्बा से घतोत्कच हुआ. घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक हुआ. नकुल के द्रौपदी से शतानीक एवं करेनुमती से निरमित्र हुए. सह्देव के द्रौपदी से श्रुतकर्मा तथा विजया से सुहोत्र हुए. इन चारो भाइयों के वंश नहीं चले. अर्जुन के द्रौपदी से श्रुतकीर्ति, सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इलावान, तथा चित्रांगदा से बभ्रुवाहन हुए. इनमे से केवल अभिमन्यु का वंश आगे चला.

47. अभिमन्यु के उत्तरा से परीक्षित हुए. इन्हें ऋषि के श्रापवश तक्षक ने कटा और ये मृत्यु को प्राप्त हुए.
48. परीक्षित से जन्मेजय हुए. इन्होने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्पयज्ञ करवाया जिसमे सर्पों के कई जातियां समाप्त हो गयी, लेकिन तक्षक जीवित बच गया.
49. जन्मेजय से शतानीक तथा शंकुकर्ण हुए.
50. शतानीक से अश्वामेघ्दत्त हुए.
महाभारत युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठिर की 30 पीढ़ियों ने 1770 वर्ष 11 माह 10 दिन तक राज्य किया

युधिष्ठिर : 36 वर्ष
परीक्षित: 60 वर्ष
जनमेजय: 84 वर्ष
अश्वमेध : 82 वर्ष
द्वैतीयरम : 88 वर्ष
क्षत्रमाल : 81 वर्ष
चित्ररथ : 75 वर्ष
दुष्टशैल्य : 75वर्ष
उग्रसेन : 78 वर्ष
शूरसेन : 78 वर्ष
भुवनपति : 61 वर्ष
रणजीत : 65 वर्ष
श्रक्षक : 64 वर्ष
सुखदेव : 62 वर्ष
नरहरिदेव : 51 वर्ष
शुचिरथ : 42 वर्ष
शूरसेन द्वितीय : 58 वर्ष
पर्वतसेन : 55 वर्ष
मेधावी : 52 वर्ष
सोनचीर : 50 वर्ष
भीमदेव : 47 वर्ष
नरहिरदेव द्वितीय : 47 वर्ष
पूरनमाल : 44 वर्ष
कर्दवी : 44 वर्ष
अलामामिक : 50 वर्ष
उदयपाल : 38 वर्ष
दुवानमल : 40 वर्ष
दामात : 32 वर्ष
भीमपाल : 58 वर्ष
क्षेमक : 48 वर्ष

क्षेमक के प्रधानमन्त्री विश्व ने क्षेमक का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 14 पीढ़ियों ने 500 वर्ष 3 माह 17 दिन तक राज्य किया

विश्व : 17 वर्ष
पुरसेनी : 42 वर्ष
वीरसेनी : 52 वर्ष
अंगशायी : 47 वर्ष
हरिजित : 35 वर्ष
परमसेनी : 44 वर्ष
सुखपाताल : 30 वर्ष
काद्रुत : 42 वर्ष
सज्ज : 32 वर्ष
आम्रचूड़ : 27 वर्ष
अमिपाल : 22 वर्ष
दशरथ : 25 वर्ष
वीरसाल: 31 वर्ष
वीरसालसेन: 47 वर्ष
वीरसालसेन के प्रधानमन्त्री वीरमाह ने वीरसालसेन का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 445 वर्ष 5 माह 3 दिन तक राज्य किया

वीरमाह: 35 वर्ष
अजितसिंह: 27 वर्ष
सर्वदत्त: 28 वर्ष
भुवनपति: 15 वर्ष
वीरसेन: 21 वर्ष
महिपाल: 40 वर्ष
शत्रुशाल: 26 वर्ष
संघराज: 17 वर्ष
तेजपाल: 28 वर्ष
मानिकचंद: 37 वर्ष
कामसेनी: 42 वर्ष
शत्रुमर्दन: 8 वर्ष
जीवनलोक: 28 वर्ष
हरिराव: 26 वर्ष
वीरसेन द्वितीय: 35 वर्ष
आदित्यकेतु: 23 वर्ष
प्रयाग के राजा धनधर ने आदित्यकेतु का वध करके उसके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 9 पीढ़ी ने 374 वर्ष 11 माह 26 दिन तक राज्य किया

वीरमाह: 35 वर्ष
अजितसिंह: 27 वर्ष
सर्वदत्त: 28 वर्ष
भुवनपति: 15 वर्ष
वीरसेन: 21 वर्ष
महिपाल: 40 वर्ष
शत्रुशाल: 26 वर्ष
संघराज: 17 वर्ष
तेजपाल: 28 वर्ष
मानिकचंद: 37 वर्ष
कामसेनी: 42 वर्ष
शत्रुमर्दन: 8 वर्ष
जीवनलोक: 28 वर्ष
हरिराव: 26 वर्ष
वीरसेन द्वितीय: 35 वर्ष
आदित्यकेतु: 23 वर्ष
प्रयाग के राजा धनधर ने आदित्यकेतु का वध करके उसके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 9 पीढ़ी ने 374 वर्ष 11 माह 26 दिन तक राज्य किया

धनधर : 23 वर्ष
महर्षि : 41 वर्ष
संरछि : 50 वर्ष
महायुध: 30 वर्ष
दुर्नाथ: 28 वर्ष
जीवनराज: 45 वर्ष
रुद्रसेन: 47 वर्ष
आरिलक: 52 वर्ष
राजपाल: 36 वर्ष
सामन्त महानपाल ने राजपाल का वध करके 14 वर्ष तक राज्य किया। अवन्तिका (वर्तमान उज्जैन) के विक्रमादित्य ने महानपाल का वध करके 93 वर्ष तक राज्य किया। विक्रमादित्य का वध समुद्रपाल ने किया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 372 वर्ष 4 माह 27 दिन तक राज्य किया

समुद्रपाल: 54 वर्ष
चन्द्रपाल: 36 वर्ष
सहपाल: 11 वर्ष
देवपाल: 27 वर्ष
नरसिंहपाल: 18 वर्ष
सामपाल: 27 वर्ष
रघुपाल: 22 वर्ष
गोविन्दपाल: 27 वर्ष
अमृतपाल: 36 वर्ष
बालिपाल: 12 वर्ष
महिपाल: 13 वर्ष
हरिपाल: 14 वर्ष
सीसपाल: 11 वर्ष (कुछ ग्रंथों में सीसपाल के स्थान पर भीमपाल का उल्लेख मिलता है, सम्भव है कि उसके दो नाम रहे हों।)
मदनपाल: 17 वर्ष
कर्मपाल: 16 वर्ष
विक्रमपाल: 24 वर्ष
विक्रमपाल ने पश्चिम में स्थित राजा मालकचन्द बोहरा के राज्य पर आक्रमण कर दिया जिसमे मालकचन्द बोहरा की विजय हुई और विक्रमपाल मारा गया। मालकचन्द बोहरा की 10 पीढ़ियों ने 191 वर्ष 1 माह 16 दिन तक राज्य किया

मालकचन्द: 54 वर्ष
विक्रमचन्द: 12 वर्ष
मानकचन्द: 10 वर्ष
रामचन्द: 13 वर्ष
हरिचंद:14 वर्ष
कल्याणचन्द: 10 वर्ष
भीमचन्द: 16 वर्ष
लोवचन्द: 26 वर्ष
गोविन्दचन्द: 31 वर्ष
रानी पद्मावती: 1 वर्ष

रानी पद्मावती गोविन्दचन्द की पत्नी थीं। कोई सन्तान न होने के कारण पद्मावती ने हरिप्रेम वैरागी को सिंहासनारूढ़ किया जिसकी 4 पीढ़ियों ने 50 वर्ष 0 माह 12 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

हरिप्रेम: 7 वर्ष
गोविन्दप्रेम: 20 वर्ष
गोपालप्रेम : 15 वर्ष
महाबाहु: 6 वर्ष
महाबाहु ने सन्यास ले लिया। इस पर बंगाल के अधिसेन ने उसके राज्य पर आक्रमण कर अधिकार जमा लिया। अधिसेन की 12 पीढ़ियों ने 152 वर्ष 11 माह 2 दिन तक राज्य किया

अधिसेन: 18 वर्ष
विल्वसेन: 12 वर्ष
केशवसेन: 15 वर्ष
माधवसेन: 12 वर्ष
मयूरसेन: 20 वर्ष
भीमसेन: 5 वर्ष
कल्याणसेन: 4 वर्ष
हरिसेन: 12 वर्ष
क्षेमसेन: 8 वर्ष
नारायणसेन: 2 वर्ष
लक्ष्मीसेन: 26 वर्ष
दामोदरसेन: 11 वर्ष
दामोदरसेन ने उमराव दीपसिंह को प्रताड़ित किया तो दीपसिंह ने सेना की सहायता से दामोदरसेन का वध करके राज्य पर अधिकार कर लिया तथा उसकी 6 पीढ़ियों ने 107 वर्ष 6 माह 22 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

दीपसिंह: 17 वर्ष
राजसिंह: 14 वर्ष
रणसिंह: 9 वर्ष
नरसिंह: 45 वर्ष
हरिसिंह: 13 वर्ष
जीवनसिंह: 8 वर्ष
पृथ्वीराज चौहान ने जीवनसिंह पर आक्रमण करके तथा उसका वध करके राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लिया। पृथ्वीराज चौहान की 5 पीढ़ियों ने 86 वर्ष 20 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है

पृथ्वीराज: 12 वर्ष
अभयपाल: 14 वर्ष
दुर्जनपाल: 11 वर्ष
उदयपाल: 11 वर्ष
यशपाल: 36 वर्ष
विक्रम संवत 1249 (1193 AD) में मोहम्मद गोरी ने यशपाल पर आक्रमण कर उसे प्रयाग के कारागार में डाल दिया और उसके राज्य को अधिकार में ले लिया।

*हाथ की पांच उंगलिया*

*हाथ की पांच उंगलिया*

हमारे हाथ की पांचो उंगलिया शरीर के अलग अलग अंगों से जुडी होती है | इसका मतलब आप को दर्द नाशक दवाइयां खाने की बजाए इस आसान और प्रभावशाली  तरीके का इस्तेमाल करना करना चाहिए | आज इस लेख के माध्यम  से हम आपको बतायेगे के शरीर के किसी हिस्से का दर्द सिर्फ हाथ की उंगली को रगड़ने से कैसे दूर होता है |

हमारे हाथ की अलग अलग उंगलिया अलग अलग बिमारिओ और भावनाओं से जुडी होती है | शायद आप को पता न हो, हमारे हाथ की उंगलिया चिंता, डर और चिड़चिड़ापन दूर करने की क्षमता रखती है | उंगलियों पर धीरे से दबाव डालने से शरीर के कई अंगो पर प्रभाव पड़ेगा |

*1. अंगूठा*
*– The Thumb*
हाथ का अंगूठा हमारे फेफड़ो से जुड़ा होता है | अगर आप की दिल की धड़कन तेज है तो हलके हाथो से अंगूठे पर मसाज करे और हल्का सा खिचे | इससे आप को आराम मिलेगा |

*2. तर्जनी*
*– The Index Finger*
ये उंगली आंतों  gastro intestinal tract से जुडी होती है | अगर आप के पेट में दर्द है तो इस उंगली को हल्का सा रगड़े , दर्द गयब हो जायेगा।

*3. बीच की उंगली*
*– The Middle Finger*
ये उंगली परिसंचरण तंत्र तथा circulation system से जुडी होती है | अगर आप को चक्कर या  आपका जी घबरा रहा है तो इस उंगली पर मालिश करने से तुरंत रहत मिलेगी |

*4. तीसरी उंगली*
*– The Ring Finger*
ये उंगली आपकी मनोदशा से जुडी होती है | अगर किसी कर्ण आपका मनोदशा अच्छा नहीं है या शांति चाहते हो तो इस उंगली को हल्का सा मसाज करे और खिचे, आपको जल्द ही इस के अच्छे नतीजे प्राप्त हो जयेगे, आप का मूड खिल उठे गा।

*5. छोटी उंगली*
*– The Little Finger*
छोटी उंगली का किडनी और सिर के साथ सम्बन्ध होता है | अगर आप को सिर में दर्द है तो इस उंगली को हल्का सा दबाये और मसाज करे, आप का सिर दर्द गायब हो जायेगा | इसे मसाज करने से किडनी भी तंदरुस्त रहती  है |

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🌸 धन्यवाद 🌸